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हिजाब-जिहाद – डाॅ किशन कछवाहा

कर्नाटक की एक शिक्षण संस्था ने छ: छात्राओं को कहा था कि कक्षा में वे ‘हिजाव’ का उपयोग न करें। उन्हें पूर्व में भी संस्था के ड्रेसकोड से अवगत करा दिया गया था और किसी ने उस समय आपत्ति भी नहीं की थी। अब तक असल सच्चाई सामने आ ही गयी कि यह ‘हिजाव’ ‘टूलकिट’ का नया आईटम है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के विरोधी और देश के भीतरी राजनैतिक विरोधी पिछले अनेक ‘टूलकिट’ नागरिकता कानून, राममंदिर, किसान आंदोलन और उस दौरान 26 जनवरी को की गयी लालकिले पर शर्मनाक वारदात में शामिल होकर भी बुरी तरह असफल होने से हताश भी है और निराश भी। क्योंकि कोई मुद्दा हाथ ही नहीं लग रहा। अब ‘हिजाव’ को उसका मुद्दा बनाया गया है। यह कांग्रेस और कतिपय विपक्षी दलों की मुस्लिम वोट बटोरने की असफल कोशिश है।
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एस.डी.पी.आई.) और मुस्लिम छात्रों का संगठन फ्रंट ऑफ इंडिया (सी.पी.आई.) का हाथ-पैर फड़फड़ाना तो समझ में आता है। लेकिन दाल-भात में मूसर चंद की कहावत को सिद्ध करने कांग्रेस का इसमें प्रवेश करना आश्चर्य जनक है एक और वह धर्म निरपेक्ष दिखना चाहती है, दूसरी ओर अल्पसंख्यकों की हितैषी भी। ‘हिजाव’ के मामले में पाकिस्तान ने भी अपनी नाक घुसेड़ेने की कोशिश की है। अब प्रश्न उठता है कि कांग्रेस जैसी पार्टी को सेकुलर और प्रगतिशील कैसे माना जाये?
तथ्यात्मक बात यह है कि इन इस्लामिक संस्थाओं और मुस्लिम नेताओं द्वारा विभिन्न स्थानों पर आयोजित विरोध प्रदर्शनों से स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों से कुछ लेना-देना नहीं है। हिजाब विवाद की आड़ में मजहबी उन्माद और साम्प्रदायिकता को जरिया बनाया जा रहा है।

कतिपय बुर्का पहने छात्राओं के एक समूह द्वारा ‘अल्ला हू अकबर’ का नारा लगाते हुये जो दृश्य उपस्थित किया, उसने यह आभास करा दिया है कि भारत में विशेष कर हिन्दुओं पर जीत का बिगुल बजा दिया गया है और यहाँ पुनः इस्लाम का उदय हो रहा है। यह दृश्य योजना बद्ध तरीके से निश्चयात्मक रूप से हिन्दुओं को अपना शत्रु मानने वाले वामपंथियों, संकुलरस्टिों और इस्लामी केम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा जिसके द्वारा दिल्ली में दंगे भड़काये गये थे, के द्वारा आयोजित अभियान था।
बुर्का पर तो यूनाईटेड किंगडम की शैक्षणिक संस्थाओं की कक्षाओं में भी प्रतिबंधित किया जा चुका है। इसे बेल्जियम शहर के सार्वजनिक स्थानों के लिये भी प्रतिबंधित किया जा चुका है। फ्रेंच पब्लिक स्कूलों में भी इसके उपयोग पर रोक लगी हुयी है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में कोर्ट रूम से ही एक बुर्का पहिने महिला को बाहर कर दिया गया था।
आतंकवाद का सामना कर रहे विशेषज्ञों का मानना है कि बुर्का और हिजाब पर से सार्वजनिक स्थानों पर रोक लगनी चाहिये क्योंकि इसके प्रयोग से सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षा संबंधी कठिनाईयाँ पैदा होती हैं। उनका मानना है कि जिहादी और आतंकवादी इस लिबास को ओढ़कर अपने को छिपा लेते हैं।
जुलाई 2019 में मौलाना मुहम्मद अब्दुल अजीज़ गाजी (46 वर्ष) (इस्लामाबाद) पाकिस्तान की लाल मस्जिद से भागने की कोशिश कर रहा था उस पर सरकार पलटने का आरोप था। वह बुर्का और ऊँची ऐड़ी वाली सेंडिल पहने हुआ था, लेकिन वह अपनी लम्बाई के कारण शक के घेरे में आ गया और पकड़ा गया।
दक्षिण भारत में पर्दा-प्रथा तो है नहीं। वैसे भी भारत में पर्दा प्रथा अपना दम तोड़ चुकी है। दक्षिण भारत में विवाह के अवसर पर भी सिर को ढाँक कर नहीं रखती। विश्व के अनेक देशों में स्त्रियों के चेहरे ढँकने, हिजाब, चादर, नकाब या बुर्के पर रोक लगा रखी है। फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैण्ड, इटली, जर्मनी और डेनमार्क भी इन देशों में शामिल हैं।
जहाँ तक व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सवाल है क्या ऐसे आन्दोलन सार्थक सिद्ध हो सकते हैं। इससे तो धर्मान्धता ही बढ़ेगी और मुस्लिम बेटियों की शिक्षा भी प्रभावित होगी। क्या पढ़ लिखकर उच्च शिक्षा प्राप्त ये महिलायें प्रशासनिक पदों पर नियुक्त होने के बाद भी क्या हिजाब या बुर्का पहन कर बैठेंगी? महिलाओं ने विभिन्न क्षेत्रों में अपनी बेहतर प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। भारत की असराक्यू, नोमानी और मिस्त्र की हाला-हरका ने साफ किया है कि कैसे हिजाब और बुर्के को इस्लाम से जोड़ा गया जबकि इसमें मजहबी कुछ भी नहीं है।
मुस्लिम समाज के बारे में अक्सर कहा जाता है कि वह पिछड़ा है गरीब है। यह स्थिति अशिक्षा के कारण ही तो है। जो इस जमात के नेता हैं, वे अभी भी मध्यकालीन सोच से बाहर नहीं निकल पा रहे, और यह भी निश्चित है कि उससे बाहर निकले बिना सामाजिक विकास सम्भव है ही नहीं। हिजाब इस्लाम का हिस्सा है या नहीं। ये तो इस्लाम के अनुयायी ही समझें। दरअसल इसके पीछे मुख्य मकसद है मोदी सरकार का अस्थिर करना।
गत तीन वर्षों में भाजपा के विरोधी, जो अब सत्ता से बाहर हो चुके हैं, अराजकता और साम्प्रदायिक तनाव पैदा करना चाहते हैं। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर दिल्ली में दंगा कराया गया, फिर किसान आन्दोलन के माध्यम से घिनौनी हरकतें की गयी। गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर जो कुछ हुआ, वह तो अत्यन्त शर्मनाक एवं देश विरोधी था ही।
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने अपने बयान में कहा है कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं प्रताड़ित करने का तरीका है। वे नहीं चाहते कि मुस्लिम महिलायें आगे बढ़ें। मुझे लगता है कि हिजाब को लेकर एक साजिश की जा रही है, जिसका मकसद है, महिलाओं को घरों के भीतर कैद करना क्योंकि आज मुस्लिम लड़कों के मुकाबले महिलायें अनेकानेक क्षेत्रों में आगे हैं। उन्होंने सफलता के कई आयाम तय किये हैं।
आम आदमी भी महसूस कर रहा है कि मुस्लिम समाज में अपनायी गयी कड़ी पाबंदियों के बावजूद लड़कियाँ और महिलायें घर की देहलीज से बाहर आ सकीं हें, उन्होंने पढ़ाई की है और विभिन्न क्षेत्रों में अपना नाम भी रोशन किया है। अब यह षड़यंत्र नहीं है जो हिजाब के नाम से जबरिया थोपा जा रहा है। हर देश, हर समाज, तरक्की की राह पर चलना चाहता है। ये महिलायें इस विकास की दौड़ में पीछे क्यों रहे?
