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नर्मदा जयंती -मध्यप्रदेश की जीवन रेखा माँ नर्मदा – डॉ. किशन कछवाहा

जबलपुर (विसंके)माँ नर्मदा मानव सभ्यता के प्रकट होने वाले उन दिनों की मानव गति विधियों एवं अनुभूतियों की मूक साक्षी है जिसे पाषाण-संस्कृति के विशेषज्ञों द्वारा की गई खोजों से समझा जा सकता है. पुरातन संस्कृत रचना ’’भवानी तंत्र’’ में नर्मदा की जीवन दायिनी शक्ति का उल्लेख है वशिष्ट ऋषि ने इसे ’दिव्यरूपा’ नदी कहा था. दिव्यारूपा नदी बने तन्न विश्रुता- भुवनत्रये. नर्मदा का एक नाम रेवा भी है जिसका संस्कृत में अर्थ होता है उछलना-कूदना. पौराणिक आख्यानों में इसे प्रलय के प्रभाव से मुक्त तथा कुमारी माना गया है. कुमारी होकर भी उन्हें नर्मदा मैया कहा जाता है. माँ नर्मदा की उद्गम स्थली है अमरकंटक. अमरकंटक से तात्पर्य है जीवन के समस्त कंटको को समाप्त कर मंगलमय शाश्वत जीवन की इंगित करने वाला मोक्ष प्रदाता स्थल. नर्मदा ने अमरकंटक के अपने सूक्ष्म स्वरूप को क्रमशः विराट में परिवर्तित करते हुये मानों मनुष्य जाति को यह संदेश दिया है कि उसमें भी अपने स्वरूप का विस्तार करतें हुए विराट स्वरूप प्राप्त कर लेने की क्षमता है.

गंगेच यमुने चैव गोदावरी, सरस्वती नर्मदे, सिन्धु कावेरी जलेस्मिन् – सन्निधिं कुरू।।

इस श्लोक से स्पष्ट है कि पावन श्री नर्मदा की गणना देश की प्रमुख सात नदियों में की जाती है. मान्यता है कि लाखों-कराडों देवता और दानव माँ नर्मदा की आराधना करते रहे हैं. वशिष्ट पिप्लाद आदि ऋषिगण- अर्चना में संलग्न रहे. श्री नर्मदा अष्टकम्  में उत्कृष्ट वर्णन निहित है. अद्वैत दर्शन के संस्थापक आदि शंकराचार्य महाभारत ने पापनाशनी निरूपित किया है. भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश के शहडोल जिले की मेखला पर्वतमाला में 1057 मीटर की ऊँचाई पर अमरकंटक से निकलने वाली यह नदी मध्यप्रदेश, गुजरात के टेढे-मेढे मार्गो से 1312 किलोमीटर की यात्रा पूरी करती है. यह उत्तर और दक्षिण भारत के मध्य एक रेख खींचती है. महाकाव्य, पुराण इसकी जीवन दायी शक्ति की मनोहारी व्याख्या करते हैं. जबलपुर नगर से 22 किलोमीटर की दूरी पर संगमरमरी छटा बिखेरता भेडाघाट नामक स्थान है, जहाँ धुऑधार का मनोरम द्रश्य अपनी और आकर्षित करता है. प्रख्यात कवि श्रीधरपाठक कहते हैं, ’’प्रकृति यहाँ एकान्त बैठि नित रूप संवारि.’’ नर्मदा का हर कंकड शंकर है- इस महान आस्था को संजो कर रखा गया है अनादि काल से.

