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श्रीराम जन्म भूमि कारसेवा हिन्दुत्व के पुनरोदय का शुभारंभ थी…

492 साल के संघर्षमयी इतिहास के बाद इस साल पहली बार अयोध्या में श्रीरामलला निर्माणाधीन भव्य और दिव्य प्रासादागृह में आसीन हैं । जहां भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री सम्मानीय नरेंद्र भाई मोदी जी 5 अगस्त बुधवार भाद्र कृष्ण पक्ष द्वितीया को पूज्य सन्तो व गणमान्य जनों की उपस्थिति में भव्य मंदिर का शिलान्यास कर रहे हैं चूंकि कई दशकों तक चले इस संघर्ष के बाद यह शुभ घड़ी आई है इसलिए इसका चिंतन कर मन जहां सहज पुलकित हो जाता है वहीं आत्म बलिदान से भरी सकल सनातनी हिंदू समाज की गौरवगाथा से नयन सहज भीग जाते हैं।

मुगल आक्रांता बाबर के सिपहसालार मीरबाकी के कृत्य से लेकर खंड- खंड हो रहे भारत में मुगल साम्राज्य, ब्रिटिश शासन और 1947 में मिली स्वतंत्रता तक राजतंत्र से इस प्रजातंत्र और निचली से लेकर देश के शीर्षस्थ न्यायालय तक की जो यात्रा अयोध्या ने भोगी उसी का परिणाम रहा कि देश – काल परिस्थिति के साथ – साथ समय – समय पर संघर्ष में आते गए बदलाव के बीच 1990 का वह साल आ गया जब कारसेवा करने देश भर से उत्तरप्रदेश के फैजाबाद जिले की तहसील अयोध्या में कारसेवकों का जमावड़ा लगा। इसे देश में हिंदुत्व और राष्ट्रीय विचारधारा के नव उदय की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

जब सुप्रीम कोर्ट का जो निर्णय आया उसकी सुनवाई के दौरान विद्वान एवम वयोवृद्ध अधिवक्ता केशव पाराशरण के जो तर्क सामने आये उसे पूरी दुनिया ने पढ़ा और सुना। उनके अकाट्य तर्कों के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये निर्णय के बाद श्री राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो गया। यह बात मैं इसलिये कह रहा हूं कि सन् 1990 के बाद हिंदू स्वाभिमान की जो बयार देश में बही उसने क्रमशः कीर्तिमान ध्वस्त करने शुरू किए जो आज तक अनवरत जारी हैं ।

उल्लेखनीय है कि 9 नवम्बर 1989 को अयोध्या में मंदिर निर्माण का शिलान्यास हुआ था जिसका मैं भी साक्षी रहा । ऐसे में मुझे भी अपनी युवावस्था के वे पल स्वाभाविक रूप से स्मरण आ रहे हैं जब 1990 में जबलपुर जिला बजरंग दल के प्रथम संयोजक का दायित्व मुझे सौंपा गया और जिला कार्यालय बल्देवबाग से संघ कार्यालय केशवकुटी पहुंचकर मैंने अपने 40 कारसेवक साथियों के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन प्रांत प्रचारक धर्मनारायण शर्मा जी की आज्ञा एवं पूज्य स्वामी श्यामदेवाचार्य जी का आशीर्वाद लेकर अयोध्या की ओर कूच किया ।

                                                                  कार सेवकों का एक जत्था…

चूंकि विश्व हिंदू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अशोक सिंहल जी एवं पूज्य संत समाज के आह्वान पर अयोध्या में 30 अक्टूबर को कार सेवा की घोषणा हो चुकी थी और उधर गुजरात के सोमनाथ से अयोध्या तक भा.ज.पा. के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को 23 अक्टूबर को बिहार में लालू यादव ने रोक दिया था। तब ऐसे में समूचे देश में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रामलहर दौड़ चुकी थी।

