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सामूहिक स्वराज व्यक्तिगत स्वराज में परिवर्तित हो जाता है तो पाकिस्तान का निर्माण होता है

15 अगस्त का दिन कहता आजादी अभी अधूरी है सपने सच होने बाकी है रावी की शपथ ना पूरी है 

पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी के द्वारा 15 अगस्त 1947 के दिन मर्म के  रूप मे लिखी गई यह कविता है जिसमें बताया गया है कि 31 दिसंबर 1929 को रावी नदी के तट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारतीय तिरंगा झंडा फहरा  कर पूर्ण स्वराज का संकल्प लिया था एवं आगामी 26 जनवरी को देश भर मे  शपथ के कार्यक्रम का आयोजन का निर्णय किया था उस समय अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू और इस प्रस्ताव का समर्थन महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया, लेकिन 15 अगस्त 1947 को देश दो टुकड़ों में विभाजित हो  गया हिंदुस्तान-पाकिस्तान । 

विभाजन केवल धरती का नहीं होता विभाजन वहाँ रहने वालों की  सवेदनाओं  का भी होता है। धर्म के आधार पर हुए इस विभाजन के कारण लाखों लोगों को अपना घर छोड़कर अपनी संपत्ति छोड़ कर अपनी मातृभूमि जिसके लिए वे वर्षों लड़ते रहे  जिसकी भावना उस भूमि पर बरसों से थी भूमि भले ही गुलाम रही हो लेकिन उसका गुजरबसर उसी भूमि पर होता था और आजादी के बाद उस भूमि को उसे छोड़ना पड़ता है विश्व इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को कभी भी पलायन नहीं होना पड़ा था |आमतौर पर अगस्त का महीना बारिश का रहता है आसपास की गलियां सड़कें बारिश के पानी से भर जाती हैं लेकिन अगस्त महिना बारिश के पानी की जगह वहां की सड़के खून से सन चुकी थी । 

विभाजन का मुख्य कारण उस समय दो प्रकार की विचारधाराओं के मध्य संघर्ष था 

“एक जिन्हें आजाद देश चाहिए और दूसरे वे जिन्हें अलग देश चाहिए “

बंगाल विभाजन वह घाव जो कभी भर ना सक, लॉर्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन के समय कहा था बंगाल का विभाजन की सुविधाओं के लिए नहीं बल्कि मुस्लिम प्रांत बनाया जा रहा है जिसमें इस्लाम और उनके अनुयायियों की प्रधानता होगी”  इस तरह ब्रिटिश सरकार के द्वारा विभाजन को धार्मिक रंग देना शुरू किया गया।16 अक्टूबर 1905 को जब बंगाल का विभाजन हुआ उसे विरोध दिवस के रूप में सारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और देशवासियों ने मनाया । जुलूस निकाले प्रदर्शन हुए सड़कों पर वंदे मातरम के नारे से आंदोलनों ने नया रूप लिया बंगाल ही नहीं बल्कि पूरा भारत देश आंदोलन कर रहा था विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हो रहा था। अंततः 12 दिसंबर 1911 को बंगाल का विभाजन वापस ले लिया गया और 1 जनवरी 1912 में इसे प्रभावी रूप से लागू कर दिया गया| बंगाल का विभाजन और पुनः एक करने की ब्रिटिश सरकार की कोशिश ने भारत को गहरा घाव दिया जिसकी पीड़ा आज भी ना केवल बंगाल की जनता को है बल्कि पूरे भारत को बंगाल विभाजन को वापस लेने के बाद जो घाव भरने का प्रयास किया था वह घाव भर ना पाया वह घाव 1947 में पुनः खुल गया । 

बंगाल का विभाजन भारत की एकता अखंडता के इतिहास में एक बड़ा मोड़ लेने वाली घटना थी वास्तव में बंगाल का विभाजन एक पाकिस्तान के बीजारोपण की शुरुआत थी ।  

वंदे मातरम का विभाजन  (देश के विभाजन के विचार को बल)

