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इस्लामोफोबिया की आड़ में छुपाये जा रहे हैं जहरीले इरादे

पिछले दिनों दो खबरें सोशल मीडिया के माध्यम से डिबेट का हिस्सा बनीं, एक घटना झारखण्ड के रांची से जुडी थी और दूसरी घटना चेन्नई की है। एक जगह अपने ठेले में हिन्दू लिखने की वजह से फल दूकानदार को गिरफ्तार किया गया और दूसरी जगह एक जैन बेकरी पर एफआईआर दर्ज की गयी क्यूंकि उन्होंने अपने पोस्टर में लिखा था कि यहाँ कोई मुस्लिम वर्कर नहीं है। खैर ये मामला झूठा साबित हुआ लेकिन इसके बहाने इस्लामोफोबिया को लेकर एक बड़ी बहस देश भर में छिड़ी। एक ऐसा माहौल बनाने की कोशिश फिर से की गयी कि इस देश में मुस्लिम असुरक्षित हैं। ऐसा हर बार होता है, जब कभी भी भारत में इस्लाम पर चर्चा की शुरुआत होती है तो इस्लामोफोबिया की बहस खड़ी कर दी जाती है। इस लेख में हम इसी रणनीति पर चर्चा करेंगे की किस तरह एक समूह इस्लामोफोबिया का सहारा लेकर, इस्लामिक कट्टरता और उसके कारण उपज रही समस्याओं पर हो रही किसी भी डिस्कोर्स को कुचल देता है।

सीताराम गोएल “हिन्दू सोसाइटी अंडर सीज” नाम से प्रकाशित अपने लेखों की श्रंखला में इस इस रणीनीति का विश्लेषण करते हुए लिखते हैं कि मौलानाओं ने भारतीय मुसलमानों को आधार बनाकर एक रणनीति विकसित की है जिसके माध्यम से वो इस्लाम पर होने वाली किसी भी डिस्कोर्स को कुचल देते हैं और इस रणनीति में भारतीय मुसलमानों का इस्तेमाल हथियार के तौर पर किया जाता है। इस रणनीति के कुछ प्रमुख बिंदु जो सीताराम गोएल बताते हैं वो हैं –

  • भारत के मुसलमानों को, विशेष रूप से मुस्लिम बुद्धिजीवियों को बुद्धिवाद, सार्वभौमिकता, मानवतावाद और उदारवाद की छाया से भी दूर रखा जाना चाहिए, और मुट्ठी भर प्रशिक्षित मुल्लाओं और मौलवियों की एक सेना इन्हें ब्रेनवॉश करने के काम में लगी रहेगी। आज भी इस्लाम के व्याख्या का अधिकार मुट्ठी भर मौलानाओं के पास है।
  • प्रत्येक मुसलमान जो इस्लाम धर्म की किसी मान्यता को स्वीकार नहीं करता है या इसकी आलोचना करता है या धार्मिक मतभेदों से दूर हटकर भारतीय राष्ट्रवाद की मुख्यधारा के लिए खड़ा है, उसे एक पाखण्डी के रूप में घोषित कर दिया जाता है। आप तारेक फ़तेह, आरिफ मुहम्मद खान का उदाहरण ले लीजिये। एपीजे अब्दुल कलाम का उदहारण ले लीजिये, जो कोई भी इस्लाम में रिफार्म की बात करता है, इस्लामी समाज को उसके खिलाफ खड़ा कर दिया जाता है।
  • मुसलमानों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वह ज्यादा से ज्यादा शिकायत करें ताकि उन्हें बहुसंख्यक समाज द्वारा दलित-शोषित, उपेक्षित दिखाया जा सके। इस देश में पारसी, सिख, जैन भी अल्पसंख्यक हैं लेकिन यहाँ का हिन्दू समाज किसी और का शोषण नहीं करता, अखबार के पन्ने दुसरे सबसे बड़े बहुसंख्यक समाज के ऊपर हो रहे शोषण के ख़बरों से भरी होती हैं।

ये तीन बिंदु हमारी आज की चर्चा के लिए महत्वपूर्ण हैं, सीताराम गोएल ने इस रणनीति के सात हिस्से अपनी पुस्तक में बताएं हैं, तो आप उनको भी पढ़ें।

यह समझने की जरुरत है कि इस्लाम के इस विस्तारवादी रवैये की बात करने का अर्थ यह बिलकुल भी नहीं है कि हम मुसलमानों के खिलाफ खड़े हैं। क्यूंकि वास्तविकता यह है कि इस्लाम के इन दुर्गुणों के सबसे पहले पीड़ित मुसलमान ही हैं। यह कट्टरपंथी सोच समाज को तो प्रभावित करती हीं है लेकिन सबसे पहले ये मुस्लिम समाज के हीं विकास को अवरूद्ध कर देती है। यही कारण है कि आज देश की साक्षरता दर 74% है लेकिन मुस्लिम समुदाय में साक्षरता दर मात्र 42.7 % प्रतिशत है, 14% की आबादी रखने वाले समुदाय के पास कमाई का मात्र 3% हिस्सा है।

मुस्लिम समुदाय को पीड़ित दिखाने के इस खेल के पीछे बहुत से लोगों का स्वार्थ छिपा है। अमेरिकी राजनीती वैज्ञानिक फ्रांसिस फुकुयामा कहते हैं कि लोकतंत्र का असली मतलब है, अल्पसंख्यकों का राज। यह विचार दुनिया के कई देशों में पैठ जमा चूका है और अब भारत में भी इस विचार को खपाने की कोशिश की जा रही है।

तो देश और विशेषकर इस देश के मुस्लिम समुदाय को यह समझने की जरुरत है कि किस इस्लामोफोबिया के इस परदे के पीछे कैसे जहरीले विचार छूपे हुए हैं। जो लोग आज एक हिन्दू ठेले वाले के भगवा झंडे लगा लेने भर से पीड़ित हो गए हैं, उनकी खुद की आइडियोलॉजी क्या है? उनकी खुद के इरादे क्या हैं?

तबलीगी जमात जो पिछले कुछ समय से भारत में खबरों में बना हुआ है, इससे पहले यह संगठन कम ही चर्चा में आया है क्योंकि यह मुसलमानों के बीच ही काम करता है लेकिन इस संगठन के पीछे का विचार कितना खतरनाक है यह समझिए। इस जमात के संस्थापक मौलाना इलियास का मकसद था भारतीय मुसलमानों में से सांस्कृतिक पहचान को पूरी तरह से ख़त्म करके उन्हें “सच्चा मुसलमान” बनाना। सच्चा मुस्लमान कौन है? ये सवाल होगा आपके मन में तो एक छोटे से उदाहरण से समझिये। मौलाना वहिदुदीन खान ने एक किताब लिखी है “तबलीगी मूवमेंट”, ये कोई ऐरे-गैरे व्यक्ति नहीं है। वर्ष 2000 में इन्हें पद्म विभूषण मिला है, 2009 में राजीव गाँधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं – इस किताब के मुताबिक इस्लाम देश से पहले है, इसी विचार के कारन सऊदी अरब जैसे इस्लामिक देश ने भी तबलीगी जमात पर प्रतिबन्ध लगा रखा है। तबलीगी जमात के इस विचार को समझने के लिए, नीरज अत्री का यह विडियो देखा जाना चाहिए

https://www.youtube.com/watch?v=akXwEcUB4W8