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श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या: भारत की जन चेतना का आधार

हिमालय पर्वत की तरह ऊंचे अटल ,अखंड ,विश्वास लिए विंध्य पर्वत की तरह अडिग अविचलित होकर अयोध्या ने सतत् अपने उत्थान के लिए तप किया।श्रीराम के लिए अपनी पथरीली आंखों को भावविह्वल होकर अभिसिंचित किया- श्रीराम अपनी मर्यादा के साथ धीरे-धीरे एक-एक पद आगे बढ़ाते हुए अयोध्या पावन नगरी को पुनः उसका परम वैभव प्रदान करने चले आ रहे हैं । धरती के कितने पुत्रों ने अयोध्या की श्री संपदा, संस्कारों और संस्कृति की अनमोल धरोहर को संजोने के लिए यवन आक्रांताओं की विभीषिका में स्वयं को राम नाम से आहूत कर दिया।

अयोध्या नगरी का प्रत्येक क्षेत्र -सरयू घाट हो, नगर की छोटी बड़ी अट्टालिका हो सभी आज स्वयं को पुनः दशरथ कालीन अलकापुरी की तरह गौरवान्वित कर रही है।
अयोध्या मथुरा माया (हरिद्वार),
काशी कांची अवंतिका ।
पूरी द्वारावतीश्चैव ,
सप्तैता मोक्ष दायिका।।

अयोध्या स्वयं सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु के द्वारा स्थापित नगरी है जिसके पावन स्मरण से सप्त जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है।स्वनामधन्य आयोध्या अविजयी है।वेद भी अयोध्या नगरी की महिमा का गुणगान करते हैं।

अष्ट चक्र नव द्वारा देवनाम् यू: अयोध्या
तस्या हिरण्यमय: कोश: स्वर्गो ज्योतिषावृत:

(अथर्ववेद १०-२-३२)

भगवान श्री हरि के चक्र पर स्थापित है अयोध्या, जिसका प्रमाण अयोध्या के निकट स्थित तीर्थ श्री चक्रपाणि के रूप में आज भी मिलता है। अयोध्या भारतीय संस्कृति की सशक्त ,सुदृढ़ और सतत् पावन प्रवाहमान मानवीय अवतार भगवान श्री राम के जन्म से लेकर समाधिस्थ तक की लीलाओं की साक्षी है।

गंगा से कहीं अधिक पावन सरयू “जहाँ श्रीराम ने स्वयं को समाधिस्थ किया” कितनी बार अपने निर्मल जल में रक्त की मलिन लाली को स्वीकार करते हुए भगवामय हुई कि पुनः श्रीराम आएंगे…….

अहिल्या की तरह जड़वत् विश्व के हिंदू जनमानस का उद्धार करने वर्षों वर्ष हिंदुओं के पवित्र भाव की शबरीमय आत्मा ने भक्तिमय होकर मृत्यु पर्यंत जिनके आने की प्रतीक्षा की और वृक्ष, पेड़ ,लता, पुष्प ,पत्ते पशु -पक्षी जीव -जंतु के रूप में जो आज भी राममय होकर अपने आत्मोद्धार के लिए जीवन मृत्यु के चक्र में घूमते हुए तप कर रहे हैं। संपूर्ण प्रकृति, जड़-चेतन ,जीव -जगत जो स्वयं में अयोध्या है, जो स्वयं में सरयू है ,जो स्वयं में भारत हैं,वह आज पतन से उत्थान के लिए श्री राम की प्रतीक्षा में करबद्ध विनीत भाव से सात्विक मानसिक तप में लीन है।जो कर्म भाव से अपने छोटे-बड़े कर्तव्यों का बोध लिए राम काज की श्रृंखला में आलिंगित है। आज इन सभी आत्म विभूतियों की तपस्या पूर्णाकार होने जा रही है।

लगभग पाँच सौ वर्षों में कितने हिंदुओं की बीस -बीस पीढ़ियों ने 1528 से आज तक आशाओं और विश्वास में गुंथी समर्पण की बेड़ियों में आत्मा को बांधकर मोक्ष यात्रा प्रारंभ की।आज की वर्तमान पीढ़ी अपने पूर्वजों के गहरे अथाह विश्वास के सागर में भावविह्वल होकर प्रेम की अश्रु धारा का संगम कर रही है।

मुगल आक्रांताओं ने हिंदू जनमानस को हजारों बार रौंदा और सनातनी सुदृढ़ आधारदंड से हिंदू पुनः जीवित होकर अपने अस्तित्व के लिए ,आत्म चेतना के लिए, राष्ट्राभिमान के लिए संघर्ष करने लगता।
संघर्ष से संकल्प लिए गए। संकल्प जितना बड़ा हो उसकी तपस्या भी इतनी कठिन होती है किंतु जब उसकी फलश्रुति फलीभूत होती है वह कल्याणकारी होती है।पाँच शताब्दी पूर्व भारतीय जनमानस के आधार बिंदु भगवान श्री राम की जन्मभूमि के मंदिर को विदेशी आक्रमणकारियों ने जो आघात पहुँचाया था उसकी औषधि भी श्रीराम मंदिर का पुनरुद्धार है।

आज संपूर्ण भारत कश्मीर से केरल तक , अटक से कटक तक राष्ट्रीय चेतना मैं अभिभूत होकर राममय हो गया है। संपूर्ण विश्व समर्पण भाव से राम नाम की महिमा के क्षीर सागर में गोते लगा रहा है।श्री राम जन्मभूमि भारत की संत शक्ति, जनशक्ति, आध्यात्मिक शक्ति के साथ साथ राष्ट्र का गौरव है। गोस्वामी तुलसीदास जी के “मानस” ने शैव, वैष्णव और शाक्त को सनातनी भाव में एकाकार कर दिया है और यही एकरूपता भारत की आत्मशक्ति राम शक्ति के रूप में अनुकरणीय हो गई।

जय श्री राम