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स्वतंत्रता वीर सावरकर ज़ी…

क्रान्ति वीर सावरकर राष्ट्र का नाम हिन्दुस्थान रखे जाने के आग्रही थे। हिन्दुस्थान कहकर हम गैर-हिन्दुओं को कोई नीचा नही दिखाना चाहते, वे कहते हैं कि “आयावर्त, भारत भूमि और ऐसे ही नाम हमारी मातृभूमि के प्राचीन नाम हैं। मुसलमान केवल हिन्दुस्थान में ही नहीं रहते चीन में करोड़ों मुस्लिम हैं।
यूनान, फिलिस्तीन, हंगरी और पोलैण्ड में भी लाखों मुसलमान निवास करते हैं, लेकिन वहाँ देश के नाम नहीं बदले गये।” सभी रंगों, दृष्टियों, अनुभवों, प्रतीतियों, विचार सारणियों को एक, एकात्म करना हिन्दू राष्ट्र की प्रकृति है। इसीलिये महात्मा गाँधी, वीर सावरकर, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, वल्लभभाई पटेल, और डॉ. हेडगेवार सरीखे महापुरूष भिन्न-भिन्न रंग रूप, दृष्टि विचार के मानने वाले होने के बावजूद, वे पूज्य हैं,
 
आदरणीय हैं। क्योंकि वे हमारे संरक्षक और हम उनके अनुयायी हैं। हिन्दू और हिन्दुत्व वादी होने के कारण ही वीर सावरकर ने असीमित सजायें भुगतीं। मुस्लिम वोटों की चाहत रखने वाले, कांग्रेसी, कम्युनिष्टों ने अपने लोभ की पूर्ति हेतु ही उन्हें निशाने पर लिया, उनके निधन 26 फरवरी 1966 के बाद से अब तक उन्हें ‘आग्रही-हिन्दू होने के सजा मिल रही है।
इस बात पर लोगों का कम ध्यान जाता है कि वे आजादी के लिये संघर्ष करने वाले ऐसे योद्धा थे, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने ‘दो-दो आजीवन कारावास की सजायें सुनाई थी। अण्डमान की छोटी सी कोठरी में उन्हें रखा गया था, जहाँ उन्हें अमानवीय यातनायें दी गयी थी। आजादी मिलने के बाद भी सत्ताधारी कांग्रेस उन्हें अपने निशाने पर लेती रही हैं।
वे महात्मा गांधी की कांग्रेस द्वारा स्वीकार किये गये भारत विभाजन के घोर विरोधी थे। गांधी जी कहा करते थे कि विभाजन, देश का बंटवारा उनकी लाश पर होगा। पर वही महात्मा गांधी भारत विभाजन के समर्थक बने। अ.भा. कांग्रेस कमेटी ने देश तिभाजन का समर्थन किया। सो देश बंटा कांग्रेस के पास महान भारत का स्वप्न नहीं था।
इसीलिये तो बाद में “इन्दिरा इज इंडिया’ तक कहाग या कांग्रेस नेसावरकर का चित्र लगाने जैसे कार्यक्रय का भी बहिष्कार किया था। जीवनलाल वर्मा ‘विद्रोही की एक कविता की प्रभात पंक्तियाँ’ हैं  ‘काग भुशुण्ड गरूड़ से बोले, आओ कुछ हो जाये चोंचे। चलो किसी मंदिर के अंदर, प्रतिमा का सिन्दूर खरोंचे। क्रान्तिवीर सावरकर का प्रसंग हो,

इंदिरा गांधी ने दिया था वीर सावरकर को ये बड़ा सम्मान, गाय को लेकर थी ये राय?