जिस वंदे मातरम का उद्घोष लगाकर स्वतंत्रता  संग्राम सेनानियों ने बंगाल का विभाजन रद्द करा दिया जब उस वंदे मातरम को धर्म के चश्मे से देखा जाने लगा तब वंदे मातरम का विभाजन हो जाता है जबकि खिलाफत आंदोलन के समय दिनों की शुरुआत वंदे मातरम से हुआ करती थी और अनेक मुस्लिम नेता सम्मान में उठकर खड़े हुआ करते थे 1882 से आया वंदे मातरम का पहला विरोध सन 1923 में काकीनाडा कांग्रेस अधिवेशन में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष मोहम्मद अहमद अली ने की | अंततः तुष्टीकरण की राजनीति के कारण वंदे मातरम का विभाजन हो गया और देश के विभाजन के विचार को बल मिलना शुरू हो गया  । 

विचार परिवर्तन

हम सभी ने अपने विद्यार्थी जीवन में एक गीत जरूर सुना होगा गाया भी होगा

 “सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा”

यह गीत सन 1905 इकबाल ने लिखा था जो कि हिंदुस्तान की आजादी के पहले “तराना ए हिंद” के नाम से लिखा था| उस समय सामूहिक देशभक्ति गीत के द्वारा अविभाजित हिंदुस्तान के लोगों को एक साथ रहने की शिक्षा  दिया करते थे उस गीत में कुछ ऐसे अंश भी हैं जिसमें सभी धर्मों को यह कहा गया है कि

“हिंदी है हम वतन हैं हिंदोस्तां हमारा”

वे देशभक्ति और राष्ट्रवाद की प्रेरणा भी दिया करते थे लेकिन कालांतर में जाकर उन्होंने बाद जो लिखा उसको सुनकर और उसको पढ़कर आप सभी को आश्चर्य भी हो सकता है कि ऐसा व्यक्तित्व जो सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा” की बात कर रहा था उसने तराना ए हिंद के बाद तराना ए मिली लिखा जिसके बोल थे   

“मुस्लिम है हम वतन हैं सारा जहां हमारा 

आसान नहीं मिटाना नामों निशा हमारा”

वर्ष 1938 में जिन्ना को लेकर इकबाल ने अपना भाषण दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि

 “केवल एक ही रास्ता है मुसलमानों को जिन्ना  के हाथों को मजबूत करना चाहिए उन्हें मुस्लिम लीग में शामिल होना चाहिए भारत की आजादी का प्रश्न जैसा कि अब हल किया जा रहा है हिंदुओं और अंग्रेजो  दोनों के खिलाफ हमारे संयुक्त मोर्चे द्वारा काउंटर किया जा सकता है इसके बिना हमारी मांगों को स्वीकार नहीं किया जाएगा”

1933 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय के छात्र चौधरी रहमत अली ने पंजाब के पी(P) अफगानिस्तान के (A)कश्मीर के (K)के बलूचिस्तान  के स्तान(ISTAN) को लेकर पाकिस्तान की परिकल्पना को जन्म दिया था । जो  विश्व के पटल पर  अलग पाकिस्तान देश की पहली मांग थी उसके पश्चात 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के  अधिवेशन में लाहौर में हुआ था इसकी अध्यक्षता मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी इस अधिवेशन में भारत से पृथक एक अलग मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया । अब यह संघर्ष भारतीय बनाम अंग्रेज नहीं रह गया था बल्कि कांग्रेस, मुस्लिम लीग, और ब्रिटिश शासन तीनों के बीच का संघर्ष था । 

डॉ राम मनोहर लोहिया ने विभाजन को कभी भी स्वीकार नहीं किया था और वे इसके विरोधी थे मौलाना आजाद खान, अब्दुल गफ्फार खान, इमारत केसरिया, के मौलाना सरदार ,मौलाना अकील ,उर रहमान तुफैल ,अहमद मंगलोरी जैसे कई लोग थे जिन्होंने बहुत सक्रियता के साथ मुस्लिम लीग की विभाजन राजनीति का विरोध किया था  

यह बात सिद्ध हो चुकी है सामूहिक स्वराज व्यक्तिगत स्वराज में परिवर्तित हो जाता है तो पाकिस्तान का निर्माण होता है 

3 जून सन 1947 ईस्वी को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने विभाजन को स्वीकार करने के साथ ही जनता से अपील करते हुए कहा था कि 

