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राष्ट्रीय चेतना का उद्घोष : अयोध्या आंदोलन – 2

कुश निर्मित आद्य श्रीराम मंदिर

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने भारत की सांस्कृतिक मर्यादा के अनुरूप अनेक महत्वपूर्ण निर्णय अपने जीवन में ही ले लिये थे. मरते दम तक सत्ता से चिपके रहने के अनैतिक दुर्भाव को ठोकर मारकर राजा राम ने समस्त साम्राज्य को अपने भाईयों एवं पुत्रों में बांट दिया था. श्रीराम ने अयोध्या छोड़ने का निश्चय कर के महाप्रयाण की मानसिकता बना ली. आयु का प्रभाव शरीर पर पड़ते ही उन्होंने सरयु मैया की गोद में शरण लेकर इस शाश्वत प्रवाह को गौरवान्वित कर दिया.

महाराज कुश ने सभी प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों से वार्तालाप करके श्रीराम की स्मृति में एक भव्य स्मारक/मंदिर बनाने का निर्णय लिया. महाराज कुश की देखरेख में कसौटी के 84 खम्बों पर भव्य श्रीराम मंदिर निर्मित हो गया. चैत्र शुक्ल नवमी पर मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई. इस मंदिर में कसौटी के जिन 84 खम्भों को लगाया गया था, इनकी चर्चा आज तक किसी न किसी रूप में चल रही है. लोमस रामायण में वर्णित बालकांड के अनुसार यह खम्भे श्रीराम के पूर्वज महाराजा अनरण्यक के आदेश पर विश्व प्रसिद्ध शिल्पी विश्वकर्मा के द्वारा गढ़े गए थे.

सूर्यवंश के पूर्व पुरुष महाराजा इक्ष्वाकु के समय से ही भारत पर राक्षसों के आक्रमण होने प्रारम्भ हो गए. यह आक्रमण लंका की ओर से समुद्री मार्ग से होते थे जो पीढ़ी दर पीढ़ी होते रहे. लंका के प्रत्येक राजा को रावण की उपाधि दी जाती थी. अतः इक्ष्वाकु वंश की 64 पीढ़ियों ने लंका के लगभग इतने ही रावणों से अयोध्या की रक्षा की थी. इसी इक्ष्वाकु वंश के एक राजा अनरण्यक को उस समय के लंकाधिपति रावण ने परास्त कर दिया. राक्षसी सेना ने अयोध्या में लूटपाट की. सोने, हीरे जवाहरात के ढेरों के ढेर लंका पहुंचा दिये गए. महाराज अनरण्यक के राजदरबार में लगे कसौटी के खम्भों को भी तत्कालीन रावण अपने साथ ले गया. इस युद्ध में महाराज अनरण्यक अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए. उस समय का रावण जीता, परन्तु अयोध्या पर वह अधिकार नहीं कर सका.

सूर्यवंशी प्रतापी सम्राट अनरण्यक की मृत्यु के समाचार से समस्त भारतवासी शोक में डूब गए. यह आघात पूरे राष्ट्र पर था. कसौटी के खम्भों का लंका में चले जाना देश का घोर अपमान था. इस राष्ट्रीय अपमान को अयोध्यावासी कभी नहीं भूले. इस दाग को वह मिटाना चाहते थे. अयोध्या के सूर्यवंशी राजाओं की प्रत्येक पीढ़ी ने यह प्रतिज्ञा दोहराई ‘हम इस अपमान का बदला लेंगे’. इन खम्भों को वापस भारत में लाना एक महान राष्ट्रीय कार्य था. इस कार्य को सम्पन्न किया था धनुर्धारी श्रीराम ने.

रावण वध के पश्चात श्रीराम ने महाबलि हनुमान से वार्तालाप करते हुए कहा था कि सीता को वापस ले लिया गया है. अयोध्या पर अनेक आक्रमण करने वाली रावण परम्परा को समाप्त किया जा चुका है. परन्तु सूर्यवंशी सम्राट अनरण्यक (श्रीराम के पूर्वज) का जो अपमान हुआ है, उसको कैसे धोया जाए ? तब ‘विद्यावान गुणी अति चातुर’ वीर हनुमान ने श्रीराम को इस अपमान का परिमार्जन करने का मार्ग सुझाया था. पवन सुत हनुमान ने कसौटी के खम्भों को वापस भारत में लाकर राष्ट्र के सम्मान पर लगी चोट मिटानी चाहिए, ऐसा सुझाव दिया. इसी सुझाव को शिरोधार्य करते हुए धर्नुधारी श्रीराम भारत के गौरवशाली अतीत की इन समृतियों को वापस अयोध्या लाए थे.

महाराज कुश ने जब अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के मंदिर का प्रस्तावित नक्शा सबके सामने रखा तो सभी ने एक स्वर में कहा कि श्रीराम का मंदिर सम्पूर्ण राष्ट्र के गौरव का प्रतीक होगा. भारत ने संसार में राक्षसी वृति को समाप्त करने हेतु लंका के साथ सैकड़ों वर्षों तक जब युद्ध लड़ा तो उसकी विजय का श्रेय श्रीराम को जाता है. श्रीराम का मंदिर किसी एक वंश, जाति, पंथ और विचारधारा का न होकर सारे राष्ट्र की विजय का प्रतीक होगा. इस मंदिर में इन्हीं कसौटी के खम्भों को स्तम्भों के रूप में जढ़ना चाहिए जिन्हें श्रीराम लंका से वापस लाए थे. राम मंदिर के आधार के यह खम्भे राष्ट्र मंदिर के आधार स्तम्भ होंगे.

इस प्रकार राम मंदिर के निर्माण को राष्ट्रीय कार्य घोषित करके महाराज कुश ने कसौटी के इन 84 खम्भों के ऊपर एक भव्य राममंदिर का निर्माण करवा दिया. यह कार्य चैत्र शुक्ल नवमी के शुभावसर पर सम्पन्न हुआ. कुश के द्वारा रामनवमी राष्ट्रीय पर्व घोषित कर दी गई. अतः यह मंदिर, राम और राष्ट्र परस्पर पर्याय बन गए. आज इसी स्थान पर भव्य मंदिर का पुर्ननिर्माण करने के लिए हिन्दू समाज आंदोलित है.

लेखक – नरेंद्र सहगल