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गलवान का गौरवगान

‘मुंह में राम बगल में छुरी’ के लिए मशहूर चीनियों ने हर मौके पर दोहरी चाल चली है। एक ओर चीन के नेता बातचीत का राग अलापते हैं, तो दूसरी ओर उसके सैनिक अचानक हमला कर देते हैं। इस बार भी चीन लगातार बातचीत से विवाद के हल का ढिंढोरा पीट रहा था, लेकिन 15 जून की रात उसने अपना चरित्र दिखा दिया। जिस गलवान घाटी में तनाव के बाद भारत और चीन के बीच 1962 में युद्ध की नौबत आई, उसी गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच एक बार फिर हिंसक भिड़ंत हुई।

हालांकि 15 जून की रात को जो हुआ उसे सिर्फ़ हिंसक भिड़ंत कह देना उचित नहीं होगा, क्योंकि यह रात हिन्द के वीर योद्धाओं के गौरवगान की रात थी।

दरअसल, गलवान घाटी में जो कुछ भी हुआ वो अब तक सब जान चुके हैं. लेकिन एक बात जो अब भी राजनीतिक हलकों से लेकर सामाजिक स्तर तक हो रही है कि 15 जून को भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच वो खुनी झड़प एकलौती झड़प थी, लेकिन यह अधूरा सच है। क्योंकि रात की घटना से पहले उसी दिन दो बार और दोनो पक्षों की भिड़ंत हो चुकी थी लेकिन रात को हुई भिड़ंत सबसे घातक थी। इंडिया टुडे ने सैन्य अधिकारियों के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें इस बात का जिक्र है कि 15 जून को तीन बार भारतीय और चीनी सैनिक आमने-सामने आये थे।

गलवान में 15 जून की मुठभेड़ से 10 दिन पहले दोनों देशों के बीच लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत हुई थी। इस बातचीत में सहमती बनी कि दोनों देशों की सेनाएं पेट्रोल पॉइंट 14 पर LAC से पीछे हटेंगी। क्योंकि दोनों देशों की सेनाएं LAC के बेहद नजदीक आ गई थीं और गलवान नदी के किनारे बना एक चीनी निगरानी पोस्ट भारतीय सीमा में था, लेफ्टिनेंट जनरल स्तर की बातचीत में इस निगरानी पोस्ट को हटाने पर चीन सहमत हो गया था। कुछ दिनों बाद इस पोस्ट को हटा भी दिया गया, लेकिन 14 जून की आधी रात को चीनी सैनिकों ने पोस्ट फिर से तैयार कर ली। चीनी सैनिकों की इस कायराना हरक़त को देख गलवान में तैनात 16-बिहार रेजिमेंट के कुछ जवान गुस्से में आ गए, वो खुद जा कर उस पोस्ट को उखाड़ फेंकने को तैयार बैठे थे। लेकिन, कर्नल संतोष बाबू शांत स्वाभाव के थे, उन्होंने उग्र जवानों को शांत किया और तय किया कि खुद जा कर पोस्ट का जायजा लेंगे और बात करेंगे कि हटाने के फैसले के बाद ये फिर कैसे बनाया गया?

15 जून की शाम लगभग 7 बजे कर्नल संतोष बाबू 35 वीर जवानों को साथ लेकर चीनी पोस्ट की तरफ पैदल ही निकल पड़े, वहां पहुँच कर भारतीय जवानों ने महसूस किया कि ये वो चीनी सैनिक नहीं हैं जो हमेशा रहते हैं बल्कि ये नए चेहरे हैं और इनके हाव भाव भी अलग हैं। लेकिन इसके बाद भी भारतीय दल को ये अंदाजा नहीं था कि चीनी सैनिक किसी साजिश की सोच के बैठे हैं। कर्नल संतोष बाबू ने चीनी सैनिकों से पूछना शुरू किया कि ये पोस्ट दोबारा कैसे बन गई, तभी एक चीनी सैनिक आया और उसने कर्नल बाबू संतोष को धक्का दे दिया और अपमानजनक शब्दों का अभी प्रयोग किया। इस घटना के बाद भारतीय जवानों का गुस्सा भड़क उठा, उनसे अपने कमांडिंग अफसर का अपमान देखा नहीं गया, वीर योद्धाओं ने आव देखा न ताव सीधे चीनी सैनिकों से भिड़ गए और उनके निगरानी पोस्ट को उखाड़ फेंका और हाथापाई भी शुरू हो गई जो क़रीब 30 मिनट तक चली।

कर्नल संतोष बाबू भांप गए थे कि मामला बिगड़ गया है, उन्होंने अपने घायल सैनिकों को वापस भेजा और कहा कि पोस्ट से और सैनिकों को भेजें, उसके बाद कर्नल संतोष बाबू भारतीय जवानों ने कुछ चीनी सैनकों को पकड़ लिया और उन्हें लेकर चीनी क्षेत्र में चले गए ताकि उन्हें चीन के सीनियर अधिकारीयों को सौंप सके। उन्हें ये भी पता करना था कि कहीं और चीनी सैनिक तो नहीं आ रहे, अब रात के 8 बज रहे थे और अँधेरा हो चुका था। चीनी सैनिक दोनों किनारों पर पोजीशन ले कर खड़े थे, उन्होंने भारतीय दल पर अचानक हमला कर दिया, दोनों ओर से हाथापाई शुरू हो गई।

रात के करीब 9 बजे होंगे कि कर्नल बाबू के सर पर एक पत्थर लगा और वो नदी में जा गिरे ये देख भारतीय जवानों ने भी चीनी सैनिकों के हथियार छीन कर उनपर धावा बोल दिया। रात 11 बजे तक ये लड़ाई चलती रही, भारतीय जवान ग्रुप्स में बंट गए और चीनियों से लोहा लेने लगे। इस दौरान दोनों देशों के कई जवान नदी में गिर गए। उसके बाद मदद के लिए भारत की सबसे घातक पलटन पहुंची, रात के 11 बजे के बाद का समय था,भारतीय जवानों में गुस्सा उफान मार रहा था।

रात 11 बजे के बाद तीसरी मुठभेड़ शुरू हुई जो आधी रात तक चली, यह मुठभेड़ निःसन्देह उस रात की आखिरी मुठभेड़ साबित होने वाली थी। हुआ भी यही, बिहार रेजीमेंट के जवानों ने चीनी सैनिकों की गर्दनें तोड़नी शुरू कर दीं, चीनी सैनिक हथियारों से लैस थे तो भारतीय सैनिकों ने पत्थर से हमला करना शुरू कर दिया और फिर भारतीय जवानों के हौसले और वीरता के आगे एक के बाद एक चीनी सैनिक ढेर होते चले गए।आधी रात के आसपास 40 से अधिक चीनी सैनिक मौत के घाट उतारे जा चुके थे, लेकिन इस भीषण मुठभेड़ में भारत के 20 जवानों को भी शहादत देनी पड़ी।

आज जब आप ‘गलवान का गौरवगान’ पढ़ रहे हैं तब यह समझिए कि भारत पर आंख उठा कर देखने वाली किसी भी शक्ति को उखाड़ फेंकने का दमखम रखती है भारतीय सेना। हालांकि दुःखद यह है कि कुछ राजनीतिक दल सैनिकों की शहादत पर भी चीन का पक्ष लेते हैं और राजनीतिक रोटियाँ सेंकने से बाज़ नहीं आते।