”कई पीढ़ियों से हमने स्वतंत्र संयुक्त भारत के लिए संघर्ष किया तथा सपने भी देखे हैं इसलिए उस देश के विभाजन का विचार भी बहुत कष्टदायक है परंतु फिर भी मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमारा वर्तमान निर्णय सही है यह समझना आवश्यक है कि तलवारों द्वारा भी अन्य अनेक प्रांतों को भारतीय संघ राज्य में रखना संभव नहीं यदि उन्हें जबरन भारतीय संघ में रखा जा सके जो तो कोई प्रगति और नियोजन संभाव नहीं होंगे राष्ट्र में संघर्ष और परस्पर झगड़ों के जारी रहने से देश की प्रगति रुक जाएगी भोली जनता के कत्ल से तो विभाजन ही अच्छा है पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखा है हालात की मजबूरी थी और अनुभव किया गया कि हम जिस मार्ग पर चल रहे हैं उसके द्वारा गतिरोध को हल नहीं किया जा सकता पता हमको देश का विभाजन स्वीकार करना पड़ा । ” 

इस प्रकार की घटना अमेरिका भी हुई थी जब तत्कालीन राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने अमेरिका के विभाजन की जगह गृहयुद्ध को स्वीकार किया था अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही ग्रह युद्ध के बीज पनप रहे थे  किंतु बड़ी कुशलता से अब्राहम लिंकन ने गृह युद्ध को स्वीकारा और बंटवारे को नकारा इस गृहयुद्ध में लगभग 600000(छः लाख ) से अधिक मौतें हुई किंतु उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका संयुक्त राज्य अमेरिका के रूप में बने रहे आज भी एक है। 

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए बटवारे का अर्थ

15 अगस्त 1947 को उस समय जीवित कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अपने सपनों वाला पूर्ण स्वराज ढूंढ रहे होंगे वे  ढूंढ रहे होंगे उस लाहौर को जहां भगत सिंह शहीद हुए थे वे  ढूंढ रहे  होंगे गुरु नानक की जन्मस्थली ननकाना साहिब को वे ढूंढ रहे होंगे बलूचिस्तान की हिंगलाज माता के मंदिर को वे  ढूंढ रहे होंगे  ढाका के शक्ति पीठ ढाकेश्वरी मंदिर को बंगाल के विभाजन की विभीषिका के विरुद्ध लड़ रहे उन सभी  स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को जिन्होंने बंगाल का विभाजन होने नहीं दिया लेकिन उसके कुछ वर्षों बाद बंगाल ही नहीं बल्कि देश का विभाजन हो गया था |

 महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था लेकिन यह दुर्भाग्य है कि अंग्रेजों ने तो भारत छोड़ा साथ ही  साथ भारत के कई मुसलमान भारत छोड़कर चले गए ।  

पाकिस्तान के मशहूर शायर फैज अहमद फैज ने भी विभाजन के बाद की व्यथा  अपनी शायरी के माध्यम से व्यक्त की 

सुबह_ए_आजादी(अगस्त 1947)

ये दाग दाग उजाला,ये शबगजीदा सहर

वो इंतजार था जिसका,ये वो सहर तो नहीं ।

ये वो सहर तो नहीं जिस की आरज़ू लेकर

चले थे यार की मिल जाएगी कहीं न कहीं ।।

बांग्लादेश का अपनी संस्कृति में वापस लौटने का कदम

1906 में रविंद्र नाथ टैगोर ने आमार सोनार बांग्ला की रचना की जो बंटवारे का विरोध करने वाली रचना थी जिसमें बंगाल की अस्मिता के बारे में बताया गया था 1971 में यह गीत बांग्लादेश का राष्ट्रगान बन गया

 रविंद्र नाथ टैगोर जी  भी  अखंड भारत की संकल्पना रखते थे  वर्ष  1940 मे वे दुनिया मे नहीं रहे यदि होते तो अधूरी आजादी को देख कर दुखी होते। 

