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श्रीराम की अयोध्या

आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवाननगर निकट प्रभु प्रेरेउ भूमिबिमान।।
उतरि
 कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहुप्रेरित राम चलेउ सोहरषु बिरहु अति ताहु ।।

अर्थात यह दिन जब प्रभु श्री राम अयोध्या नगरी वापस आ रहे हैं, उसकासजीव चित्रण करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं कि जब प्रभु श्री रामपुष्पक विमान पर अयोध्या के आकाश मे पहुँचे और उन्होंने सभी नगरवासियों को विमान की ओर आते देखा तब विमान को वहीं उतरने की प्रेरणा दी।

विमान से उतरकर उन्होंने अयोध्या की पावन धरती पर उतर कर विमानको वापस कुबेर के पास जाने का आदेश दिया। एक ओर विमान वाहकको वापस जाने का सुख था परंतु वहीं उसे प्रभु से बिछड़ने का दुःख भी हुआ। प्रभु तब हर्ष के साथ अपने नगर वसियों कि ओर चल दिए। तब  प्रभु श्रीराम के स्वागत में पूरे अयोध्या में  अयोध्यावासियों ने रंगरोगन किया  दिए जलाए दीपावली मनाई ।

अयोध्या को भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु ने बसाया था, तभी से इस नगरी पर सूर्यवंशी राजाओं का राज महाभारत काल तक रहा।यहीं पर प्रभु श्रीराम का दशरथ के महल में जन्म हुआ। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण में जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इन्द्रलोक से की है।गगनचुंबी इमारतों के अयोध्यानरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है।

भगवान श्रीराम के बाद भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने पुन: राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया ।इसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इसका अस्तित्व महाराजा बृहद्बल तक अपने  चरम पर रहा।

 ईसा के लगभग 100 वर्ष पूर्व  चक्रवर्ती सम्राट महाराज विक्रमादित्य ने  संतों के निर्देश से यहां एक भव्य मंदिर के साथ ही कूप, सरोवर, महल आदि बनवाए। उन्होंने श्रीरामजन्मभूमि पर काले रंग के कसौटी पत्थर वाले 84 स्तंभों पर विशाल मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती थी।विक्रमादित्य के बाद के राजाओं ने समय-समय पर इस मंदिर की देख-रेख की।  शुंग वंश के प्रथम शासक पुष्यमित्र शुंग का एक शिलालेख अयोध्या से प्राप्त हुआ था जिसमें उसके द्वारा दो अश्वमेध यज्ञों के किए जाने का वर्णन है। अनेक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि गुप्तवंशीय चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय और उसके बाद कई समय तक अयोध्या गुप्त साम्राज्य की राजधानी थी। गुप्तकालीन महाकवि कालिदास ने अयोध्या का रघुवंश में कई बार उल्लेख किया है।

स्कंद पुराण जो 1000 साल पुराना माना जाता है इसके वैष्णवखंड  (अयोध्या महात्मा खंड 10) में अयोध्या के चारों ओर स्थित मंदिरों का विवरण दिया है स्कंद पुराण में इस बात का भी वर्णन है कि राम जन्म स्थान पूजने क्यों है इसके दर्शन से जन्म-मृत्यु के चक्र से छूटकर मोक्ष की प्राप्ति होती है इसके दर्शन से 1000 गाय दान करने जितना पुण्य मिलता है हिंदुओं के लिए जन्म स्थान स्वयं में एक तीर्थ हैं ।

पानीपत के युद्ध के बाद भारतवर्ष पर आक्रांताओं का आक्रमण और बढ़ गया। आक्रमणकारियों ने काशी, मथुरा के साथ ही अयोध्या में भी लूटपाट की और पुजारियों की हत्या कर मूर्तियां तोड़ने का क्रम जारी रखा। सिकंदर लोदी के शासनकाल के दौरान यहां मंदिर मौजूद था। 14वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही राम जन्मभूमि एवं अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान चलाए गए।1527-28 में मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के सेनापति  मीर बाकी ने पवित्र मंदिर को ध्वस्त कर वहां उसकी जगह मस्जिद खड़ी करने का यत्न किया था  उस समय अयोध्या में श्रीराम के जन्मस्थान पर स्थित प्राचीन और भव्य मंदिर को तोड़कर एक मस्जिद बनवाई थी, जो 1992 तक विद्यमान रही।

