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“सादर सेवा जुहार” जैसे परम्परागत संबोधन से प्रारंभ हुई गोंडी( वेब) गोष्ठी…

“सादर सेवा जुहार” जैसे परम्परागत संबोधन से प्रारंभ हुई गोंडी( वेब) गोष्ठी…

रामायण और महाभारत का गोंडी भाषा में हो अनुवाद: अनुसुइया उईके
अखिल भारतीय साहित्य परिषद के तत्वाधान में “गोंडी भाषा, साहित्य व संस्कृति” पर वेब संगोष्ठी सम्पन्न हुई।संगोष्ठी के मुख्य अतिथि सुश्री अनुसुइया उइके राज्यपाल,छत्तीसगढ़ और
श्री फग्गनसिंह जी कुलस्ते,केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री,भारत सरकार रहे।

संगोष्ठी की अध्यक्षता श्री प्रकाश सिंग जी उइके,स्पेशल रेलवे मजिस्ट्रेट,जबलपुर ने की। विशिष्ट अतिथि श्री जुगराजधर द्विवेदी जी,वरिष्ठ प्रचारक,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ रहे। कार्यक्रम की शुरुआत डॉ उदय भानु तिवारी जबलपुर की सरस्वती वंदना, हेमन्त भावे जबलपुर के बांसुरी वादन तथा श्याम बैरागी मण्डला के गोंडी गीत से हुई।

सर्वप्रथम संगोष्ठी संयोजक,शरद अग्रवाल, प्रदेश उपाध्यक्ष अखिल भारतीय साहित्य परिषद ने मुख्य अतिथियों,अध्यक्ष और विशिष्ट अतिथि का परिचय कराते हुए विषय प्रवर्तन किया। श्री अग्रवाल ने अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा राष्ट्र भाषा हिन्दी के उन्नयन के लिए उसकी अंत:सलिला स्वरूप क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों का विकास के विकास की योजना के अन्तर्गत आज की वेब गोष्ठी में शामिल सभी उपस्थित जनों का स्वागत किया।

महामहिम राज्यपाल अनुसूइया उइके महोदया ने परम्परागत तरीके से सादर सेवा जुहार करते हुए कहा कि यह आयोजन प्रासंगिक है क्योंकि नवीन शिक्षा नीति के अंतर्गत बच्चों को प्राथमिक स्तर पर उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा देने का प्रावधान किया गया है। मुझे आशा है कि यह संगोष्ठी आधुनिक शिक्षा नीति को प्रभावी बनाने में सहायक होगी।

उन्होंने गोंडी भाषा में ज्ञान, विज्ञान, धर्म, संस्कृति, समसामयिक घटनाएं, लोक कथाओं,पंचतंत्र की कहानियों,रामायण और महाभारत के अनुवाद की आवश्यकता जताई तथा गोंडी भाषा को संविधान की सूची में सम्मिलित कराने हेतु अखिल भारतीय साहित्य परिषद के माध्यम से आज की गोष्ठी का सार और अनुशंसाएं केंद्र सरकार को भेजने के निर्देश दिए।

अपने उद्बोधन में महारानी दुर्गावती के शौर्य और पराक्रम को याद करते हुए एनिमेशन और कार्टून इत्यादि में गोंडी भाषा के प्रयोग की संभावना व्यक्त की।गोंडी भाषा को द्रविड़ मूल की वर्गीकृत करते हुए उन्होंने कहा कि देश में लगभग हमारे दो करोड़ गोंडीभाषी लोग हैं।

उन्होंने गोंडी भाषा से जुड़े परम्परागत साहित्य के संरक्षण करने का आवाहन किया ताकि उन्हें अपनी मातृभाषा में साहित्य एवम अन्य आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई जा सके इससे उनका भाषा के प्रति जुड़ाव होगा और ज्ञान में अभिवृद्धि होगी। केंद्रीय राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते जी ने भाषा के उन्नयन के लिए जहां शब्दकोश के निर्माण और व्याकरण की महत्ता प्रतिपादित की ।

