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आजाद हिन्द फौज की स्थापना

सामान्य धारणा यह है कि आजाद हिन्द फौज और आजाद हिन्द सरकार की स्थापना नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जापान में की थी; पर इससे पहले प्रथम विश्व युद्ध के बाद अफगानिस्तान में महान क्रान्तिकारी राजा महेन्द्र प्रताप ने आजाद हिन्द सरकार और फौज बनायी थी। इसमें 6,000 सैनिक थे।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इटली में क्रान्तिकारी सरदार अजीत सिंह ने ‘आजाद हिन्द लश्कर’ बनाई तथा ‘आजाद हिन्द रेडियो’ का संचालन किया। जापान में रासबिहारी बोस ने भी आजाद हिन्द फौज बनाकर उसका जनरल कैप्टेन मोहन सिंह को बनाया। भारत को अंग्रेजों के चंगुल से सैन्य बल द्वारा मुक्त कराना ही इस फौज का उद्देश्य था।

नेताजी सुभाषचन्द्र बोस 5 दिसम्बर, 1940 को जेल से मुक्त हो गये; पर उन्हें कोलकाता में अपने घर पर ही नजरबन्द कर दिया गया। 18 जनवरी, 1941 को नेताजी गायब होकर काबुल होते हुए जर्मनी जा पहुँचे और हिटलर से भेंट की। वहीं सरदार अजीत सिंह ने उन्हें आजाद हिन्द लश्कर के बारे में बताकर इसे और व्यापक रूप देने को कहा। जर्मनी में बन्दी ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों से सुभाष बाबू ने भेंट की। जब उनके सामने ऐसी सेना की बात रखी गयी, तो उन सबने इस योजना का स्वागत किया।

जापान में रासबिहारी बसु द्वारा निर्मित ‘इण्डिया इण्डिपेण्डेस लीग’ (आजाद हिन्द संघ) का जून 1942 में एक सम्मेलन हुआ, जिसमें अनेक देशों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। इसके बाद रासबिहारी बसु ने जापान शासन की सहमति से नेताजी को आमन्त्रित किया। मई 1943 में जापान आकर नेताजी ने प्रधानमन्त्री जनरल तोजो से भेंट कर अंग्रेजों से युद्ध की अपनी योजना पर चर्चा की। 16 जून को जापानी संसद में नेताजी को सम्मानित किया गया।

नेताजी 4 जुलाई, 1943 को आजाद हिन्द फौज के प्रधान सेनापति बने। जापान में कैद ब्रिटिश सेना के 32,000भारतीय तथा 50,000 अन्य सैनिक भी इस फौज में सम्मिलित हो गये। इस सेना की कई टुकड़ियाँ गठित की गयीं। वायुसेना, तोपखाना, अभियन्ता, सिग्नल, चिकित्सा दल के साथ गान्धी ब्रिगेड, नेहरू ब्रिगेड, आजाद ब्रिगेड तथा रानी झाँसी ब्रिगेड बनायी गयी। इसका गुप्तचर विभाग और अपना रेडियो स्टेशन भी था।

9 जुलाई को नेताजी ने एक समारोह में 60,000 लोगों को सम्बोधित करते हुए कहा, “यह सेना न केवल भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करेगी, अपितु स्वतन्त्र भारत की सेना का भी निर्माण करेगी। हमारी विजय तब पूर्ण होगी, जब हम ब्रिटिश साम्राज्य को दिल्ली के लाल किले में दफना देंगे। आज से हमारा परस्पर अभिवादन ‘जय हिन्द’ और हमारा नारा ‘दिल्ली चलो’ होगा।”

नेताजी ने 4 जुलाई, 1943 को ही ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा’ का उद्घोष किया। कैप्टेन शाहनवाज के नेतृत्व में आजाद हिन्द फौज ने रंगून से दिल्ली प्रस्थान किया और अनेक महत्वपूर्ण स्थानों पर विजय पाई; पर अमरीका द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर परमाणु बम डालने से युद्ध का पासा पलट गया और जापान को आत्मसमर्पण करना पड़ा।

भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास में आजाद हिन्द फौज का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। यद्यपि नेहरू जी के सुभाषचन्द्र बोस से गहरे मतभेद थे। इसलिए आजाद भारत में नेताजी, आजाद हिन्द फौज और उसके सैनिकों को समुचित सम्मान नहीं मिला। यहाँ तक कि नेताजी का देहान्त किन परिस्थितियों में हुआ, इस रहस्य से आज तक पर्दा उठने नहीं दिया गया।