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प्रताप गौरव केंद्र, राष्ट्रीय तीर्थ उदयपुर राष्ट्रीय धर्म, संस्कृति एवं इतिहास बोध का तीर्थ है– दत्तात्रेय होसबोले

उदयपुर. वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जयन्ती की पूर्व संध्या पर प्रताप गौरव केन्द्र- राष्ट्रीय तीर्थ उदयपुर (राजस्थान) द्वारा आयोजित नौ दिवसीय महाराणा प्रताप जयन्ती समारोह 2021 का ऑनलाइन उद्घाटन शनिवार को सायं 5 बजे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय जी होसबाले ने किया.

महाराणा प्रताप जयन्ती समारोह 2021 (दिनांक 12 जून से 20 जून तक) के उद्घाटन के प्रारंभ में वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर द्वारा संचालित प्रताप गौरव केंद्र के निदेशक अनुराग सक्सेना ने अतिथियों का परिचय कराया तत्पश्चात वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर के महामंत्री परमेन्द्र जी दशोरा ने स्वागत उद्बोधन दिया.

प्रताप गौरव केन्द्र राष्ट्रीय तीर्थ पर बनी लघु फिल्म का लोकार्पण भी दत्तात्रेय होसबाले ने किया. तत्पश्चात रवि बोहरा एवं भगवत सिंह ने मायड थारो वो पूत कठे काव्य गीत प्रस्तुत किया.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय जी होसबाले ने कहा कि उदयपुर का प्रताप गौरव केंद्र राष्ट्रीय तीर्थ देशभक्ति का अनोखा प्रेरणा का केन्द्र है. मुझे दो-तीन बार इसे देखने का मौका मिला. दो-तीन दिन रहकर इसका दर्शन किया है, प्रेरणा ली है. यह केन्द्र राष्ट्रीय धर्म, संस्कृति एवं इतिहास बोध का तीर्थ है. राष्ट्रीय तीर्थ नाम रखा है. राष्ट्रीय तीर्थ का नाम रखना अत्यन्त सार्थक है, ऐसा मैं मानता हूं.

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति उदयपुर को साधुवाद देता हूं कि उन्होंने भव्य कलात्मक स्मारक की कल्पना को साकार करते हुए इसका निर्माण कर देश की जनता को समर्पित किया ताकि भविष्य की आने वाली पीढ़ी अपने जीवन को पुनीत बनाए. निश्चय ही देश वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के प्रति कृतज्ञ रहेगा. आपने महाराणा प्रताप के जीवन पर एक प्रेरक स्मारक केन्द्र बनाकर राष्ट्रीय कार्य को सम्पन्न किया है.

महाराणा प्रताप के उच्चारण या उनके स्मरण से ही अपने अन्दर देश भक्ति का दीपक उदय हो जाता है. प्रताप का चित्र सामने लाने से तो एक सामान्य व्यक्ति भी उत्साह से, शौर्य से, खड़ा हो जाता है. ऐसे एक अत्यन्त स्फूर्ति देने वाले व्यक्तित्व, उनके शरीर सौष्ठव, जीवन काल की, मेवाड के राणा की कहानी सुनते हैं तो शरीर के रोम रौंगटे खड़े हो जाते हैं.

भारत के इतिहास की हर कहानी में राणा प्रताप को एक वीरोचित स्थान प्राप्त है. न केवल भारत में, अपितु विश्व के वीरों की श्रृंखला में वह प्रखर स्वतंत्रता सेनानी सदा याद रहेंगे. राणा प्रताप कहते ही हल्दीघाटी की ऐतिहासिक लड़ाई स्मरण में आ जाती है.

आपने इस सप्ताह का कार्यक्रम बनाया है. कल ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया महाराणा का जन्मदिवस है और 18 जून को हल्दीघाटी युद्ध विजय दिवस. इस वर्ष तृतीया पड़ने के कारण एक ही सप्ताह में राजा के जनक का दिवस और हल्दीघाटी युद्ध दिवस, दोनों हिन्दू पंचाग के अनुसार आ गए हैं.

वह हल्दीघाटी की लड़ाई अरावली की पर्वत माला, घोड़े की खण खण आवाज, उनके द्वारा किए युद्ध, राजस्थान लोक संस्कृति, लोक गीत-साहित्य में अमर स्थान प्राप्त कर चुके हैं. राणा का नाम कहते ही साढ़े सात फीट का उनका बाहुबली शरीर आंखों के सामने आ जाता है. उनके जीवन की कहानी के पृष्ठ में एकलिंग के आराध्य का दृढ़ प्रतिज्ञ के रूप में दूसरा नाम है. जीवन में जो संकल्प लिया, उस संकल्प को साकार कर दिखाया. अकबर की सेना और प्रताप की सेना दोनों की तुलना करना संभव नहीं है.

मैं हल्दीघाटी इतिहास के संदर्भ में कहना चाहता हूं कि ऐसे युद्ध को भारत के युद्धों की श्रृंखला के इतिहास में कुछ ही लड़ाई को स्थान प्राप्त हुआ है. हल्दीघाटी युद्ध के राणा प्रताप की लड़ाई का अध्यापन ठीक से पूर्ण होना चाहिए. राणा प्रताप कभी मुगलों से हारे नहीं. इधर-उधर की पुस्तकों में इतिहास के गलत तथ्य मिल जाते हैं. सत्य को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है, यह बार-बार कहना भी पड़ता है. इतिहास की पुस्तक, इतिहास के अध्ययन से कभी कभी मुझे लगता है कि इन चीजों ने महाराणा प्रताप के साथ अन्याय किया है.

भारत के लोगों ने साहित्य में जिन बातो को सदा शाश्वत रूप में रखा है, उस इतिहास को पाठ्य पुस्तक लिखने वाले विद्वान लोग पूरा न्याय नहीं कर पाए. भारत की हर पीढ़ी को राणा प्रताप के जीवन की कहानी पढ़ने का अवसर मिलना चाहिए. मैं समझता हूं वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप समिति नौजवानों को इस प्रकार के अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए सुविधा उपलब्ध कराने का भी प्रयत्न करेगा.

राणा प्रताप 57 वर्ष जीये थे. उनके संघर्ष के बारे में सुनते हैं, वही बात छत्रपति शिवाजी पर भी लागू होती है. राणा का संघर्ष का जीवन 12 वर्ष के करीब रहा. बाद में 11 वर्ष उन्होंने शासक के रूप में कार्य किया. यह लोगों की नजर से ओझल है. समरवीर होते हैं, उनके पराक्रम की कहानी बन जाती है, लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं.

आदर्श शासन व्यवस्था खड़ी की. जनता के प्रेमी रहे, अच्छे  शासक रहे. कई प्रकार के आदर्श प्रस्तुत किए जो हमारे सामने हैं, वह सबके सामने लाना चाहिए. महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल को आदर्श के रूप में सबके सामने आदर्श पुरूष के नाते, प्रेरणा पुरूष के रखना होगा.

आज आवश्यक बातों को सत्यता के साथ, सबूत के साथ समाज के सामने रखने की जरूरत है. राणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, रणजीत सिंह, अहिल्या बाई होल्कर सहित अन्य जनों ने लड़ाई लड़ी, व राज व्यवस्था भी की. उसी प्रकार विचार करते हुए आदर्श स्थापित किया. मुझे लगता है इस पक्ष को भी अवसर मिलना चाहिए. धन्यवाद समिति अध्यक्ष बी एल चौधरी जी ने ज्ञापित किया.