श्रीराम जन्म भूमि की मुक्ति के लिए सन 1528 से ही लगातार संघर्ष चलता रहा  22 ,23  दिसंबर 1949 की रात्रि अयोध्या के श्री राम जन्म भूमि मंदिर की  मुक्ति  का नया दौर शुरू हुआ

सारा जग है प्रेरणा  प्रभाव सिर्फ राम है

भाव सूचिया बहुत है भाव सिर्फ राम है

कामनाएं त्याग पुण्य काम की तलाश में

तीर्थ खुद भटक रहे थे धाम की तलाश में  

(कवि अमन अक्षर की कुछ पंक्ति है)

मंदिर आंदोलन को बनाया जन आंदोलन

इस लगभग 500 वर्षों में हुए संघर्ष और जन आंदोलन

 में अनेको राम भक्तों ने तन मन धन और जीवन समर्पित किया जिसमें यदि मै कुछ लोगों के नाम का उल्लेख करूँ तो बाक़ी के साथ न्याय नहीं होगा

शुद्ध हृदय की प्याली में विश्वास दीप निष्कंप  जलाकर

 कोटि कोटि पग बढ़े जा रहे तिल तिल जीवन गला गलाकर 

जब तक ध्येय ना पूरा होगा तब तक पग की गति ना जुड़ेगी 

आज कहे को चाहे दुनिया कल को झुके बिना ना रहेगी 

यह पंक्तियों को चरितार्थ करने वाले अनगिनत राम भक्तों के अथक प्रयासों के बाद  अब जन्मभूमि पर भव्य राम मंदिर का संकल्प पूरा हुआ है..


इस  आंदोलन को यदि आसानी से समझा जाए तो यह आंदोलन एक आक्रांता द्वारा तोड़े गए मंदिर की  पुनर्स्थापना का आंदोलन था  श्रीराम जन्म भूमि के लिए चलाया गया जन जागरण अभियान भारत के इतिहास का एक अद्वितीय अध्याय है इस आंदोलन के दूरगामी सांस्कृतिक सामाजिक और राजनीतिक महत्व है

संघर्ष के रक्त रंजित रूप में समय के अनुकूल बदलाव आया न्यायालयों का दौर शुरू हुआ मंदिर स्थल पर कीर्तन भजन पूजन और आराधना खुलकर होने लगी कांग्रेस शासित सरकार ने अनेक पाबंदियां लगाई और बाद में ताला डाल दिया लेकिन भगवान कापूजन और कीर्तन रोका ना जा सका वह अबाध गति से चलता रहा  तब से लेकर आजतक हिंदू समाज श्रीराम मंदिर हेतु संघर्ष करता रहा   21 दिसंबर 1992 को उच्च न्यायालय में लगी याचिका में खंडपीठ ने 1 जनवरी 1993 को अपना निर्णय सुनाते हुए हिंदू समाज को आरती दर्शन पूजा भोग का अधिकार दे दिया खंडपीठ ने विराजमान रामलला की सुरक्षा पूजा उपकरणों की सुरक्षा ध्वस्त ढांचे से प्राप्त पुरातात्विक महत्व के अवशेषों को सुरक्षित रखने का भी आदेश दिया

हम अभिवादन के लिए “राम राम” का इस्तेमाल करते रहे हैं इतना ही नहीं जब व्यक्ति का निधन हो जाता है तो उसे अंतिम यात्रा में “राम नाम सत्य है” कि टेक लगाते हैं ऐसे में यदि उसे रामचंद्र जी के अस्तित्व का प्रमाण मांगा जाए तो क्या स्थिति रही होगी

देश के सर्वोच्च न्यायालय ने दशकों पुराने मामले का किया सौहार्दपूर्ण तरीके से समाधान

9 नवम्बर  2019 को देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या पर अपना फैसला सुना दिया हर पक्ष को अपनी अपनी दलील रखने के लिए पर्याप्त समय और अवसर दिया गया न्याय के मंदिर ने दशकों पुराने मामले का पूर्ण तरीके से समाधान कर दिया

प्रत्येक राष्ट्र के कुछ आदर्श होते हैं जो उसके राष्ट्रनायकों के चरित्र द्वारा अभिव्यक्त होते हैं भारत के लिए राम केवल भगवान नहीं और संपूर्ण रूप से भारतीय हिंदुत्व राष्ट्रीय मूल्यों सामाजिक चिंतन और जीवन पद्धति के प्रतीक हैं  उनके बिना ना स्वस्थ समाज की परिकल्पना हो सकती है ना ही लोक कल्याणकारी शासन व्यवस्था की और न्याय प्रणाली की मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम भारतीय समाज के आदर्शपुरुष हैं उनके बिना भारतीय जीवन का अस्तित्व ही नहीं उन्होंने भारत को रामराज्य का आदर्श स्वरूप दिया है उनके जन्म स्थान पर बने मंदिर से अधिक महत्वपूर्ण सांस्कृतिकमान बिंदु भारतीयों के लिए और क्या हो सकता है श्री राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण का उद्देश्य मुस्लिमों का  विरोध नहीं है ना उनकी भावनाओं को चोट पहुंचाना है बल्कि एक आक्रांता द्वारा एक विदेशी द्वारा भारत के राष्ट्रीय सांस्कृतिक धार्मिक मामले में किए गए हस्तक्षेप राष्ट्रीय अपमान और पराजय का परिमार्जन करना है ।

पिछले वर्ष हमारे  जबलपुर में  डाक्टर अखिलेश गुमास्ता जी द्वारा आयोजित World Ramayan Conference में सम्मिलित होने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ जिसमें विभिन्न देशो के विचारक सम्मिलित होते रहे है इसी में इंडोनेशिया से आए कलाकारो द्वारा रामायण आधारित नृत्य नाटिका चित्रण किया ।इसमें भाग लेने वाले सभी कलाकार मुस्लिम थे जब नृत्य नाटिकाओं के मुख्य कलाकारों से पूछा गया कि वह कैसे रामायण का इतनी तन्मयता से प्रदर्शन करते हैं तो उनका कहना था

“इस्लाम हमारा धर्म है रामायण हमारी संस्कृति है प्रभु श्रीराम उसके समवाहक”

उसका यह जवाब सभी  सभी के चक्षु खोलने  के लिए काफ़ी था जो प्रभु श्रीराम को केवल धर्म से जोड़ते रहे

कितनी अजीब बात है ना जब किसी सवाल का जवाब हमारे आस पास होने के बाद भी हमको वह जवाब नहीं मिलता शायद वह ज्ञान चक्षु खोलने के लिए हमें हमेशा किसी ना किसी कृष्ण की आवश्यकता होती है मेरे लिए उस इंडोनेशियाई कलाकार का जवाब ही उतना ही महत्वपूर्ण था जिसने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए

बीते कुछ वर्षों में हिंदुत्व की बात करने वालों को भगवान  श्रीराम की बात करने वालों को उनका जयघोष जय श्रीराम कहने वालों को communal कहने का ट्रेंड सा चला आया था  जबकि महात्मा गांधी के लिए राम एक सर्वव्यापी ईश्वरीय शक्ति का स्वरूप थे। गांधी के अनुसार राम को केवल एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व मानकर उनके अस्तित्व के प्रमाणों को खोजना अपनी राह से भटकने के समान था। उनके लिए राम नैतिक मर्यादा का स्रोत भी थे। राम नाम को वह अमोघ मानते थे और इसी जाप को अपने भीतर के ईश्वरत्व को पुकारने की प्रक्रिया भी। गांधी के राम पर हिंदू धर्म का एकाधिकार नहीं था। उनके राम हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी के थे।

श्रीराम जन्मभूमि के  भूमि पूजन के शुभअवसर पर अयोध्या ही नहीं बल्कि पूरा भारत वर्ष दुनियाभर में रहने वाले करोड़ों सनातनी रामभक्त भादो में भी दीपावली मनाने जा रहे है

आख़िर क्यू ना मने दीपोत्सव

चलो कुछ दीपक जला  लें ,

जो अंधकार दूर भगाएंगे 

हम सब की कुटिया में भी 

कभी तो राम आएँगे….. !

जय श्रीराम