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प्रदेश सरकार द्वारा स्व. माणिकचन्द्र वाजपेई राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार बंद किया जाना, समूचे पत्रकार जगत का अपमान !

देश के ख्यातिनाम पत्रकार और पत्रकारिता की दुनिया के संत स्व. माणिकचंद जी वाजपेई “मामा जी” के नाम पर दिया जाने वाला राष्ट्रीय सम्मान कमलनाथ सरकार ने बंद कर दिया है | कितने आश्चर्य की बात है कि एक ओर तो कमलनाथ जी ने स्व. अटल बिहारी वाजपेई जी की स्मृति में सुशासन सप्ताह मनाने का नाटक किया और दूसरी ओर अटल जी के ही चचेरे भाई स्व. माणिकचन्द्र जी वाजपेई के प्रति ऐसा असम्मान व्यक्त किया | यह बेहद पीड़ादायक और असहनीय है | पत्रकारिता के क्षेत्र में भी राजनैतिक पूर्वाग्रह का यह प्रदर्शन समूचे पत्रकार जगत का अपमान है |
समाज और देश को अपना सब कुछ मानकर जीवन जीने वाले मामाजी जी जिस राह पर चले वह प्रत्येक भारतवासी के लिए अनुपम उदाहरण है। वस्तुतः मामाजी का जीवन समाज के हर उस बिन्दु को छूता हुआ नजर आता है, जहां समाज अपने सांस्कृतिक गौरव की अनुभूति करता है।
उनके भीतर का लेखक समाज की समस्याओं और राष्ट्रनिष्ठ संगठनों के प्रति आघातों से आहत हुआ था। इसी मनोभाव में उन्होंने ग्रंथ लेखन भी किया। उनकी लिखीं तीन पुस्तकें वस्तुत: संदर्भ ग्रंथ बन गई हैं। महात्मा गांधी की हत्या के बाद 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगा था। उसी पर आधारित मामा जी की पुस्तक का नाम है- प्रथम अग्निपरीक्षा। फिर आपातकाल के दौरान संघ के स्वयंसेवकों के संघर्ष को उन्होंने अपनी पुस्तक-आपातकाल संघर्ष गाथा-में संजोया था। 1947 के बाद से विभिन्न कालखण्डों में संघ स्वयंसेवकों के संघर्षों और बलिदानों के जीवंत वर्णन से सजी उनकी तीसरी पुस्तक का शीर्षक है- ज्योति जला निज प्राण की।
7 अक्टूबर, 1919 को आगरा के निकट बटेश्वर गांव में जन्मे श्री माणिकचंद वाजपेयी व श्री अटल बिहारी वाजपेयी बाल सखा भी रहे और एक-दूसरे के संघर्षमय जीवन के साक्षी भी। इंदौर में मामाजी के अमृत महोत्सव में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जिन शब्दों में माणिकचंद जी का अभिनंन्दन किया, उसे जानकर शायद कमलनाथ जी को भी अपने कृत्य पर शर्मिंदगी महसूस होगी |
अटल जी ने कहा था –
मामा जी का अभिनदंन करके ऐसा लग रहा है जैसे हम अपना ही अभिनंदन कर रहे हैं। श्री वाजपेयी ने कहा कि छोटे से गांव बटेश्वर में जन्म लेने वाला वह बालक मनई आज जगत मामा कैसे हो गया, उसकी कथा मर्मस्पर्शी है। इसमें संघर्ष है, राष्ट्रप्रेम है, समाजसेवा का भाव और लोकसंग्रह की कुशलता भी है। मामा जी का जीवन खुला काव्य है जो त्याग, तपस्या व साधना से भरा है। श्री वाजपेयी ने आगे कहा कि उन्होंने अपने को समष्टि के साथ जोड़ा, व्यष्टि की चिंता छोड़ दी। देखने में साधारण हैं पर व्यक्तित्व असाधारण। मामा जी ने अपने आचरण से दिखाया है कि विचाराधारा से जुड़ा समाचार पत्र सही मार्गदर्शन भी कर सकता है और स्तर भी बनाए रख सकता है। मामाजी को काम की धुन सवार है। वे कष्ट की चिंता किए बिना निरन्तर लिखते रहे हैं। वास्तव में मामाजी का जीवन राष्ट्रवादी ध्येय के प्रति समर्पित था।
भारत में कहा जाता है कि संसार में व्यक्ति भले ही न रहता हो, लेकिन उसके कर्म उसे हमेशा जिन्दा रखते हैं। जो व्यक्ति उच्च आयामों के साथ जीवन का संचालन करता है, और जो केवल दूसरों की चिन्ता करते हुए उसका निर्वहन करता हो, ऐसे जीवन समाज के लिए प्रेरणा तो देते ही हैं, साथ ही समाज के लिए वंदनीय बन जाते हैं। मामाजी का ध्येयमयी जीवन हम सबके लिए एक ऐसा पाथेय है जो जीवन को अनंत ऊंचाइयों की ओर ले जाने में समर्थ है।
इतना ही नहीं तो उस कार्यक्रम के दौरान अटलजी ने माणिकचंद वाजपेयी के पैर भी छुए थे। कमलनाथ जी से एक छोटा सा सवाल – अटल जी का सम्मान लेकिन जिनका स्वयं अटल जी सम्मान करते थे, उनके नाम से भी वितृष्णा क्यों ?
