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स्वामी स्वरूपानन्द जी का कांग्रेसी स्वरूप

द्वारकापीठ के शंकराचार्य श्रद्धेय स्वामी स्वरूपानन्द जी सरस्वती ने अपने कुछ संतों की एक परमधर्म संसद में घोषणा कर दी है कि वे 21 फरवरी को अयोध्या में जाकर 04 ईंटों की पूजा करके श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण प्रारम्भ कर देंगे. स्वामी जी का यह ऐलान जहां एक ओर हिन्दू समाज की मंदिर निर्माण के प्रति जिज्ञासा को दर्शाता है, वहीं यह गत 490 वर्षों से मंदिर के पुर्ननिर्माण के लिए संघर्षरत हिन्दू समाज में फूट डालने का घृणित प्रयास भी नजर आता है.

सर्वविदित है कि आदरणीय स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज प्रारम्भ से ही कांग्रेस के प्रबल समर्थक और संघ परिवार के विरोधी रहे हैं. पूजा पाठ एवं आध्यात्मिक प्रवचनों के अलावा स्वामी जी की प्रत्येक गतिविधि तथा क्रियाकलाप सदैव संघ, विश्व हिन्दू परिषद तथा भाजपा के विरोध और कांग्रेस के पक्ष में रही है. आज उस इतिहास में जाने की आवश्यकता नहीं है. आज तो श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण का विषय समस्त भारतीयों विशेषतया करोड़ों हिन्दुओं के मन मस्तिष्क पर छाया हुआ है. इसलिए कोई भी ऐसा कदम उठाने से पहले परहेज करना चाहिए, जिससे यह संकेत जाए कि श्रीराम मंदिर के विषय पर संत महात्मा भी बंटे हुए हैं.

अपने द्वारा बुलाई गई परमधर्म संसद में स्वामी स्वरूपानन्द जी का सारा ध्यान संघ, भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा सरकार की निन्दा करने पर ही केन्द्रित रहा. इस धर्म संसद के मंच पर आसीन प्रायः सभी संतों ने यहां तक कह दिया कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज के एकमात्र नेता स्वामी स्वरूपानन्द जी ही हैं. संघ तथा विश्व हिन्दू परिषद ने तो हमारे ‘अयोध्या आंदोलन’ पर कब्जा कर लिया है. जबकि सारा संसार जानता है कि विश्व हिन्दू परिषद गत् तीन दशकों से देश के अग्रणी साधू संतों के मार्गदर्शन में राम जन्मभूमि न्यास के माध्यम से राम जन्मभूमि मंदिर के लिए अयोध्या आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है.

स्वर्गीय अशोक सिंघल जैसे हिन्दू नेताओं सहित करोड़ों रामभक्तों ने इस गैर राजनीतिक आंदोलन को निरंतरता प्रदान की है. इस सारे संघर्ष के समय स्वामी स्वरूपानन्द जी एवं उनके चंद साथियों ने संघ परिवार को गालियां देने के सिवा कुछ नहीं किया. जिस कांग्रेस का स्वामी जी समर्थन करते चले आ रहे हैं, उसी ने इस देश पर छह दशकों तक राज किया है. तब स्वामी जी ने मंदिर निर्माण के लिए अपना अभियान क्यों नहीं छेड़ा? वास्तव में कांग्रेस ने तो अपने मुस्लिम वोट बैंक को बचाने के लिए अयोध्या आंदोलन का सदैव विरोध ही किया है. कांग्रेस ने तो सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर श्रीराम के अस्तित्व को ही नकार दिया था तथा श्रीराम सेतु को तोड़ने के लिए तैयारियां भी शुरु कर दीं थीं. आज भी मंदिर निर्माण में कांग्रेस के ही वकील बाधाएं खड़ी कर रहे हैं.

स्वामी स्वरूपानन्द जी जरा बताएंगे कि अयोध्या में मुलायम सिंह की गोलियों से शहीद हुए कारसेवकों में आपके शिष्य कितने थे? 06 दिसम्बर 1992 को कारसेवकों ने जिस शौर्य का परिचय दिया था, उसमें आपके मठ का कितना योगदान था? हिन्दू समाज द्वारा गत तीन-चार दशकों में मंदिर निर्माण के लिए आयोजित की गई हजारों विशाल धर्म सभाओं, प्रचंड प्रदर्शनों, असंख्य यात्राओं, आसेतु हिमाचल किए गए शिला पूजन के कार्यक्रमों, मंदिर को तोड़कर बनाए गए बाबरी ढांचे के तथ्यपरक ऐतिहासिक प्रमाणों को जुटाने में आपका कितना परिश्रम लगा?