हालांकि इस दौरान उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव की सरकार वोटों की तुष्टीकरण की राजनीति से ग्रसित हो येन-केन प्रकारेण रामभक्त कारसेवकों कोे अयोध्या पहुंचने से रोकने गिरफ्तारी,लाठीचार्ज,अश्रुगैस और गोली चालन जैसे हथकंडे अपनाने की चेतावनी दे रही थी और स्वयं मुख्यमंत्री मुलायमसिंह खुले आम चुनौती दे रहे थे, कि अयोध्या में रामभक्त कारसेवक तो दूर परिंदा भी पर नहीं मार सकता।इन परिस्थितियों में जब समूचे देश में अलर्ट जारी हो चुका था और उत्तरप्रदेश जाने के सारे रास्ते रोके जा रहे थे तब अयोध्या पहुंच श्रीरामलला की सेवा का संकल्प हृदयगत रख 25 अक्टूबर 1990 की शाम इटारसी – इलाहाबाद पैसेंजर से हमारा जत्था जबलपुर से रवाना हो गया । उस समय विहिप के पदाधिकारियों से गुप्त सूचना मिली कि जहां तक ट्रेन जाए वहां तक ट्रेन से जायें और जहां रोक दिए जाओ वहां से पैदल जाना है। अगली सूचना आपको सतना स्टेशन में मिल जाएगी।

इसी ट्रेन में इटारसी से चढ़े आंध्रप्रद्रेश ,कर्नाटक,महाराष्ट्र से आ रहे कारसेवकों के जत्थे भी शामिल थे । लेकिन वे हमसे अलग अलग बैठे थे । चूंकि अलर्ट पूरे देश में था और उप्र जाने वाली सभी ट्रेन – बस आदि की जांच की जा रही थी इसलिए हम भी यहां से प्रयागराज में अस्थि विसर्जन के नाम पर कुछ साथी सिर मुड़ाकर सफेद कपड़े में कोयले एवं राख की पोटली लेकर बैठे हुये थे । कुछ साथी कारसेवक अलग-अलग बहाने, से डिब्बों में चहल कदमी कर रहे थे । हालांकि मानिकपुर तक तो मध्यप्रदेश की सीमा थी लेकिन फिर भी अज्ञात आशंका या छठी इंद्रिय के संकेत पर बैच, बिल्ले, भगवा गमछा आदि चीजें हम लोगों ने छुपाकर रख लीं , आगे वही हुआ जिसका डर था । मानिकपुर में जीआरपी-आरपीएफ ने पूरी ट्रेन खाली करा दी जिन्हें हमने यह झांसा दिया कि हम तो प्रयागराज अस्थि विसर्जन के लिए जा रहे हैं ।

आज इतने साल बाद यूं लगता है कि जैसे उस समय कुछ सिपाहियों ने सत्य को समझ कर भी मानों हमें अनदेखा किया था जो शायद रामलहर का ही प्रभाव था। बहरहाल यहां पहुंचनेे तक हमें यह सूचना मिल चुकी थी कि उप्र की सीमा के बाद सफर इतना आसान नहीं होगा । लिहाजा उप्र के पहले शंकरगढ़ स्टेशन में गिरफ्तारी से बचने तीन किलोमीटर पूर्व ही अचानक ट्रेन रूकते ही हमारा जत्था नीचे उतर गया और शंकरगढ के लिए पैदल खेत-मेढ़ होते हुए यात्रा शुरू हो गई। किसी तरह यहां सरस्वती शिशु मंदिर का पता पूछते हुए वहां पहुंच कर भोजन विश्राम किया और यहां से 26 अक्टूबर की सुबह – सुबह 4 बजे मुंह अंधेरे में कड़कड़ाती ठंड में पैदल यात्रा प्रारम्भ कर दी।

पैदल इसलिए क्योंकि जिस ट्रेन का ढाई किलोमीटर आगे हम इंतजार कर रहे थे उसके समेत उप्र की ओर जाने वाली सभी ट्रेन रद्द की जा चुकी थीं । जिसकी हमें कोई सूचना नहीं थी उस समय सूचना के इतने संसाधन ही नहीं थे। बहरहाल रेल पटरी के किनारे-किनारे पैदल चलते पारा ग्राम वहां से जसरा स्टेशन पहुंचे । यहां पुलिस लगी देख स्टेशन के पहले ही निकल खेत में उतरना पड़ा । छिपते – छिपाते किसी तरह ग्राम भीटा पहुंचे जत्थे को एक तिवारी परिवार ने तुलसी की पत्ती डाल कर चाय पिलवाई जो आज भी स्मृति में है ।

