Trending Now

संपूर्ण देश के साथ-साथ महाकौशल में भी गत वर्ष की तुलना में शाखाओं में हुई वृद्धि ;

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा 11, 12, 13 मार्च 2022, कर्णावती, गुजरात में संपन्न हुई. सभा से लौटकर आज प्रज्ञा मंडपम, यादव कॉलोनी में महाकौशल प्रांत के माननीय प्रांत संघचालक डॉ. प्रदीप दुबे ने पत्रकार वार्ता को संबोधित किया. इस अवसर पर प्रांत के सह कार्यवाह अनिरुद्ध कौरवार, प्रांत सह प्रचार प्रमुख प्रशांत बाजपेई उपस्थित थे.

डॉ. दुबे ने बतलाया कि प्रतिनिधि सभा में सरकार्यवाह जी द्वारा वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया . बैठक के प्रारम्भ में पिछले वर्ष दिवंगत हुए महानुभावों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. जिनमें भारत रत्न सुश्री लता मंगेशकर, सीडीएस जनरल बिपिन रावत, बाबा साहेब पुरंदरे, श्री राहुल बजाज, पंडित बिरजू महाराज और पू. श्रीनिवास रामानुजाचार्य स्वामी प्रमुख हैं.

पिछले दो वर्ष से कोविड संकट के बावजूद संघकार्य 2020 की तुलना में 98.6% पुनः प्रारम्भ हो चुका है. साप्ताहिक मिलन की संख्या भी बढ़ी है. दैनिक शाखाओं में 61% शाखाएं छात्रों की हैं और 39% व्यवसायी शाखाएं हैं. संघ की दृष्टि से देशभर में 6506 खंड हैं, इनमें से 84% में शाखाएं हैं. 59,000 मंडलों में से करीब 41% मंडलों में संघ का प्रत्यक्ष शाखा के रूप में कार्य है.

2303 नगरीय क्षेत्रों में से 94% में शाखा का कार्य चल रहा है एवं आने वाले दो वर्षों में सभी मंडलों में संघ की शाखा हो, ऐसा प्रयास किया जाएगा. 2017 से 2021 तकप्रतिवर्ष संघ की वेबसाइट में जॉइन्‌ आरएसएस ‘join rss’ के माध्यम से 20 से 35 आयु वर्ग के लगभग 1 लाख से 1.25 लाख युवाओं ने संघ से जुड़ने की इच्छा व्यक्त की. 15 अप्रैल से जुलाई के मध्य तक 104 स्थानों पर संघ शिक्षा वर्ग होंगे, जिनमें प्रति वर्ग औसतन संख्या 300 की रहेगी.

डॉ. प्रदीप दुबे ने बताया कि कोरोना काल के बाद महाकौशल प्रांत में भी संघ कार्य गतिमान हो उठा है. 191 में से 188 खंड और 946 मंडल, 120 बस्तियां शाखायुक्त हैं. वर्तमान में 1693 शाखाएँ, 439 साप्ताहिक मिलन और 238 संघ मंडलियाँ चल रही हैं.

कोरोना-काल में संघ के स्वयंसेवकों ने समाज के साथ मिलकर सक्रियता के साथ सेवा कार्य किया. 5.50 लाख स्वयंसेवकों ने महामारी के पहले दिन से ही सेवा कार्य प्रारम्भ कर दिया था. विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ बड़ी संख्या में मठ, मंदिर, गुरुद्वारों से बहुत बड़ा वर्ग सेवा कार्य के लिए निकला. यह एक जागरूक राष्ट्र के लक्षण हैं. स्वयंसेवकों द्वारा कुटुंब प्रबोधन, गौसंवर्धन एवं ग्रामीण विकास का कार्य बहुत अच्छी मात्रा में चल रहा है.