उपरोक्त सारे आंदोलन का सफलतापूर्वक संचालन करते हुए भी कभी श्रेय नहीं लिया. सारा आंदोलन संतों/महात्माओं एवं हिन्दू समाज के अग्रणी नेताओं के नाम से तथा उनके मार्गदर्शन में ही किया गया. इसके विपरीत द्वारकापीठ के शंकराचार्य ने तो स्वयं ही अपने मंचों से कई बार अपने को हिन्दुओं का एकमात्र नेता घोषित किया है. हाल ही में हुई तथाकथित परमधर्म संसद में भी यही नजारा देखने को मिला है.

सच्चाई तो यह है कि मंदिर निर्माण का चिरप्रतीक्षित समय निकट आ गया है. मोदी सरकार बहुत ही सोच समझकर संविधान और न्यायालय का सम्मान करते हुए यथा सम्भव और यथा उचित कदम उठा रही है. गैर विवादित भूमि को इसके मालिकों को वापस करने की अनुमति के लिए कोर्ट में अर्जी देकर मोदी सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. इससे मंदिर निर्माण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाएगी.

स्वभाविक है कि इसका श्रेय संघ, विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा सरकार को जाएगा. लगता है कि इसी से दुःखी हुए आदरणीय स्वामी स्वरूपानन्द जी ने आनन फानन में 21 फरवरी को मंदिर निर्माण की तिथि घोषित कर दी है. जबकि सब जानते हैं कि इस तरह से भव्य मंदिर का निर्माण नहीं हो सकता. मंदिर निर्माण के लिए एक विस्तृत योजना यथा इंजीनियर, पत्थरों की गढ़ाई, नक्शा तथा इसी प्रकार की पूरी तैयारी अयोध्या में अनेक वर्षों से चल रही है. इस तैयारी से स्वामी स्वरूपानन्द जी का कोई लेना देना नहीं है. जाहिर है कि यह कदम भाजपा को नुकसान पहुंचाने तथा कांग्रेस के पक्ष में वातावरण तैयार करने के राजनीतिक उद्देश्य से उठाया जा रहा है. इतना ही नहीं स्वामी जी महाराज आत्म प्रशंसा तथा विश्व हिन्दू परिषद के परिश्रमपूर्वक प्रयासों से हो रही विशाल धर्म सभा को बदनाम करने के एवज से झूठ का सहारा भी ले रहे हैं. अयोध्या आंदोलन के वास्तविक तथ्यों को तोड़-मोड़ कर प्रस्तुत कर रहे हैं.

जरा कल्पना कीजिए कि यदि आज भी बाबरी ढांचा अपने स्थान पर ही विराजमान होता तो स्वामी जी शिलान्यास करने कहां जाते? रामजन्मभूमि पर कारसेवकों द्वारा स्थापित अस्थाई मंदिर में विराजमान रामलला की पूजा कैसे सम्भव हो रही है? जब तक बाबरी ढांचा था, तब तक स्वामी स्वरूपानन्द जी ने मौन क्यों साध रखा था? ठोस तथ्य यह भी है कि कारसेवकों के द्वारा किए गए शौर्य के परिणामस्वरूप मिले मंदिर के अनेक प्रमाण सामने न आते तो शायद बाद में न राडार तरंगों की कार्यवाही होती और न ही बाबरी ढांचे के नीचे दबे मंदिर के खण्डहर सामने आते. इन्हीं के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना निर्णय दिया था.

आज समस्त हिन्दू समाज कारसेवकों द्वारा बनाए गए टीन, तिरपाल और साधारण ईंटों के मंदिर को भव्य स्वरूप देने के लिए उत्सुक और तैयार है. स्वामी स्वरूपानन्द जी से हमारा निवेदन है कि वे अपने पद की गरिमा और अपने तपस्वी जीवन को ध्यान में रखते हुए मंदिर निर्माण के लिए हो रहे प्रयासों को अपना आर्शीवाद दें और हिन्दू समाज एवं संतों में फूट डालने के कांग्रेसी षड्यंत्र को विफल कर दें.

यह समय हिन्दू समाज की एकता दर्शाने का है न कि मंदिर विरोधियों को शक्ति प्रदान करने का. अच्छा तो यही होगा कि स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज स्वयं आगे आकर दोनों धर्म संसदों में समन्वय स्थापित करने का प्रयास करें. उनके ऐसा करने से हिन्दू समाज को बल मिलेगा और उनका भी यश बढ़ेगा.

वे अपनी जिद और अपने अहंकार पर अड़े रहे तो सिवाय बदनामी के कुछ प्राप्त नहीं होगा. रही मंदिर निर्माण की तो वह तो अब बनकर ही रहेगा, दुनिया की कोई ताकत उसे रोक नहीं सकती.

नरेंद्र सहगल