इसी परिवार की सहायता से हम यमुना नदी के तट पर पहुंचे तब तक दोपहर के चार बज चुके थे । यमुना नदी में करीब ढाई घंटे नाव का सफर कर नाविकों ने हमें करहैताघाट उतारा । लेकिन मेहनताना के रूप में एक रूपया भी नहीं लिया जिससे हमें लगा साक्षात निषादराज ही हमारे समक्ष हैं । उल्टे नाविकों ने स्थानीय मालगुजार बक्षराजसिंह का पता बताया जिनके निवास पर पहुंच कर हमें भोजन और विश्राम नसीब हो सका। थकान का आलम यह रहा कि कुछ साथियों को तो भोजन की भी सुध नहीं रही।

अब तक हम इलाहाबाद जिले की सीमा में आ चुके थे । यहां 27 अक्टूबर की सुबह हमारी यात्रा नूरल्लाह रोड से शुरू हुई जिससे शहर इलाहाबाद सिविल लाइन तक पुलिस से छिपते – छिपाते दो-दो चार-चार के समूह में अस्थि विसर्जन के नाम पर हमारा जत्था चलता रहा। इसी दौरान कहीं से दूध की व्यवस्था कर साथी जयप्रकाश तिवारी ने यहां सबको गर्म-गर्म दूध पिलवा दिया जो थकान और भूख से त्रस्त देह के लिए अमृत साबित हुआ। यहां तक आते – आते रास्ते में एक तीन फीट की लाठी सब ले चुके थे जो पदयात्रा में तीसरे पैर की तरह साथ निभा रही थी।

इस समय तक हम लोग सिविल लाइन के हनुमान मंदिर तक पहुंच गए थे जहां से रिक्शा , तांगा और ट्रेक्टर की सवारी निवेदन करने पर हमें मिल गई जिससे किसी तरह हम फाफामऊ पहुंच गए । यहां एक धर्मशाला में स्थानीय नागरिकों ने हमें भोजन कराया । इसी दौरान हमारे दक्षिण भारतीय साथी लक्ष्मणराव के परिचित आंध्र प्रदेश के जत्थे में कुछ लोग मिले जिनके साथ सत्संग में भाषाई अड़चन नहीं आई बल्कि आनंद आया क्योंकि भाव सबका एक ही था , श्रीरामलला की पुर्नस्थापना और श्रीराम जन्मभूमि के गौरव हेतु सत्यागृह की तैयारी । फाफामऊ से एक पैसेंजर ट्रेन द्वारा हम धुपियामऊ तक पहुंच गए जहां से वह ट्रेन भी निरस्त हो गई और पुनः पदयात्रा प्रारंभ हो गई। हालांकि अब तक दोपहर के साढ़े चार बज चुके थे और एक आश्रम से हमें ताजा दाल चावल खाने मिला ।

परिणाम स्वरूप रात्रि विश्राम वहीं हुआ और यात्रा का अगला दौर 29 अक्टूबर की सुबह चार बजे शुरू हुआ ।धुपियामऊ के खेत मेढ़ और पगडंडी पार करते हुए पदयात्री जब प्रतापगढ़ पहुंचे तो अग्रवाल-खंडेलवाल समाज ने चाय-नाश्ते की व्यवस्था कराई लेकिन रामकाज कीन्हे बिना मोहि कहां विश्राम की भांति जत्था यहां रुका नहीं बल्कि धन्यवाद देकर तत्काल आगे बढ़ गया। इसी दौरान किसी तरह सई नदी को पार किया और ताला गांव होते हुए अगला पड़ाव उजला गांव में डाला जहां सुबह साढ़े आठ बजे हमें नमकीन खाने को मिला । उसके बाद जत्था पैदल ही छोटा तिवारीपुर पहुंचा जहां स्नान और भोजन की व्यवस्था ग्रामीणों ने कराई।चूंकि समय कम था इसलिए यहां रुकने की बजाय जत्था भोजन के तत्काल बाद आगे बढ़ गया। यहां रास्ते में जबलपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता लाल सतेन्द्र सिंह बघेल जी की पुत्री श्रीमती मीनाक्षी सिंह जी के नेतृत्व में चल रहा सागर के कारसेवकों का जत्था भी मिला ।

यहां से खेत-मेढ़ , पगडंडी के रास्ते करारी गांव,भीकमपुरा होते हुए लगभग अपरान्ह चार बजे बुधिया गांव पहुंचे । बुधिया गांव में चाय-नाश्ता भी मिला । यहां से आगे बाबूगंज में भोजन प्राप्त हुआ और ट्रैक्टर सेे भामापुर पहुंचे यहां एक बडा नाला पार किया और धनीपुर पहुंचे ,जहां चाय,खिचड़ी के साथ पान भी खाने को मिला । लेकिन जत्था यहां भी नहीं रुका और रात दस बजे तक बड़ा तिवारीपुर पहुंच गया । बड़ा तिवारीपुर से करीब चार किलोमीटर का सफर कर गोमती नदी के तट पर पहुंचे ।खास बात यह रही कि यहाॅ कुछ दबंग हिंदू परिवार खुल कर कारसेवकों का साथ देने आगे आए और रात्रि 11 बजे गोमती नदी पार कराई ।

इसके बाद करीब दो किलोमीटर आगे पैदल जाससापारा गांव पहुंचे जहां एक मंदिर में चाय के बाद करीबन 20 घंटे की यात्रा की थकान उतारी, देश – दुनिया के समाचार जानने का एकमात्र सहारा ट्रांजिस्टर ही था । जिसके सहारे रात काटी और दूसरे दिन 30 अक्टूबर की सुबह छह बजे उधारपुर कस्बे में पहुंच गए । उधारपुर से मिश्रराडली गांव से ट्रेक्टर का इंतजाम कर बरहेतापुल से डबल नहर पार की और करीबन दस बजे पलिया हाईस्कूल होते हुए फैलपुर पहुंचे। एकादशी होने के कारण अनेक साथी व्रत उपवास वाले थे जिनके लिए उबले आलू , चाय, गुड़, लाई का इंतजाम किया।

यहां से बिलगडा-तारनपुर बैसगांव का कमर तक पानी भरा नाला उतर कर पार किया और ढाई बजे हैदरगंज पहुंचे। हैदरगंज में पता चला कि किसी साधु ने अयोध्या में रामजन्म भूमि मंदिर पर भगवा झंडा फहरा दिया है लेकिन पुलिस ने उन्हे गोली मार दी है । इस पर उस अज्ञात साधु को श्रद्धासुमन अर्पित कर विजय अनुभूति के साथ जत्था पुनः आगे बढ़ने लगा और अपरान्ह चार बजे सागीपुर से बलीपुर होते हुए रात 9 बजे जयसिंहमऊ पहुंच गया। जयसिंहमऊ के प्रधान ने अपनी माता के हाल ही में हुए देहांत के बाद शोक संतप्त रहते हुए भी हमारे लिए खिचड़ी बनवाई और रूकने की व्यवस्था की । जिसके बाद हमारा जत्था सुबह तमसा नदी पार कर रसूलाबाद, सुनैसा गांव होते हुए गंगोत्री पहुंचा।

यहां गंगोत्री में बिस्कुट, ब्रेड खाकर दर्शनपुर होते हुऐ करीबन बारह बजे अयोध्या की धरती में प्रवेश किया। अयोध्या पहुंचने के संकल्प के अनुभव की व्याख्या कर पाना मुश्किल है । लेकिन इतना बता सकता हूं कि वे क्षण अभिभूत करनेे वाले थे और सभी साथियों ने जय – जय श्रीराम का गगन भेदी नारा गुंजायमान कर दिया।

अयोध्या में बड़े भक्तमाल में भोजन की व्यवस्था हुई । यहां मणिराम छावनी चारधाम मंदिर में सभा हुई । रात्रि विश्राम भी यहीं किया । अब तक एक नवम्बर की सुबह हो चुकी थी और सुबह सरयू नदी में स्नान कर सभी कार सेवकों ने कारसेवा का संकल्प दोहराया। समूचे देश सहित अयोध्या का वातावरण बहुत ही तनावपूर्ण था उस पर से राम भक्तों की गगनभेदी ललकार,जयघोष , मुलायमसिंह की चेतावनी, शासन – प्रशासन की कठोरता-बर्बरता के बावजूद माहौल किसी के काबू में नहीं था। रामभक्त कारसेवा के लिए लालायित और सत्याग्रह पर उतारू थे जिन्हें रोकने पुलिस-प्रशासन और सुरक्षाबल नाकाम थे। उधर अयोध्या मेें कारसेवकों का जत्था बढ़ता ही जा रहा था । इसी दौरान अपरान्ह तीन बजे तक विहिप के अशोक सिंहल जी और उमा भारती ने नेतृत्व की कमान सम्हाल ली और सकल संत समाज और कारसेवकों के दबाव में यह तय हुआ कि कल 2 नवम्बर को दो तरफ से रामजन्मभूमि के लिए कूच किया जाएगा।

2 नवम्बर की सुबह 9 बजे आंसू गैस से बचने हेतु गीले गमछे लपेट चेहरे पर चूना लगा कर कारसेवक निकल पड़े । हमारा जत्था जब रामजन्मभूमि मार्ग पर सबसे आगे था तब तक वहां पुलिस-प्रशासन ने बैरियर लगा कारसेवकों को सख्ती से रोक दिया था नतीजा कारसेवक वहीं बैठ रामधुन गाने लगे इस स्थिति को देखकर प्रशासन ने आंसू गैस के गोले दागने शुरू कर दिए जो कि गीले गमछे और स्थानीय नागरिकों द्वारा डाले जा रहे पानी के कारण बेअसर थे। इसी दौरान हमारे जत्थे का नेतृत्व कर रहीं उमा भारती को महिला पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और यहां पुलिस ने कारसेवकों पर लाठीचार्ज कर दिया।

इसी आपाधापी में हमारा जत्था बैरियर तोड़ आगे बढ़ गया तभी एक आंसू गैस का गोला साथी महेन्द्र जैन की गर्दन पर आ कर लगा जिससे महेन्द्र लगभग अचेत हो गए और कहने लगे कि शरद भाई अब मेरा बचना संभव नहीं है आप इस संघर्ष को रुकने नहीं देना। इस दृश्य ने मुझे भी विचलित कर दिया और मैं साथियों की सहायता से महेन्द्र को उठा कर एक घर के भीतर ले गया ।उस घर के सभी सदस्य कारसेवकों पर हुए अत्याचार देख कर रो रहे थे और कह रहे थे कि हे भगवान अपने भक्तों पर यह अत्याचार आखिर क्यों हो रहा है ? तब तक अन्य साथी भी आसपास के घरों में घुस कर छतों पर आ चुके थे जिनकी तलाश में दूसरे घरों की छतों से पुलिस आ गई थी उस समय ऐसा लग रहा था कि पुलिस हम सबको भी गोली मार देगी तभी सब पुलिस वाले हमें चुपचाप वहीं दुबके रहने की चेतावनी देकर निकल गए लेकिन मैं छत से नीचे आकर अन्य साथियों को भीतर करने में लगा रहा क्योंकि बाहर अनवरत गोलीचालन हो रहा था।

इसी दौरान हमारे पीछे वाले जत्थे के एक अचेत कारसेवक को उठाकर मैं अंदर ला रहा था तभी एक पुलिस वाले ने मुझसे कहा कि तुम इसको भीतर मत ले जाओ इसे गोली लग चुकी है इसका अस्पताल जाना जरूरी है । बहरहाल तब तक कारसेवक तितरबितर हो चुके थे और चारों तरफ पुलिस के बूट और सायरन व गोली की आवाजें, अश्रुगैस के गोले दागने की आवाज के साथ चीख पुकार गूंज रही थी । अब तक लाठीचार्ज से घायल मेरे साथी रमेश रैकवार , विजय सेन, बसंत बैरागी, सुरेंद्र अग्रवाल, मन्नू केशरवानी, प्रेम लढिया, रामा राठौर, राजू सेन, सुभाष दुबे, नारायण साहू, राजू ठाकुर आदि मुझे पीछे होने की सलाह दे रहे थे ।

लेकिन मैं एक-एक को घर के भीतर करने में लगा रहा। इस दौरान मुझे भी लाठियां पड़ी लेकिन गोली या गोला नहीं लगा तभी कहीं से आवाज आई कि कलकत्ता से आए शरद और हेमंत कोठारी दोनों सगे भाई पुलिस की गोली से बलिदान बेदी पर चढ़ चुके हैं तो मन और व्यथित हो उठा उसके बाद किसी तरह छोटी गलियों से होते हुए हम सभी घायल साथियों सहित मणिराम छावनी पहुंचे लेकिन कुछ साथी रास्ते में छूट गए जिन्हे ढूंढने हम अस्पताल और थानों के चक्कर लगाने लगे । इसी दौरान आकाशवाणी रेडियो से पता चला कि जबलपुर के कुछ थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू लग चुका है। इसी बीच माननीय अशोक सिंहल जी को जबलपुर के जत्थे के बुरी तरह घायल होने की जानकारी मिली तो उन्होने ताई उर्मिला जामदार के माध्यम से हमारी कुशलता की जानकारी ली।