’’जय रेवा मेकलसुता, जयति नर्मदा मात ।

जय मुदली सोमोद्भवा जय त्रिकुटा अवदात ।।

कहीं पाताल को छुती गहराई, कहीं मैदानी, क्षैत्र अमरकंटक में कपिलधारा, दूधधारा, मंडल में सहस्त्रधारा, भेडाघाट में धुऑधारा, वरमान में सप्तधारा औंकारेश्वर में धरा आदि. धर्म ध्वजा भी विलक्षण-स्मरण. दर्शनमात्र से जन्म-जन्मांतरों के पाप कट जाये. पग-पग पर तीर्थ स्थल ’’नर्मदेत्वं महामागा, सर्वपाप हरीभव’’ पुण्यसलिला नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से तनिक दूरी पर स्थित मंडला नगर अपने धार्मिक महत्व के साथ-साथ आदि शंकराचार्य के गुरू गौडपादाचार्य की तपोभूमि, मंडन मिश्र जैसे तपोनिष्ठ विद्वान की कर्मभूमि-जन्मभूमि के रूप में विख्यात है. यहीं शंकराचार्य और उनके बीच शास्त्रार्थ हुआ था. नर्मदा के दोनों तट भारतीय संस्कृति के समन्वय के द्योतक हैं. भृगु, अंगिरा, व्यास, अगस्त्य, वशिष्ठ, परशुराम आदि महान ऋषियों के बाद कविकुल गुरू कालिदास ने नर्मदा का स्तुतिगान किया है. यह भौगोलिक तथ्य उल्लेखनीय है कि नर्मदा तब भी बहती थी जब गंगा का अस्तित्व नहीं था. नर्मदा एक विशाल एवं चिरस्थायी नदी है जिसके तट पर कई स्मरणीय घटनाएं घटी हैं. भारत की पौराणिक एवं ऐतिहासिक गाथाओं में इस पावन नदी का विशिष्ट स्थन है. राजा सहस्त्रबाहु की दो प्रतिमाएं मण्डला के राजराजेश्वरी मंदिर में स्थापित हैं. सहस्त्रबाहु की जन्मतिथी कार्तिक त्रयोदशी से पूर्णिमा तक मण्डला में अनादिकाल से भरने वाला मेंला इसी और संकेत देता है. हजारों की संख्या में कल्चुरी राजाओं के मंदिर तथा भग्नावशेष स्थल उस प्रख्यात गाथा का संकेत तो देते ही हैं. अतीत में नर्मदा के किनारे इतिहास और संस्कृति ने अनेक करवटे ली हैं. वर्तमान में विकास ने अनेक मंजिलें भी जय की हैं यह वरदानी नदी है. जिसके जल में काष्ठ, अस्थियों एवं वनस्पतियों को पाषाण में बदल देने की चमत्कारिक शक्ति निहित है. मानव संस्कृति के संपोषण में भगवती माँ नर्मदा का अपार एवं स्तुत्य योगदान है. गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी, जैसी पावन नदियों के तट के आकर्षण ने ही संतो एवं प्रबुद्धजनों को आकर्षित किया है परिणाम स्वरूप् सम्पूर्ण विश्व को अपने ज्ञान से आलोकित करने वाली सनातन संस्कृति ने जन्म लिया. वर्तमान समय में युवाओं के लिए माँ नर्मदा के दो विलक्षण संदेश है. पहला- यह कि जो कठिन मार्ग चुना है, पहाड जंगल, चट्टानें कितना संघर्ष करना पडा है, आगे बढने के लिए यही संदेश कि संघर्ष-कठिनाइयों से डरो नहीं आगे बढते चलो. दुसरा संदेश यह कि खेतों, खलिहानों, मनुष्यों पशुओं की प्यास बुझाते माँ नर्मदा निरंतर आगे बढी हैं. दूसरों के लिये है यह जीवन अपने स्वार्थ के लिए इस जीवन के क्षणों को नष्ट न करें. डॉ. सांख, डॉ. वाकणकर के द्वारा किये गये उत्खननों से यह सिद्ध हो गया है कि नर्मदा घाटी आदिमानव का पसंदीदा बसेरा रहा है. भारतीय वागमय के श्रेष्ठतम पुराणों में माँ नर्मदा की यशोगाथा का उल्लेख मिलता है. नर्मदा ही विश्व में एक मात्र नदी है, जिसकी परिक्रमा का विधान है, अन्य नदियों की परिक्रमा का विधान का उल्लेख नहीं मिलता. वाल्मीकि रामायण में नर्मदा के उत्पत्ति स्थल ’अमरकंटक’ का उल्लेख मिलता है. वही महाकवि कालिदास ने अपने ग्रंथ ’मेघदूत’ में विशेष रोचक वर्णन किया हैं.