वर्ष 1947 में बंगाल का दूसरी बार विभाजन हुआ जो पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाने लगा उस समय बंगाल के मुसलमानों की यह सोच थी कि एक पृथक क्षेत्र उन्हें शिक्षा रोजगार की संभावनाएं अधिक अवसर अधिक संभावनाएं उपलब्ध कराएगा जबकि यह सोच  गलत साबित हुई और उन्होंने अपनी भूल सुधारी  पुनः बांग्लादेश बनाबांग्लादेश की  अपनी भाषा और संस्कृति की अलग पहचान है वहां 98% आबादी बांग्ला भाषा का प्रयोग करती है वहां की अधिकारिक भाषा भी बांग्ला है यही कारण था वहां की संस्कृति अलग थी जिस पर पाकिस्तान का अलगाववादी  रंग नहीं चढ़  पाया । बलूचिस्तान भी उसी ओर बढ़ रहा है । 

“अखंड भारत की ओर बांग्लादेश कदम बढ़ा चुका है वह पुनःअपनी संस्कृति में वापस आने की प्रक्रिया में  है”

अखंड भारत के लाभ

अगर अखंड भारत बन जाता है तो हमारी दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या होगी ।  हम विश्व की 21% जनसंख्या  के मालिक होंगे । हमारे पास दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा क्षेत्रफल होगा अभी वर्तमान में हम सातवें नंबर पर हैं। हमारी सेना भी विश्व की सबसे ज्यादा संख्या वाली हो जाएगी ।  अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सुलभ एवं विस्तृत होगा । 

अखंड भारत की संकल्पना 

भारत में मुस्लिम आबादी 14 प्रतिशत  है लेकिन अखंड हो जाने के बाद इन देशों की  जनसंख्या  शामिल हो जाने पर लगभग मुस्लिम आबादी 30% के बराबर उनके हो जाएगीभारत में मुसलमानों की कोई विशेष भाषा नहीं रही  बंगाल के मुसलमान बंगाली बोलते हैं पंजाब के मुसलमान पंजाबी बोलते हैं बिहार के मुसलमान बिहारी बोलते हैं गुजरात के मुसलमान गुजराती बोलते हैं चेन्नई के  मुसलमान तमिल  भाषा बोलते हैं साथ ही साथ चेन्नई के मुसलमान और चेन्नई के हिंदू की उपासना पद्धति और भोजन पद्धति को छोड़ दिया जाए और चेन्नई के मुसलमान की तुलना गुजरात के मुसलमान से की जाए तो दोनों के रहन सहन मे  अपेक्षाकृत चेन्नई में रहने वाले मुसलमान और चेन्नई में रहने वाले हिंदू का जनजीवन और जीवन पद्धति लगभग बराबर ही रहेगी यही तो एक कारण है अखंड भारत की ओर बढ़ते कदम का क्योंकि अखंड भारत उपासना पद्धति और भाषा पर नहीं  बल्कि  संस्कृति पर आधारित है।  

आज की वर्तमान परिस्थिति में अखंड भारत का सपना हो सकता है कि बहुत सारे लोगों को एक काल्पनिक  सपने की तरह या एक असंभव विचार लगे किंतु किसी राष्ट्र के लिए या  राष्ट्र की संकल्पना के लिए 50 या 100 वर्ष कम ही  होते हैं अगर इतिहास के कालखंड पर जाएंगे तो पाएंगे कि आज से लगभग 100 वर्ष पहले ऐसे देश अस्तित्व में ही नहीं थे जो आज अस्तित्व में है और आने वाले 100 वर्षों में कई देश एक भी हो सकते हैं बन भी सकते हैं बांग्लादेश नया देश बना जर्मनी एक हुआ ।  

 “जब बर्लिन (जर्मनी) की दीवार टूट सकती है तो भारत की सीमाएं एक  क्यों नहीं हो सकती”

किसी राष्ट्र की संकल्पना संस्कृति के आधार पर होती है धर्म के आधार पर नहीं यदि धर्म के आधार पर होती तो सारे मुस्लिम राष्ट्र सारे ईसाई देश एक देश होते यदि समान रूप रंग  के आधार पर देश बनता तो जापान कोरिया चीन म्यांमार इंडोनेशिया यह एक राष्ट्र होते । 

भारत की परंपरा और राष्ट्रीयता किसी भी धर्म के खिलाफ नहीं है सभी  लोग खुद को राष्ट्रीय जीवन के साथ जोड़ेंगे और अखंड भारत एक वास्तविकता होगी भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश,अफगानिस्तान को एक करने की इस बाधा को दूर करने में सक्षम होंगे । 