इस वर्ष प्रतिनिधि सभा ने स्वावलंबी भारत के निर्माण के संबंध में प्रस्ताव पारित किया है. “भारत को स्वावलम्बी बनाने हेतु कार्यों के अवसर बढ़ाना आवश्यक” शीर्षक के इस प्रस्ताव में कहा गया है कि प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता, मानवशक्ति की विपुलता और अंतर्निहित उद्यमकौशल के चलते भारत अपने कृषि, विनिर्माण, और सेवा क्षेत्रों को परिवर्तित करते हुए कार्य के पर्याप्त अवसर उत्पन्न कर अर्थव्यवस्था को उच्च स्तर पर ले जाने की क्षमता रखता है. विगत कोविड महामारी के कालखंड में जहाँ हमने रोजगार तथा आजीविका पर उसके प्रभावों का अनुभव किया हैं, वहीं अनेक नए अवसरों को उभरते हुए भी देखा है. रोजगार उत्पन्न करने की चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करने हेतु समूचे समाज को ऐसे अवसरों का लाभ उठाने में अपनी सक्रिय भूमिका निभानी होगी.

इस प्रस्ताव में मानव केंद्रित, पर्यावरण के अनुकूल, श्रम प्रधान तथा विकेंद्रीकरण एवं लाभांश का न्यायसंगत वितरण करनेवाले भारतीय आर्थिक प्रतिमान (मॉडल) के महत्व को रेखांकित किया गया है, और प्रेरक कार्य कर रहे उद्यमियों, व्यवसायियों, सूक्ष्म वित्त संस्थानों, स्वयं सहायता समूहों और स्वैच्छिक संगठनों के प्रयासों को सराहा गया है. प्रस्ताव ‘स्वदेशी और स्वावलंबी’ उच्च रोजगार क्षमता वाले आर्थिक तंत्र के नवोन्मेषी आर्थिक तंत्र के निर्माण के लिए समाज के सभी घटकों का आवाहन करता है.

प्रतिनिधि सभा में स्वाधीनता के अमृत महोत्सव (75 वर्ष) पर विस्तृत चर्चा हुई. राष्ट्रीय आन्दोलन सार्वदेशिक और सर्वसमावेशी था। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद आदि आध्यात्मिक नेतृत्व ने देश के जन और जननायकों को ब्रिटिश अधिसत्ता के विरुद्ध सुदीर्घ प्रतिरोध हेतु प्रेरित किया। इस आन्दोलन से महिलाओं, जनजातीय समाज तथा कला, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान सहित राष्ट्रजीवन के सभी आयामों में स्वाधीनता की चेतना जागृत हुई।

लाल-बाल-पाल, महात्मा गाँधी, वीर सावरकर, नेताजी-सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह, वेळू नाचियार, रानी गाईदिन्ल्यू आदि ज्ञात-अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों ने आत्म-सम्मान और राष्ट्र-भाव की भावना को और प्रबल किया। महाकौशल प्रांत में राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथशाह, रानी अवंतीबाई लोधी, हिरदेशाह, गुलाब सिंह, बादल भोई, 52वीं बटालियन के सूबेदार बलदेव तिवारी, ठाकुर पाण्डे और गजाधर तिवारी , मूका लोहार , वीरांगना गुड्डो दाई, रैना बाई, बैमा बाई के साथ बिरजू गोंड जैसे वीरों और अनेक गुमनाम योद्धाओं ने बलिदान दिया. जबलपुर के चिदंबरम पिल्लई जैसे क्रांतिकारी हुए. नेताजी सुभाष जिसमें अध्यक्ष चुने गए ऐसा ऐतिहासिक त्रिपुरी सम्मेलन जबलपुर में हुआ.

प्रखर देशभक्त डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने भी अपनी भूमिका का निर्वहन किया. सार रूप में कहा जाए तो भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन की सबसे बड़ी विशेषता थी कि यह केवल राजनैतिक नहीं, अपितु राष्ट्रजीवन के सभी आयामों तथा समाज के सभी वर्गों के सहभाग से हुआ सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन था. इस स्वतंत्रता आन्दोलन को राष्ट्र के मूल अधिष्ठान यानि राष्ट्रीय “स्व” को उजागर करने के निरंतर प्रयास के रूप में देखना प्रासंगिक होगा.