                                                                     कोठारी बंधु

उत्तरप्रदश सरकार के इस बर्बरतापूर्ण रवैये और आत्म बलिदान कर गए कारसेवकों को श्रद्धासुमन अर्पित करने सभी चारधाम मंदिर में 3 नवम्बर की सुबह 9 बजे एकत्रित हुए। बलिदानियों को श्रद्धांजलि देने और श्रीरामजन्म भूमि संघर्ष को अनवरत जारी रखने का संकल्प दोहराते हुए वापस जाने का निर्देश प्राप्त हुआ लेकिन हमारे कुछ साथी इस दौरान हमसे बिछड़ गए थे जिनकी पतासाजी की तो जानकारी मिली कि कुछ दोपहर बारह बजे वापस हो चुके हैं । इसके बाद शेष रह गए सभी साथियों को एकत्र कर शाम छह बजे अयोध्या से फैजाबाद आए यहां से विशेष ट्रेन द्वारा इलाहाबाद पहुंचे । यहां से इलाहाबाद इटारसी ट्रेन से 4 नवम्बर की सुबह जबलपुर वापस आये । हमारे इस जत्थे में बरेला से महेन्द्र जैन के साथ अशोक उपाध्याय, धन्नूदादा, इंद्रकुमार दुबे, भगवत दुबे भी शामिल थे।

जबलपुर पहुंचने पर तत्कालीन प्रांत प्रचारक धर्मनारायण शर्मा जी द्वारा केशवकुटी में बुलाई बैठक में पूरी जानकारी मैंने उन्हें दी। इस दौरान भाजपा के संगठन मंत्री मनोहर राव सहस्त्रबुद्धे, महेन्द्र श्रीवास्तव, भारतीय किसान संघ के कृष्णचंद्र सूर्यवंशी, विहिप के पदाधिकारी गोकुल प्रसाद अग्रवाल, दिनेश गोयल, सुरेश जी, जुगराजधर द्विवेदी, जावलेकर जी, गणपत राव सप्रे,बाबूलाल नामदेव, नानाजी देशपांडे जी सहित कई प्रमुख पदाधिकारी भी उपस्थित थे। इन सभी महानुभावों ने मुझे इस घटनाक्रम को लिपिबद्ध करने का सुझाव दिया था ।

तब से यह स्वप्न मेरे मन में था कि मैं इस समूचे वृतांत को लिखूं । कुछ दिन पहले ही संयोगवश साथी कार सेवक महेंद्र जैन को बरेला स्थित अपने निवास पर पुरानी डायरी मिली जो उन्होंने मुझे उपलब्ध कराई । उससे मिली जानकारी और अपने संस्मरण के आधार पर मैने यह वृतांत लिपिबद्ध किया है। यहां मैं यह उल्लेख करना चाहता हूं कि पिछले साल घर की सफाई के दौरान भगवा गमछे में लिपटी हुई एक लकड़ी मेरी माताजी को मिली तो उन्होने मुझसे पूछा कि शरद यह लकड़ी किसकी है ।

ये कई सालों से रखी हुई है तो मैंने उन्हे बताया कि अयोध्या की पदयात्रा की साक्षी यही लकड़ी है। चूंकि इतने वर्षों बाद उस लकड़ी पर नजर पड़ी तो मां ने कहा इसे पुण्य सलिला मां नर्मदा की गोद में विश्राम दो। पिछले वर्ष देवउठनी एकादशी पर मैंने उसे मां नर्मदा के तट सिद्धघाट में समर्पित कर दिया। मुझे आज भी अच्छे से याद है कि उस समय भी मेरे मन के भाव कुछ ऐसे थे कि मानो मैं माँ नर्मदा से एक ही प्रश्न बार बार पूछ रहा हूं कि माँ प्रभु श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में श्री राम का भव्य मंदिर कब बनेगा? वह ऐतिहासिक व अविस्मरणीय दिन 5 अगस्त 2020 राम मंदिर के भव्य निर्माण के प्रारंभ के साथ राष्ट्र नवनिर्माण के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
जय श्री राम

                       शरद अग्रवाल
(लेखक:- वर्ष 1990 में बजरंगदल के प्रथम जिला संयोजक थे)