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दीनदयाल जी की जिंदगी से जुड़े अनेक किस्से प्रेरणा देने वाले हैं – अभय महाजन

दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट में मनाई गई पं. दीनदयाल उपाध्याय जी की 54 वीं पुण्यतिथि

चित्रकूट – दीनदयाल शोध संस्थान चित्रकूट द्वारा पं. दीनदयाल उपाध्याय की 54 वीं पुण्यतिथि को दीनदयाल पार्क उद्यमिता विद्यापीठ चित्रकूट में समारोह के रूप में मनाई गई।

प्रातःकाल से ही संस्थान के विविध प्रकल्प गुरुकुल संकुल, उद्यमिता विद्यापीठ, सुरेन्द्रपॉल ग्रामोदय विद्यालय, आरोग्यधाम, आईटीआई तथा खादी ग्रामोद्योग आयोग प्रशिक्षण केन्द्र के प्रशिक्षणार्थी एवं बच्चों तथा गुरुमाता-पिता सहित कार्यकर्ताओं द्वारा अपने-अपने प्रकल्पों में दीनदयाल जी के चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित किये गये तथा कार्यकर्ताओं एवं बच्चों द्वारा पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन से जुडे प्रेरणादायी प्रसंगों को दैनिक जीवन में आत्मसात करने हेतु मंचन भी किया गया।

सामूहिक कार्यक्रम के रूप में पं. दीनदयाल पार्क उद्यमिता परिसर में स्थापित लगभग 15 फिट ऊॅची प्रतिमा पर माल्यार्पण कर संस्थान के सभी महिला पुरुष कार्यकर्ताओं द्वारा पुष्पांजलि अर्पित की गई। इसके अलावा संस्थान के सभी स्वाबलंबन ग्रामीण केंद्रों पर भी दीनदयाल जी की पुण्यतिथि मनाई गई।

इस अवसर पर संस्थान के संगठन सचिव श्री अभय महाजन ने बताया कि राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख द्वारा 1968 में पं. दीनदयाल जी के निर्वाण के उपरांत दीनदयाल स्मारक समिति बनाकर उनके काम की नींव दिल्ली में रखी थी।

नानाजी द्वारा स्मारक समिति से लेकर दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना तक के सफर में दीनदयाल जी के एकात्म मानवदर्शन को व्यवहारिक रूप में धरातल में उतारने का कार्य सामूहिक पुरुषार्थ से कराकर दिखा दिया कि कोई अकेला व्यक्ति या संगठन विकास की प्रतिमा न दिखे बल्कि जनता स्वयं विकास की वाहक बनें।

उनका दृष्टिकोण था कि इसमें केवल नाममात्र की भागीदारी प्रक्रिया नही होना चाहिये बल्कि ऐसी हो जिसमें लोगों के लिये लोग हों! वे खुद पहल करें, पुरुषार्थ करें, और विकास की प्रक्रिया के सतत् भागीदार बनें।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि समाजवाद, साम्यवाद और पूंजीवाद व्यक्ति के एकांगी विकास की बात करते हैं, जबकि व्यक्ति की समग्र जरूरतों का मूल्यांकन किए बिना कोई भी विचार भारत के विकास के अनुकूल नहीं होगा। उन्होंने भारतीयता के अनुकूल पूर्ण भारतीय चिन्तन के रूप में ‘एकात्म मानववाद’ का दर्शन प्रस्तुत किया।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन के अनेक पक्ष, कई आयाम और अनेक कार्य हैं। कम उम्र में ही दुनिया को अलविदा कहने वाले पंडितजी की जिंदगी से जुड़े अनेक किस्से हैं, जो काफी दिलचस्प होने के साथ-साथ प्रेरणा भी देते हैं। 11 फरवरी 1968 को मात्र 51 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले पंडितजी की ईमानदारी, सादगी और दर्शन आज भी लोगों को सीख देते हैं।