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संगठित हिन्दू:बदलते भारत की मांग

      संगठित हिन्दू समाज

कल हमने ‘हिन्दू’ इस शब्द की व्याख्या करने का प्रयास किया. किन्तु मन में प्रश्न यह उठता हैं, कि यह हिन्दू समाज कभी ‘समाज’ के रूप में भी था..? संगठित था..?

आज के समाजशास्त्रियों का मानना हैं, कि हिन्दुओं को ‘हिन्दू’ इस नाते संगठित करना अत्यधिक कठिन हैं. आप उन्हें जातियों के आधार पर तो संगठित कर सकते हैं – अग्रवाल समाज, क्षत्रिय समाज, कायस्थ समाज, कुर्मी समाज, पटेल समाज, कान्यकुब्ज ब्राह्मण, सरयुपारिन ब्राह्मण आदि. आप उन्हें भाषिक समूह के रूप में भी संगठित कर सकते हैं – तामिल, मराठी, कन्नड़, बंगला आदि.. किन्तु इन सब के ऊपर उठकर इस समाज को ‘हिन्दू’ इस नाते से खड़ा करना असंभव की श्रेणी में आता हैं.

किसी हिन्दू के कष्ट देखकर, या हिन्दू समाज की अवमानना पर, अवहेलना पर यह समाज क्रोधित हुआ है, खौल उठा है ऐसा भी नहीं दिखता. यदि ऐसा होता, तो 1971 में पाकिस्तान ने पुर्व पाकिस्तान (आज के बंगला देश) में दो लाख से ज्यादा हिन्दुओंका पाशविक पध्दति से वंशविच्छेद (genocide) किया था, अमानुष हत्याएं की थी, अगणित बलात्कार किये थे, तब हिन्दू समाज के खौलने का कोई उदाहरण सामने नहीं आया था.

कश्मीर की घाटियों से हिन्दुओं को मार मार कर भगाया गया. तब भी देश का हिन्दू समाज कमोबेश सोया रहा. हिन्दुओं के आराध्य भगवान श्रीराम अभी अभी तक टाट और बांस के मंदिर में कैद थे, तब भी हिन्दू समाज न जागृत दिखता था और न ही आक्रोशित..!  

तो क्या, हिन्दू समाज इतिहास में भी ऐसा ही था..?स्पष्ट उत्तर हैं– नहीं.

इतिहास में हिन्दू समाज, ‘समाज’ के रूप में एक था. समरस था और संगठित भी था.

जी हां. यही हिन्दू समाज की विशेषता थी. प्रख्यात चिंतक डॉ. पु. ग. सहस्त्रबुध्दे ने इसका सुन्दर वर्णन किया हैं. समाज को संगठित करने के आयाम क्या होते हैं..? अगर ‘धर्म’ का आधार ले, तो सारा यूरोप मूलतः था. उसे तो एक ‘समाज’, एक ‘राष्ट्र’ के रूप में खड़ा होना चाहिए था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दुनिया के सबसे बड़े युध्द तो यूरोप की धरती पर हे लड़े गए. और आज भी यूरोप एक राष्ट्र नहीं हैं. हमारा भारतवर्ष यूरोप जैसा ही एक खंड हैं. यदि हमारे पूर्वजों ने समाज को संगठित न रखा होता, तो शायद आज हम भी यूरोप जैसे ही अनेक राष्ट्रों में बटे होते.

अरब राष्ट्रों का आधार तो एक धर्म है ही, उनकी भाषा, आचार–विचार पद्धधति भी समान है. लेकिन फिर भी वे अनेक राष्ट्र हैं. अफगानिस्तान से मोरोक्को तक मुस्लिम साम्राज्य अनेक शताब्दियों से हैं, लेकिन यह सारा भूप्रदेश एक राष्ट्र के रूप में किसी के स्वप्न में भी अस्तित्व में नहीं आया. प्राचीन काल में चीन और वर्तमान में अमेरिका ने ही इस प्रकार से एक राष्ट्र के रूप में खड़े होने में सफलता प्राप्त की हैं. इसके आधार पर, हमारे पूर्वजों का यश कितना दुर्लभ था, इसका अंदाज हम लगा सकते हैं.

हजारो वर्ष पूर्व हमारे पूर्वजों ने इस ‘राष्ट्र’ को खड़ा करने के लिए कुछ बाते तय की थी –

1. इस राष्ट्र में रहने वाला संपूर्ण समाज एकरूप, एकरस होना चाहिये, यह उनका दृढनिश्चय था. 

2. इस ध्येय की आड़ में वर्ण, वंश, आचार पध्दति नहीं आएगी यह उन्होंने सुनिश्चित किया था.

3. इसलिये सहिष्णुता और संग्राहकता यह दोनों दुर्लभ गुण भारतियों में विकसित हुए.