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‘सेन्ट्रल विस्टा’ परियोजना याने नया संसद भवन परिसर

कांग्रेस की नकारात्मक राजनीति इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुयी है। चाहे कोरोना महामारी का सवाल हो, चाहे उससे जुड़ी आक्सीजन की कमी या बेड की कमी या (इंजेक्शन) वैक्सीन की कमी का  मामला। देश का हित इस बात में होता है कि जनता से जुड़े मामलों में देश का प्रत्येक राजनीतिक दल या सामाजिक संस्था सरकार का सहयोग करें। आपात स्थिति में सरकार की मदद से ही जनता तक सुविधायें सरलता से पहुंचायी जा सकती हैं। अपने देश में हाल बिल्कुल उलट है। यह तो और भी आश्चर्यजनक है कि अपनी राजनैतिक रोटी सैंकने के लिये आपात स्थिति में घृणित चालें चली जा रहीं हैं। गत दिनो वैक्सीन को लेकर घृणित चालें चलकर भ्रम फैलाया गया अब वे ही लोग लुक-छिपकर वैक्सीन लगवा रहे हैं।

देशभर में एक छत्र शासन करने वाली 131 वर्ष पुरानी पार्टी के सत्ता से बाहर हो जाने की छटपटाहट तो समझी जा सकती है, लेकिन देशहित को भी षड़यंत्रों के माध्यम से बलाये ताक रख दिया जाये, यह तो कभी भी सत्कार्य नहीं कहा जा सकेगा।

अभी हाल ही में ‘सेन्ट्रल विस्टा’ परियोजना का विरोध ‘प्रधानमंत्री का महल’ के रूप में उल्लेख करते हुये किया जा रहा है। यह कितना बड़ा झूठ है। यह विरोध मात्र इस दुर्भावना से किया जा रहा है ताकि मोदीजी को इसका श्रेय न मिल सके।

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तीन किलोमीटर से अधिक लम्बे क्षेत्र में चल रहे अनेक प्रोजेक्टों को मिलाकर ‘सेन्ट्रल विस्टा’ नाम दिया गया है। मक्कारी की इससे बड़ी पराकाष्ठा क्या हो सकती है? जब इसे प्रधानमंत्री आवास या प्रधानमंत्री का महल के नाम से राजनीतिक छली दाँव चलते अपना बौद्धिक दिवालियापन प्रकट करते हैं। इस निर्माण कार्य का क्षेत्रफल 65000 वर्गमीटर के आसपास है, जिस पर व्यय की जाने वाली अनुमानित राषि 971 करोड़ है।

इस ‘सेन्ट्रल विस्टा’ के अंतर्गत एक नये संसद भवन का निर्माण किया जाना है जिसमें 888 संसद सदस्यों के बैठने की व्यवस्था होगी। वहीं संयुक्त सत्र के अवसर पर 1224 सदस्यों (संसद के) की  बैठने की व्यवस्था की जा सकेगी। (इसमें राज्यसभा के 384 सदस्य भी बैठ सकेंगे।)

इस ‘सेन्ट्रल विस्टा’ प्रोजेक्ट के अंतर्गत राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक फैले राजपथ पर पड़ने वाले सरकारी भवनों का पुनर्निर्माण या पुनरूद्धार किया जाना है।

‘सेन्ट्रल विस्टा’ प्रोजेक्ट के अंतर्गत नया त्रिकोणीय संसद भवन, कामन केन्द्रीय सचिवालय तथा तीन किलोमीटर राजपथ को रिडेवलप किया जायेगा। इसमें नये आवासीय परिसर का भी प्रस्ताव है, जिसमें प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति के आवास के अलावा कई नये केन्द्रीय कार्यालय भवन होंगे ताकि सभी मंत्रालयों और विभागों को समायोजित किया जा सके।

संसद भवन के आसपास कांग्रेसी भूमि स्वामियों के भवन (लूटियन जोन) स्थित भारी भरकम राशि पर किराये पर ले लिये गये थे जिस पर सरकार को प्रतिवर्ष लगभग एक हजार करोड़ रूपया चुकाना पड़ता है। इस परिसर के निर्माण हो जाने के उपरान्त यह एक हजार करोड़ की राशि भी बचने लगेगी।

एक ही परिसर में आसपास मंत्रालयों, विभिन्न कार्यालयों के होने से वाहनों की आवा-जाही कम होगी और ट्रेफिक  सम्बंधी समस्या स्वयं हल हो सकेगी। कांग्रेस सहित पूरा विपक्ष ऐसी दहाड़ मारकर रो-चीख रहा है, मानो मोदीजी की निजी सम्पत्ति हो।

यह प्रोजेक्ट सन् 2012 में कांग्रेस के शासन में तत्कालीन लोक सभाध्यक्ष मीरा कुमार के नेतृत्व में गठित कमेटी ने मात्र 35000 वर्गमीटर के निर्माण कार्य के लिये 3000 करोड़ रू. लागत की स्वीकृति दी थी। मोदी सरकार ने इसका क्षेत्रफल 65000 वर्गमीटर बढ़ा दिये जाने के बाद भी इसकी अनुमानित लागत लगभग एक चैथायी कम करते हुये 971 करोड़ कर दी है।

