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साधु-संतों की तपस्या के कारण ही देश अक्षयवट के समान अडिग खड़ा रहा- डॉ. मोहन भागवत

 स्वामी सवितानंद अमृत महोत्सव के प्रसंग पर आयोजित समारोह में सरसंघाचालक डॉ. मोहन भागवत जी का प्रतिपादन

नाशिक- अपने देश पर अनेक  आघात व आक्रमण हुये. कई मोहजाल फेंके गये, तब कईयों को लगा, ये देश नष्ट हो जाएगा, यह सनातन हिंदुधर्म बचेगा नहीं किन्तु संत- महापुरुषों की तपस्या के कारण यह देश अक्षयवट की तरह खड़ा रहा – रा. स्व. संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने यह प्रतिपादित किया.

नाशिक में आयोजित स्वामी सवितानंदजी के अमृत महोत्सव के अवसर पर संबोधित करते हुये उन्होंने कहा- मोक्ष, धर्म साय चलता है. मोक्ष का अर्थ आध्यात्मिक साधना एवं पुरुषार्थ है. जब तक शरीर रहता है तब तक अर्थ व काम दोनों का अस्तित्व रहता है और इन्हें अनुशासित करने के लिये धर्म होता है. उन्होंने कहा कि ये धर्म ही संपूर्ण समाज को संगठित रखता है. संतों-महात्माओं में लोगों के लिये करुणा होती हैं ने अपने लिये कुम्न नहीं मांगते. श्री भागवत ने बताया कि संत जीवन भर जो उन्हें प्राप्त हुआ हैं, वह सभी को मिले इसलिये प्रयासरत रहते हैं.

इस अवसर पर म. भागवत ने स्वामी सवितानंद का मानपत्र, महावस्त्र व पुष्पहार से सम्मान किया. साधकों का मार्गदर्शन करते हुए स्वामी सवितानंद ने कहा मैं समाज के ऋण से मुक्त होने का प्रयत्न कर रहा हूँ क्योंकि मेरे कंधों पर पैराशूट है हर व्यक्ति के कणों पर पैराशूट होता है, सिर्फ उसके प्रति जागरूक रहकर समाज व देश के ऋण से उऋण होने का प्रयत्न करना चाहिये तभी भगवान मिला सकते हैं.

नाशिक स्थित नक्षत्र लॉन में सम्पन्न इस समारोह में स्वामी सवितामंद अमृत महोत्सव समिति द्वारा “सविता अर्ध्य” नामक स्मरणिका का विमोचन सभी सम्माननीय अतिथियों के करकमलों से लिया जाया. इस स्मरणिका में देशभर के 60 से अधिक स्वामी साधकों के लेखों का समावेश है. इसे चार भागों में विभाजित किया गया है.

समरोह में स्वामी सवितानंद सेवा समिति की ओर से सैनिक कल्याण कोष के लिये 3 लाख रु. साथ ही श्रीराम जन्मभूमि न्यास को 3 लाख रुपये का धनादेश सौंपा गया. डॉ. कपिल  चांद्रायण  ने समारोह का कुशल संचालन व वैद्य योगेश जिसंगलीकर ने आभार प्रदर्शन किया. कोरोना नियमावली को देखते हुये बहुत कम लोगों की उपस्थिति में उक्त कार्यक्रम सम्पन्न हुआ. सीधे प्रसारण की व्यतस्था के कारण पूरे देश के साधकों ने इस अमृत महोत्सव समारोह का पर बैठे रसास्वादन किया.