इसके पीछे मुख्यमंत्री कमलनाथ जी के मन में शायद मामाजी की आपातकाल के दौरान की भूमिका मुख्य कारण है | क्योंकि वे स्वयं आपातकाल की विभीषिका देश पर लादने वालों में से एक थे |
स्मरणीय है कि स्व. मामाजी का सारा जीवन राष्ट्रीय विचार के लिए समर्पित रहा | 1966 में विजयादशमी के दिन स्वदेश (इंदौर) समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ और मामा जी संपादक के नाते उससे जुड़े। उसके पश्चात 1971 में ग्वालियर स्वदेश और स्वदेश के अन्य संस्करणों में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। आपातकाल में उन्हें जेल भेज दिया गया, लेकिन निरंकुश सत्ता उनकी लेखनी पर प्रतिबंध न लगा सकी। वे इंदौर जेल में 19 माह रहे और इस बीच जेल की कोठरी से ही संपादकीय लेख लिखकर भेजते रहे, जिन्हें पढ़कर लोकतंत्र के शत्रुओं की कुर्सी हिलने लगती थी।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि शिवराज सरकार द्वारा पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा शुरू किये गए पत्रकार सम्मान पुरस्कार बंद नहीं किये थे, बल्कि मामाजी कि नाम से नवीन पुरस्कार प्रारम्भ किया गया था | राज्य शासन द्वारा वर्ष 2015 और 2016 के लिए दिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय और मुंबई के रमेश पतंगे को माणिकचंद्र वाजपेयी राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार प्रदान किया था । जबकि दिल्ली के अश्वनी कुमार और नलिनी सिंह को गणेश शंकर विद्यार्थी राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान, भोपाल के अभिलाष खांडेकर और केरल के पी नारायण को विद्यानिवास मिश्र राष्ट्रीय पत्रकारिता सम्मान दिया गया था ।
इसी प्रकार शरद जोशी (भोपाल) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान ओपी श्रीवास्तव और अनिल दुबे को, राहुल बारपुते (इंदौर) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान जयप्रकाश तापड़िया और रमण रावल को, रतनलाल जोशी (ग्वालियर) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान राजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव और गणेश सांवला, दतिया को, जीवनलाल वर्मा विद्रोही (जबलपुर) आंचलिक पत्रकारिता पुरस्कार चैतन्य भट्ट और योगेश कुमार सोनी को, कन्हैयालाल वैद्य (उज्जैन) पत्रकारिता सम्मान डॉ घनश्याम बटवाल और संदीप कुलश्रेष्ठ को, मास्टर बल्देव प्रसाद (सागर) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान रमेश राजपूत और शैलेन्द्र ठाकुर को और बनारसी दास चतुर्वेदी (रीवा) आंचलिक पत्रकारिता सम्मान गया प्रसाद श्रीवास एवं संजय कुमार पयासी को दिया गया था | महेन्द्र चौधरी राज्य-स्तरीय फोटो पत्रकारिता सम्मान संजीव गुप्ता और महेश झा को प्राप्त हुआ था ।
राज्य स्तरीय पत्रकारिता सम्मान से सत्यनारायण श्रीवास्तव, अरुण पटेल और गणेश साकल्ले को तथा राष्ट्रीय चैनलों के मध्य प्रदेश में कार्यरत पत्रकार श्रेणी में मनोज शर्मा को सम्मानित किया था। राज्य-स्तरीय चैनलों के पत्रकारों को पत्रकारिता सम्मान राकेश अग्निहोत्री और अजय त्रिपाठी को दिया गया था। वरिष्ठ पत्रकारों की जूरी द्वारा ही इन पत्रकारों का चयन विभिन्न सम्मान के लिए किया गया था ।
वर्तमान सरकार का व्यवहार देखकर तो यही कहा जा सकता है कि सरकार की यह ओछी और पूर्वाग्रहित सोच है | कांग्रेस सरकार ने यह साबित कर दिया है कि वह पत्रकारिता में भी राजनीति को समाहित कर रही है, जिसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता |