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हिन्दू धर्म सहिष्णु है…

हिन्दू धर्म या हिन्दुत्व को अधिकांश लोग ठीक से समझ ही नहीं पाते। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय मुस्लिम तुष्टिकरण के चक्कर में नेताओं ने हिन्दू को एक रिलीजन बना दिया। उनकी देखा देखी तथाकथित सेकुलरों ने हिन्दू को सम्प्रदाय बना दिया।

हिन्दुत्व की बात करने वाले को साम्प्रदायिक बताया जाने लगा। सच्चाई यह है कि हिन्दू नाम का न तो कोई रिलीजन है, न कोई सम्प्रदाय है और न कोई पंथ हैं। रिलीजन अंग्रेजी का शब्द है और इसका ठीक अनुवाद उपासना पद्धति है। उर्दू में रिलीजन का समानार्थी शब्द मजहब है। लेकिन रिलीजन का अर्थ धर्म कतई नहीं है और इसलिये रिलीजन शब्द को हिन्दी भाषा का हिस्सा बना लेना चाहिए, क्योंकि हिन्दी या संस्कृत या तमिल, तेलगू आदि किसी अन्य भारतीय भाषा में रिलीजन का सटीक अर्थ बताने वाला कोई शब्द नहीं है। सम्प्रदाय, मत, पंथ आदि भी रिलीजन के समानार्थी नहीं है।

उच्चतम न्यायालय का निर्णय- हिन्दू धर्म है, रिलीजन नहीं है और इसी कारण कई लोगों को हिन्दुत्व को समझने में बड़ी कठिनाई होती है। पूरा देश गत 16 दिसम्बर को जब विजय दिवस (1971 के युद्ध में भारत की विजय) मना रहा था, उसी दिन सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दुत्व को समझाने का प्रयास किया। एक मामले में फैसला सुनाते हुए देश की सबसे बड़ी न्यायिक संस्था ने कहा कि ‘‘हिन्दुत्व हजारों वर्षों की प्रेरणा और सामूहिक मेधा का परिणाम है।’’ न्यायालय ने आगे कहा कि हिन्दुत्व बिना किसी भेदभाव के सभी मतों का सम्मान करता है उन्हें अपने में समाये हुए है।

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आदि शैव शिवाचार्यगल नल संगम (तमिलनाडु) की एक याचिका पर फैसला देते हुए न्यायमूर्ति रंजन गोगोई तथा एन. वी. रामन्ना की पीठ ने उक्त टिप्पणी की। उक्त संगठन ने मंदिरों में पुजारी तय करने में राज्य सरकार की दखलंदाजी के विरोध में याचिका लगाई थी। पीठ ने इस संगठन के पक्ष में निर्णय देते हुए हिन्दुत्व को परिभाषित किया।

अब जिस प्रकार रिलीजन के लिये हिन्दी में कोई समानार्थी नहीं है, उसी प्रकार अंग्रेजी में धर्म के लिए कोई शब्द नहीं है। इसलिये पश्चिमी समाज ने ऐसी व्यापक और उदात्त कल्पना कभी की ही नहीं। धर्म से वे भारत आने पर परिचित हुए और जो लोग थोड़ा बहुत समझ सके थे वे अभिभूत हो गए और भारतीय चिन्तन की उन्होंने जम कर प्रशंसा की। भारत का सत्यानाश करने वाले लाॅर्ड मैकाले ने लिखा-

‘‘ईसा के कई सौ साल पहले जब इंग्लैण्ड के लोग जानवरों की खाल से अपना शरीर ढक कर जंगलों में घूमते थे, भारत के लोगों ने एक उच्च स्तर की सभ्यता विकसित कर ली थी।’’

फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान पियरे लोटी ने लिखा है ‘‘और अब प्राचीन भारत मैं तुझे प्रणाम करता हूँ, कला और दर्शन के उच्चतम वाहक भारत मैं तुझे प्रणाम करता हूँ।’’

एक पैगम्बर नहीं – हिन्दू धर्म और दर्शन को जिसने भी थोड़ा-बहुत समझा वह चमकृत हो गया। इसके बाद भी अंग्रेज, फ्रांसीसी, जर्मन आदि धर्म के लिये अपनी भाषा में कोई उपयुक्त शब्द नहीं खोज पाये और इसलिये उन्होंने हिन्दू को भी रिलीजन ही कह दिया। उच्चतम न्यायालय के मान्यवर न्यायाधीश भी धर्म के लिये कोई उपयुक्त शब्द अंग्रेजी में नही  खोज पाये इसलिये निर्णय में उन्होंने लिखा –

‘‘यह एक ऐसा रिलीजन है जिसका कोई एक पैगम्बर नहीं है, कोई एक पवित्र पुस्तक नहीं है और बंधे बंधाये उपदेश और पद्धति भी नहीं है। इसे सनातन धर्म के नाते अर्थात् शाश्वत विश्वास के रूप में वर्णित किया गया है। शताब्दियों की अनुभूति की ही सीख हिन्दुत्व देता है।’’

सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दुत्व को ही परिभाषित किया है। इस्लाम में जैसे पैगम्बर मोहम्मद साहब है, ईसाइयत के प्रेरक ईसा मसीह हैं और यहूदियों के पैगम्बर मोजेज या मूसा है उसी प्रकार हिन्दू धर्म में कोई एक ऐसा मसीहा या भगवान नहीं है जिसका सभी हिन्दू पूरी तरह अनुकरण करते हों। ईसाइयों की पवित्र पुस्तक बाइबिल है, मुसलमान पवित्र कुरान के उपदेशों  पर चलते हैं और पारसी जेन्दावस्ता के अनुसार चलते हैं। उस प्रकार हिन्दू किसी एक पुस्तक में लिखे उपदेशों के आधार पर नहीं चलते। और जैसे ईसाई चर्च में जाते हैं मुसलमान एक विशेष पद्धति से मस्जिद में नमाज अता करते हैं और यहूदी सायनेगाम में उपासना करते हैं उस प्रकार हिन्दू किसी निश्चित तरीके से निश्चित स्थान पर पूजा नहीं करते।

श्रीराम को मानने वाला भी हिन्दू है और श्रीकृष्ण की पूजा करने वाला भी है। शिव की उपासना करने वाला भी हिन्दू है और शक्ति की उपासना करने वाला भी हिन्दू है।  मूर्ति पूजा करने वाला भी हिन्दू है और मूर्ति का विरोध करने वाला भी हिन्दू है। साकार की उपासना करने वाला भी हिन्दू है और निराकार की उपासना करने वाला भी है। मंदिर में जाने वाला भी हिन्दू है और किसी भी मंदिर में न जाकर योग साधना करने वाला भी हिन्दू है।

गीता के उपदेशों को जिसने पढ़ा नहीं और न ही उसका पालन करता है वह भी हिन्दू है और रामायण को न मानने वाला भी हिन्दू है।

यह जीवन-पद्धति है- इसलिये कई बार बुद्धिजीवियों के सामने समस्या उत्पन्न हो जाती है हिन्दुत्व आखिर क्या है? 11 दिसम्बर सन् 1995 को भी सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दुत्व से संबंधित फैसले दिये थे। ये शिवसेना के डा. रमेश प्रभु तथा मनोहर जोशी की याचिकाओं पर थे। चुनावी भाषणों में हिन्दुत्व का उल्लेख करने के कारण विधानसभा के लिये इनके चुनाव को उच्च न्यायालय ने अवैध ठहरा दिया था। हाईकोर्ट का निर्णय पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिन्दुत्व कोई सम्प्रदाय या मजहब नहीं बल्कि एक जीवन पद्धति का नाम है। निर्णय में कहा गया है-

‘‘यह असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है कि हम हिन्दू रिलीजन को परिभाषित कर पायें। विश्व के अन्य मजहबों की भाँति हिन्दू का कोई एक देवदूत (पैगम्बर) नहीं है, इसमें किसी एक ही देव की पूजा नहीं की जाती, इसकी कोई एक रूढ़िबद्ध पहचान नहीं है। यह किसी एक प्रकार के अनुष्ठान (पूजा पद्धति) का अनुयायी नहीं है। इसे मुख्य रूप से एक जीवन पद्धति ही कहा जा सकता है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं।’’

लगभग बीस साल पहले के इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक भारतीय व विदेशी विद्वानों के मतों का भी उल्लेख किया। सुप्रीम कोर्ट ने मोनियर विलियम्स को उदृत करते हुए लिखा- ‘‘यह विश्व भर के सभी को अपना लेने के विचार पर आधारित है। इसने सर्दव परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाला है और पिछले तीन हजार वर्षों से विभिन्न विचारों और पंथों को अपनाने की प्रक्रिया को चालू रखा है। इसने अपने जन्म के समय से ही सभी पंथों के विचारों में से कुछ न कुछ ग्रहण करके उसे अपने अन्दर स्थान दिया, पचाया और आत्मसातकिया।’’ (रिलीजियस थाट एण्ड लाइफ इन इंडिया-पृष्ठ57)

Religious thought and life in India : an account of the religions of the Indian peoples, based on a life's study of their literature and on personal investigations in their own country...

मोनियर विलियम्स का उद्धरण देने के बाद कोर्ट ने कहा- ‘‘जब हम हिन्दू दार्शनिक विचारों के इस विस्तृत प्रवाह के बारे में विचार करते हैं तो हमें इस तथ्य का अनुभव होता है कि हिन्दू दर्शन में किसी भी प्रकार के सिद्धान्त या चिन्तन का बहिष्कार करने या असत्य घोषित करने की सम्भावना नहीं है।’’

उक्त निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रसिद्ध इतिहासकार आरनाल्ड टायन्बी का भी हवाला इस प्रकार दिया- ‘‘हिन्दुत्व असंदिग्ध रूप से मानता है कि सत्य तक पहुंचने और मुक्ति प्राप्त करने के एक से अधिक वैध मार्ग या उपाय है और ये उपाय न केवल एक दूसरे से सुगंगत है, अपितु एक दूसरे के पूरक भी हैं’’ और यह उद्धरण प्रस्तुत करते हुए न्यायालय ने कहा,

‘‘इसलिये सिद्धांततः वह (हिन्दू धर्म) सहिष्णु है और सबको इच्छानुसार स्वभावानुसार रूचि अनुसार कोई भी रिलीजन तथा साधना का प्रकार चुनने की पूरी अनुमति देता है और सबको स्वतंत्र छोड़ देता है कि वे जिस रिलीजन या पूजा पद्धति को सर्वोत्तम मानें, उसे अपनायें।’’ यह स्वतंत्रता पूरी दुनिया में दिये जाने पर ही आज की कट्टरता, आतंक और हिंसा समाप्त हो सकते हैं। इसीलिये हिन्दुत्व या हिन्दु धर्म की सुरक्षा आवश्यक है और सशक्त व सामथ्र्य सम्पन्न भारत ही हिन्दुत्व का उपहार दुनिया को दे सकता है।

लेख़क :- कन्हैयलाल चतुर्वेदी