फिर भी बेशर्मी से इस प्रोजेक्टो के समूह ‘सेन्ट्रल विस्टा’ को महज बन्द कर देने की मुहीम चलायी जा रही है। आश्चर्य तो इस बात का है कि जिस बात को लेकर ढोल पीटा जा रहा है, उस प्रधानमंत्री आवास का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है, फिर भी झूठों के सरदार झूठ पर झूठ बोले चले जा रहे हैं।

मौदूदा संसद भवन 94 साल पहले बना था जिसे संग्रहालय के रूप में बदल दिया जायेगा। इस भवन को माडर्न कम्युनिकेशन और भूकम्परोधी सुरक्षा व्यवस्था के साथ अपग्रेड नहीं किया जा सकता। क्योंकि 93-94 साल पुराने इस भवन को नुकसान पहुंच सकता है। वर्तमान संसद भवन ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया था। इसका शिलान्यास सन् 1921 में हुआ था।

सत्ता पाने की ललक में आदमी कितना नीचे गिर सकता है, इस तथ्य को ‘सेन्ट्रल विस्टा’ का विरोध करने वाले लोगों के मुँह से निकले घृणित शब्दों के इस्तेमाल से भलीभाँति समझा जा सकता है।  इतना ही नहीं कांग्रेस के राजकुमार और उनके पिछलग्गू केवल प्रधानमंत्री का महल (आवास) की संज्ञा देकर देश की जनता को भ्रमित करने का दुष्कर्म कर रहे हैं।

चूँकि आगामी लोकसभा निर्वाचन के दौरान सीमांकन का कार्य भी होना है, जिसमें स्वाभाविक तौर पर सांसदों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी होना संभावित है।

निश्चय ही विघ्नसंतोषियों की अंगुली इस महत्वपूर्ण काम को रोकने के लिये राजनैतिक ईष्र्यावश उठ रहीं है। जबकि यह राष्ट्रीय महत्व एवं समय की मांग के अनुकूल महत्वपूर्ण कार्य है। इस पर टीका टिप्पणी करना भी सर्वथा अनुचित है लेकिन जिनके पास निराशा है, हताशा है, सत्ता में आने की लालच पर पानी फिर रहा है, वे अनाप-शनाप कार्यों में जुटे है।।

इसमें अदालतों का भी सहारा लिया गया। यह माँग देश के सर्वोच्च न्यायालय में ले जायी गयी। वहाँ सफलता न मिलने पर अब उच्च न्यायालय में लाया गया है। वास्तव में ऐसी निरर्थक याचिकाओं को मूलतः हतोत्साहित ही किया जाना चाहिये, क्योंकि इनका न तो कोई ठोस आधार है, न ही कोई ठोस वजह। इससे अदालतों का अमूल्य समय भी बरबाद  होता है।

‘सेन्ट्रल विस्टा’ का विरोध करने वाले कोैन लोग हैं, उनकी चाहत क्या है, वे इस काम को रोककर क्या हासिल करना चाहते हैं। इन तमाम बातों पर गम्भीरता से ध्यान देने पर मूलतः उनकी छुद्र राजनीति और उनकी कुत्सित भावनाओं का ही पता चलता है। इस नये परिसर की तुलना नाजियों के यातना केन्द्र से की जा रही है। बहाना बनाया गया है कि इसका काम जारी रहने से कोरोना संक्रमण बढ़ने का खतरा है। ऐसी ऊल-जलील दलीलें यदि सरकार मान ले तो फिर जितने भी पुल, सड़क, मेट्रो आदि के महत्वपूर्ण कार्य चल रहे हैं, उनको भी बंद कर दिया जाये। क्या इससे संक्रमण रूक जायेगा? कैसी- कैसी बचकानी दलीलें दी जा रही हैं। कोरोना काल में हवाई जहाजें, कारें मोटरें, मेट्रो ट्रेनें, एम्बूलेंसें आदि चल रही हैं, वे सब बन्द करा दिये जायें। ‘सेन्ट्रल विस्टा’ का काम क्यों बन्द करा दिया जाये?

सब कुछ ठीक प्रकार से चलता रहा तो देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस तक इसे पूरा कर लेना प्रस्तावित है। यह नया संसद भवन परिसर त्रिभुज के आकार में डिजाईन किया गया है।

इन विरोध करने वाले कांग्रेसी चपरगट्टुओं के पास न तो कोई ठोस आधार है, न ही कोई देशहितैषी कार्यक्रम। इन नीमकमुत्रों को इतना भी ध्यान नहीं है कि वे इस परियोजना को बन्द करने की माँग कर इसमें लगे हजारोंझार मजदूरों को रोजीरोटी से वंचित करने का कुत्सित प्रयास भी कर रहे हैं।

मोदी को श्रेय न मिल सके-यही इनकी ठोस पूंजी है और इसी दुर्भावना को लेकर राष्ट्रीय महत्व की परियोजना में अड़ंगा लगाने का कुत्सित कुप्रयास कर रहे हैं।

लेखक :- किशन कछवाहा
संपर्क सूत्र :- 9424744170