उनका निजी आकलन रहा कि आधुनिक इतिहास कारों द्वारा गोंडी संस्कृति , परंपराओं और महान गोंडी विरासत को कम ध्यान देने के कारण गोंडी भाषा, साहित्य और संस्कृति के विनष्ट होने का खतरा बढ़ा है। उन्होंने इतिहास वेत्ता का आवाहन किया कि वे गोंडी संस्कृति,परम्पराओं और इतिहास का ईमानदारी से वास्तविक लेखन करें।

उन्होंने गोंडी भाषा को संविधान की सूची में शामिल करने के अब तक किए गए ग्यारह विविध प्रयासों और गोंडी शब्दकोश तैयार करने की चर्चा की। उन्होंने भाषा विज्ञान के उस सिद्धांत को मान्यता प्रदान की कि किसी भाषा के सशक्तीकरण होने के लिए उसका अपना शब्दकोष और व्याकरण होना चाहिए।

अध्यक्ष की आसंदी से बोलते हुए रेलवे मजिस्ट्रेट श्री प्रकाश सिंह उइके ने मार्मिक अपील की कि गोंडी भाषा और संस्कृति को विलुप्त होने से बचाया जावे।सभी शामिल वक्ताओं के विषयों की समीक्षा कर उत्साहवर्धन किया।

संगोष्ठी में डॉ विजय चौरसिया (गाड़ा सरई) ने राजवंशी गीत गाथाओं पर विमर्श करते हुए बताया कि गोंड राजाओं की वीरगाथाएं प्रस्तुत करते हुए कहा कि उनमें शौर्य के साथ श्रृंगार की प्रमुखता है।

अवधेश तिवारी( छिंदवाड़ा)/ जिन्होंने लगभग 550 गोंडी कहावतों को संग्रहित एवम दोहा बद्ध कर पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है,अपनी गोंडी लोक कहावतो के माध्यम से लोक विश्वास,खान पान, टोने टोटके और सामाजिक व्यवस्थाओं को विषय बनाया।

राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त डॉ रश्मि बाजपेयी ( मण्डला) ने अपने शोध पत्र में आदिवासियों को आदि आस्थाओं के प्रतीक बताया।वहीं,राजीव मिश्रा( मण्डला) ने जनजातीय समाज में गुदना परम्परा को वर्तमान टैटू से जोड़ते हुए उसके वैज्ञानिक महत्ता प्रतिपादित की।

बी एल इनवाती (सिवनी) गोंड़ी संस्कृति और उनके रीति रिवाजों की विस्तृत चर्चा की।उन्होंने जनजातियों की सहनशीलता को प्रकृति से मिला अनुपम वरदान बताया।

अमृत सिंह बालरे (पनागर/जबलपुर) ने एक गोंडी प्रथाओं को विस्तार देते हुए एक विवाह में बिस्टी बनने के स्वयं के अनुभव साझा किए और उसके माध्यम से सामाजिक परम्परा विशेषकर खर्ची कुदई (वधूमूल्य) पर सारगर्भित चर्चा की और गर्व से बताया कि गोंड समाज में दहेज प्रथा जैसी कुरीति कदापि नहीं है।

संजीव सिंह वाड़ीवा (भोपाल), जो ऑनलाइन लोगों को गोंडी भाषा सिखा रहे हैं और अब तक लगभग 10000लोगों को बोली और व्याकरण सीखा रहे हैंउन्होंने गोंडी का मानक शब्दकोश तैयार करने और उसे पाठयक्रम में शामिल करने की अपील की। प्रोफेसर राजेश ठाकुर(नैनपुर) ने गोंडी जनजाति और उनके उपभेदों पर अपने सारगर्भित विचार रखे।

संगोष्ठी का संचालन सुरेन्द्र सिंह पंवार (जबलपुर) और नवीन जैन अकेला(मंडला) तथा आभार प्रदर्शन – प्रतिमा वाजपेई संत (मंडला) द्वारा किया गया।गोष्ठी में 20 जिलों के145 साहित्यकारों ने सहभागिता दी।गोष्ठी में सिवनी से अखिलेश श्रीवास्तव व रमेश चातक जी का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ।