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‘स्व’ के लिए सर्वस्व अर्पित : स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था “स्वामी श्रद्धानंद अछूतों के महानतम और सबसे सच्चे हितैषी हैं”

स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती आधुनिक भारत के महानतम हिंदुत्व के प्रखर नक्षत्र, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, शिक्षाविद् तथा आर्य समाज के सन्यासी थे, जिन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षाओं का प्रचार किया तथा ‘स्व’ की अलख जगाए रखी। अपना जीवन स्वराज्य स्वाधीनता, शिक्षा तथा वैदिक धर्म के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित कर दिया।

स्वामी श्रद्धानंद ने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय जैसी शैक्षणिक संस्थाओं का निर्माण किया तो वहीं शुद्धि आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती का जन्म 22 फरवरी सन् 1856 को पंजाब प्रांत के जालंधर जिले के तलवान ग्राम में हुआ था। उनका मूल नाम मुंशीराम विज था, उनके पिता नानक चंद विज थे। स्वामी दयानंद सरस्वती के तर्कों और आशीर्वाद से मुंशीराम विज ने अपने आप को वैदिक धर्म का अनन्य भक्त बनाया।

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स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती

स्वामी श्रद्धानंद एक कुशल अधिवक्ता थे, परंतु महर्षि दयानंद के स्वर्गवास के उपरांत उन्होंने स्व -देश, स्व – संस्कृति, स्व – समाज, स्व – भाषा, स्व – शिक्षा, नारी कल्याण, दलितोत्थान, स्वदेशी प्रचार, वेदोत्थान, पाखंड – खंडन, अंधविश्वास उन्मूलन, स्व-धर्म उत्थान जैसे कार्यों को आगे बढ़ाने में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। वैवाहिक जीवन से मुक्त होकर सन्यास धारण कर लिया। पत्रकारिता और हिंदी सेवा में भी उनका अग्रणी स्थान रहा है।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। स्वामी श्रद्धानंद ने कांग्रेस के प्रमुख नेताओं को जब मुस्लिम तुष्टिकरण की घातक नीति को अपनाते हुए देखा तो, उन्होंने शुद्धि आंदोलन चलाया। यह आंदोलन कट्टरपंथी मुस्लिम और ईसाई हिंदुओं को धर्मांतरण कराने वाले षड्यंत्रों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया था।

स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती पुनः आर्य समाज के माध्यम से वैदिक धर्म में दीक्षित कराया उन्हें सनातन धर्म में दीक्षित किया। हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय की आधारशिला स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती ही हैं। मदन मोहन मालवीय और जगन्नाथ पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ को गुरुकुल में आमंत्रित करके उनके प्रवचन कराए।

स्वामी श्रद्धानंद ने इस्लाम एवं ईसाई मत से संबंधित अंध विश्वासों का खंडन किया तथा छुआछूत की समस्या को दूर करने के भगीरथ प्रयास किए और उन्होंने बताया कि यह सबसे बड़ा कलंक है।स्वामी श्रद्धानंद के समर्पण और सफलता को देखते हुए, इस्लामिक चरमपंथियों ने उनके विरुद्ध षड्यंत्र किया और अब्दुल रशीद जैसे व्यक्ति को तैयार कर उनकी हत्या करवा दी।

आज स्वामी श्रद्धानंद की जयंती है इसलिए तथाकथित महात्मा-गाँधी के कथनों की बखिया नहीं उधेड़ना चाहता हूँ फिर भी आत्मीय जनों को सूचित कर दूँ, कि जिन गाँधी जी को स्वामी श्रद्धानंद ने सबसे पहले महात्मा कहा और गाँधी जी ने उन्हें बड़ा भाई कहा था। उन्हीं गाँधी ने स्वामी श्रद्धानंद की हत्या करने वाले नर पिशाच, हत्यारे अब्दुल रशीद को अपना भाई बताया और उसे बचाने के लिए वकील बनने को भी कहा और हत्या को एक तरह से न्यायोचित बताते हुए कहा कि इसमें शोक नहीं मनाना चाहिए! – वाह रे गाँधी जी? वहीं देखिये भारतीय संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर ने स्वामी श्रद्धानंद जी के बारे में सन् 1922 में कहा था कि श्रद्धानन्द अछूतों के “महानतम और सबसे सच्चे हितैषी” हैं। (Dr. Babasaheb Ambedkar Writings & Speeches Vol. 9. Dr. Ambedkar Foundation. 1991. pp. 23–24. ISBN 978-93-5109-064-9.) वर्तमान परिदृश्य के परिप्रेक्ष्य में पुनः धर्मान्तरण पांव पसार रहा है और ‘स्व’ की भावना का भी ह्यस हो रहा है, इसलिए उपचार हेतु स्वामी श्रद्धानंद के विचारों की उपादेयता आज भी पहले जितनी ही प्रासंगिक है।

लेखक:- डॉ. आनंद सिंह  राणा