वह “सिंध” फिर हमारा होगा

भारत का राष्ट्रगान जिसे प्रत्येक भारतीय गाते हुए  गौरवान्वित होता है उसकी एक पंक्ति है 

”पंजाब सिंध गुजरात मराठा द्रविड़ उत्कल बंग”

हमारे राष्ट्रगान में से  सिंध शब्द को हटाया नहीं | सिंध प्रांत वर्तमान भारत में नहीं है बल्कि पाकिस्तान मे है  लेकिन हम अपने राष्ट्रगान में सिंध का उल्लेख भी करते हैं क्योंकि  आज नहीं तो कल सिंध भी  भारत का होगा  और पूर्ण स्वराज का सपना हमारे पूर्वजों ने देखा था वह सच होगा । 

महात्मा गांधी भारत का विभाजन न होने का वचन पूर्ण न होने की कसक मे अंतिम समय तक रहे उन्होंने पाकिस्तान जाने के संदर्भ मे कहा था कि 

“भारत के दंगे  शांत होने के बाद वे पाकिस्तान भी जाएंगे इसके लिए वह कोई पासपोर्ट नहीं लेंगे क्योंकि पाकिस्तान भी उन्हीं का देश है और अपने देश जाने के लिए उन्हें पासपोर्ट नहीं चाहिए”

 तिब्बत का संघर्ष है प्रेरणादायक

हर वर्ष मै जबलपुर (मध्यप्रदेश) में हर ठंड के मौसम मे   गोल बाजार में लगने वाले तिब्बती मार्केट जाता हूं जहां पर गर्म कपड़े काफी कम दामों में और अच्छी क्वालिटी के मिल जाते हैं तिब्बती मार्केट में खरीदे हुए समान को जिस  थैले मे रखकर  हम सभी को देते हैं उसमे उनके देश का नक्शा बना हुआ है यह नक्शा नहीं उनकी भावना है जो उसे जीवंत करने के लिए तीन पीढ़ी से संघर्षरत हैं इतने वर्षों मे उनका आत्मविश्वास तनिक भी कम नहीं हुआ है  

आज तिब्बत का  स्वतंत्रता आंदोलन जो पिछले 60 सालों में अपने देश से दूर दूसरे देशों की धरती पर भी जारी है बल्कि समय बढ़ते बढ़ते उनका आत्मविश्वास और बढ़ रहा है मानो वे चीन से कह रहे हैं 

“कब तक रोकोगे हमें हम अपने देश पर जरूर आएंगे”

जब तिब्बत  जैसा देश जो भूमिहीन होकर भी अपनी अस्मिता के लिए लड़ रहा है संघर्ष कर रहा है अपनी संस्कृति को बनाए रखने के साथसाथ अपनी भूमि के बिना भी उसे अपनी मां मानकर नक्शे के रूप में सदा अपने दिल में धारण किया हुआ  है तो हमारे जैसा विशाल राष्ट्र जिससे दुनिया के कई देशों को प्रेरणा दी है आज नहीं तो कल अखंड भारत के सपने को हम पूरा कर पाएंगे |

सन 1971 में बांग्लादेश अखंड भारत के सपने को पूरा करने के लिए एक कदम आगे बढ़ चुका है उसी तरह पाकिस्तान को भी अपने पुराने घर में लौटना होगा अपनी संस्कृति को समझकर उस पर गर्व करना होगा तभी हम इस व्यक्तिगत स्वराज को परिवर्तित कर सामूहिक स्वराज में परिवर्तित कर पाएंगे और भारत को पुनः अखंड बनाएंगे । 

और अब अंत में अटल जी की कविता जिसका मैंने शुरुआत में प्रारंभ किया था उसकी अंतिम कुछ पंक्तियों को संकल्प के रूप मे दिये जा रहा हूं 

बस इसीलिए तो कहता हूँ आज़ादी अभी अधूरी है 
कैसे उल्लास मनाऊँ मैं? थोड़े दिन की मजबूरी है॥ 

दिन दूर नहीं खंडित भारत को पुनः अखंड बनाएँगे 
गिलगित से गारो पर्वत तक आजादी पर्व मनाएँगे॥ 

उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें 
जो पाया उसमें खो न जाएँ, जो खोया उसका ध्यान करें।।

-जय हिन्द