यह जानकर लोगों को आश्चर्य होगा कि इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान में हिजाब और बुर्के शब्दों का इस अर्थ में इस्तेमाल ही नहीं हुआ। हिजाब केे उपयोग पर जोर देने वाले महिलाओं के जीवन को अंधकार की ओर ले जाने कारण बनेंगे। एक बार शबाना आजमी ने भी कहा था कि सरकार उदार वादियों की बजाय कट्टरवादियों की ज्यादा सुनती है। तस्लीमा नसरीन ने तो अनेकों बार यह बात दुहरा चुकी हैं।
इस विषय पर ध्यान देने की बात यह है कि हिजाब, जिद औरजिहाद का पारस्परिक जुड़ाव है। गत वर्ष बैंगलूर में हुये धमाके से ताल्लुक रखने वाले जो उच्च शिक्षित मुसलमान पकड़े गये थे, उनका इस्लामी उग्रवादी संगठन से संबंध जुड़ा हुआ है। इनमें से तीस का संबंध दारूम उलूम देवबंद और देवबंदी विचार धारा से हैं। इसके साथ ही पाकिस्तानी उग्रवादी तालिबान-ए-पाकिस्तान के अनेक उग्रवादी समय≤ देवबंद का दौरा करते और वो दारूल उलूम देवबंद की मेहमानी का भी लाभ उठाते रहे हैं।
इसी प्रकार राष्ट्रीय जाँच एजेंसी काफी जाँच पड़ताल के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची हैं कि जो जिहादी संगठन आई.एस से संबंध रखने के मामले में गिरफ्तार किये गये हैं, उनमें कई दर्जन से अधिक लोगों का संबंध तबलीगी जमात से भी है। इस तबलीगी जमात का मुख्यालय दिल्ली की बस्ती निजामुद्दीन में स्थित बंँगलावाली मस्जिद में बताया जाता है।
अमरीकी गुप्तचर एजेंसी एफ.बी.आई. की रिपोर्ट के अुनसार यह संगठन इस्लामी जिहादी भर्ती करने की नर्सरी है। तबलीगी जमात का एक महत्वपूर्ण केन्द्र पाकिस्तान के समीप रायविंड कस्बा में है। इस संगठन का संबंध पाकिस्तान गुप्तचर एजेंसी से भी है।
देवबंदी विचार धारा के संगठन जमीयत उलेमा का संबंध कांग्रेस से रहा है। जमीयत के एक महामंत्री मौलाना हफीजुर्रहमान चार बार कांग्रेस के टिकिट पर लोकसभा के सदस्य चुने गये थे। जबकि एक अन्य महामंत्री मौलाना असद मदनी की चार बार कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा की शोभा बढ़ा चुके हैं।
आज विश्व भर में जिस तरह सुनियोजित ढंग से मुस्लिम कट्टरवाद आतंकवाद के रूप में अपनी जड़ें जमाने का प्रयास कर रहा है, जिहाब, आतंकी गतिविधियाँ, भीड़ एकत्रित कर पथराव, अपराधियों को संरक्षण देने दबाव बनाया जाना आदि उसी बीज से पल्लवित होने वाला वृक्ष है। यह याद रखा जाना चाहिये कि पाकिस्तान का निर्माण भी उसी सोची समझी चालबाजी और षड़यंत्र का नतीजा है।
बाँग्लादेश के स्वतंत्र देश बन जाने के बाद भी क्या वहाँ कोई बदलाव आया है? जमाते इस्लामी ने वहाँ भी अपना बदरंग रूप दिखाना जारी रखा है। जो कि अत्यन्त चिन्ताजनक है।
सन् 1946 में संयुक्त भारत के समय डायरेक्ट एक्शन के नाम पर कितना बड़ा हंगामा खड़ा किया गया था, कितना खून खराबा हुआ उसकी याद करते रूह काँप जाती है। इन सबको क्या सहजता से भुलाया जा सकता है? कैस-कैसे घिनौने कृत्य नहीं हयु?
शाहीन बाग, हिजाब जैसे जब तब किये जाने वाले सुनियोजित षड़यंत्र एवं देश के लिये घातक प्रयासों को समाप्त करने एक हजार साल पुराने जीर्ण-शीर्ण इस्लामिक मदरसों को समाप्त कर ‘एक देश-एक पाठ्य चर्चा’ ही साम्प्रदायिक सद्भाव और शांति का प्रभावी नुस्खा हो सकता है।
विविध संस्कृति वाले भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने से पहले, एक समान शिक्षा संहिता की आवश्यकता है। सभी के लिये एक पाठ्यक्रम। मदरसा एक विशिष्ट मजहबी स्कूल है, जहां मुस्लिम बच्चों को कुरान, शरिया, हदीस, भारत पर हुये हमलावरों का इस्लामी इतिहास (जिहाद) पढ़ाया जाता है। इसमें पढ़ाये जाने वाले विषयों से पंथनिरपेक्ष और मानवतावादी निर्माण नहीं किये जा सकते।
सन् 1946, 1947, 1999 के भुक्तभोगी हिन्दू मजलिस, जमाती और तब्लीगियों के अत्याचारों और षड़यंत्रों से वाकिफ हैं। और जिद की श्रृंखला कहाँ तक ले जायगी ये कहना सरल नहीं है, क्योंकि हिजाब के बाद कर्नाटक मंगलूरू में जिद करते हुये स्कूल के अंदर नमाज भी पढ़ी जाने लगी है। यह सोचना तो पड़ेगा कि ये तत्व देश को किस ओर ढकेलना चाहते हैं।
प्रख्यात लेकिका मुहतरमा आमना बेगम अंसारी का कहना है कि कर्नाटक का हिजाब मामला मुस्लिम महिलाओं के हक का नहीं बल्कि उसकी आड़ में उन्हें पर्दे में रखने और अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकने का है। ऐसे समय समान नागरिक संहिता के लिए उचित समय है।
सारे हथकण्डे फेल हो गये। मोदी के नेतृत्व में भारत की भूमिका की सारे विश्व में तारीफ हो रही है, ऐसे में विरोधियों के पेट में दर्द होना स्वाभाविक ही है। वक्त की माँग है कि देशघाती और भीतर घातियों से देश सावधान रहे। कुल मिलाकर उथली राजनीति का सहारा लिया जा रहा है-हिजाब किसान और सी.ए.ए. सब उसी षाड़यांत्रिक कारनामों के हिस्से हैं।
कर्नाटक के उडुपी से उपजा यह हिजाब का मसला साधारण सा था, जिसे कट्टरपंथी मुसलमानों की एक संस्था द्वारा प्रोत्साहित कर चार छात्राओं को ‘हिजाब’के विरोध में प्रदर्शन करने बाध्य किया था। बाद में कांग्रेस ने अगुआयी कर आग में घी डालने का काम किया।
मुस्लिम मुल्लाओं द्वारा हिजाब पहनने को मजहबी आवश्यकता बताने पर आमना बेगम कहतीं हैं कि शरिया में तो लड़कियों को आधी सम्पत्ति देने की बात भी कही गयी है। मुल्ला उस पर क्यों नहीं बात करते? नाजनीन कहतीं हैं कि यदि शरिया मानना है, तो पूरा मानो, फिर आपराधिक कानून में शरिया को छोड़ देश का कानून क्यों मानते हैं? वहाँ भी शरिया की बात करें। ये शरिया की केवल उन बातों को मानते हैं जो उनके हित में हैं।
सऊदी अरब 1400 साल पहले की चीजों को छोड़कर आधुनिक दौर में जी रहा है। पर भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, के मुसलमान 50-100 साल पहले आधुनिक दौर में रह रहे थे, अब वे तेजी से 1400 साल पीछे का सफर करने की जोर आजमाईस में लगे हुये हैं।

लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सुत्र:- 9424744170