शिवाजी महाराज या महाराणा प्रताप का साहसिक प्रयास प्रख्यात महापुरूषों को लेकर सिन्दूर खरोंचने का आशय मात्र इतना है कि जो महिमा मंडित हैं अपने स्वयं के महान कृत्यों के कारण, उनकी महिमा को नष्ट करने के दुष्प्रयास किया जाना। वर्तमान समय में सिन्दूर खरोंचने की प्रक्रिया बेशर्मी के साथ जारी है। जबकि आज सिन्दूर लगाने की आवश्यकता है।
महापुरूषों का काम तो जनता के बारे में सोचना है, व उनके लिये ठोस काम करना जरूरी समझना है। सुभाष बाबू को ही लें क्या-क्या नहीं कहा गया उनके बारे में? उन्हें हिटलर, मुसोलिनी और तोजा से जोड़ा गया, व्यक्तिगत आक्षेप लगाये गये? अम्बेडर को अंग्रेज समर्थक, मुस्लिम विद्वेषी आदि-आदि। उनके आचरण और व्यक्तिगत चरित्र पर भी लांछन् लगाने की कुचेष्टायें की गयीं।
सैकड़ों भारत माता के सपूतों, बलिदानियों का सम्मान या उनके नाम का स्मरण वैसा नहीं किया गया, जैसा एक कृतज्ञ राष्ट्र में होना चाहिये। स्वाधीनता संग्राम के सभी सेनानी हमारी श्रद्धा के पात्र होना ही चाहिये सावरकर अखण्ड भारत के सबसे शक्तिशाली प्रवक्ता थे। सावरकर ने मुसलमानों का नहीं मुस्लिम लीग द्वारा डले क मे ल किये जाने- का विरोध किया था।
यदि वे अंग्रेजों के समर्थक होते तो सुभाषबाबू को आजाद हिन्द फौज बनाने के लिये क्यों प्रेरित करते और हिन्दुओं को ब्रिटिश सेना में घुसकर बगावत के लिए नहीं उकसाते। इस तथ्य की बहुत ही कम लोगों को जानकारी होगी कि सावरकर भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन के प्रारम्भिक प्रेरक थे। उससे भी कम लोगों को यह भी जानकारी नहीं होगी
कि वे अदम्य साहसी भी थे। उन्हें जब बन्दी बनाकर समुद्री जहाज से भारत लाया जा रहा था, तब वे शौचालय की खिड़की तोड़कर अपने ऊपर हो रही लगातार गोली वर्षा की परवाह न करते हुये समुद्र में तैर कर फ्रांस के मार्सेलीज नाम समुद्र तट पर पहुंच गये थे। जब उन्हें फ्रांस से बन्दी बना कर भारत लाय  गया और उन्हें 50 वर्ष का कारावास का कठोर दण्ड दिया गया।
उन्हें ‘खतरनाक व्यक्ति’ घोषित कर अंडमान के सेलुलर बन्दीगृह में धकेल दिया गया। यदि किसी कांग्रेसी ने एक दिन भी सेलुलर जेल में व्यतीत किया होता तो सभी कांग्रेसियों के लिये वह पवित्र स्थल बन गया होता। वीर सावरकर, छत्रपति शिवाजी के पथ पर चलने वाले निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी थे। वे स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करने वाले महान योद्धा महाराणा प्रताप की वीरता और साहस के प्रतीक थे।
उनकी अदम्य इच्छा शक्ति उनका हिमालय जैसा महान संकल्प, अद्वितीय साहस और शूरवीरता की सराहना की जानी चाहिये। अंडमान से मुक्ति मिलने के बाद भी उन्हें उनके निवास स्थान पर नजरबंद रखा गया था। इन्दिरा सरकार ने उन्हें देशभक्त बतलाया था, लेकिन इटली में जन्म लेने वाली सोनिया गांधी ने संसद में सावरकर का तैल चित्र लगाने का विरोध किया था
और उस समय कांग्रेस के एक मंत्री मणिशंकर अय्यर ने तो सेलुलर जेल बन्दीगृह में लगी पट्टिका भी हटवा दी थी। उनकी सारी जायजाद पहले ही ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गयी थी। असंख्य युवकों को सशस्त्र क्रान्ति की प्रेरणा देने वाले तथा घोर अमानवीय यातनायें सहने वाले इस वीर महापुरूष ने कहा था कि ” यह न समझना कि मृत्यु के पश्चात् मेरी आत्मा स्वर्ग में खर्राटे लेती रहेगी।

राष्ट्रभक्ति, राष्ट्र, साहित्य वसमाज सेवा के पर्याय विनायक दामोदर सावरकर - Pravakta.Com | प्रवक्‍ता.कॉम

यदि मेरा मातृभूमि के प्रति प्रेम वास्तविक होगा तो मैं शीघ्र जन्म लूंगा, कर्तव्य मार्ग पर पुनः बढ़ जाऊँगा।’ 25 दिसम्बर 1908 को – इंग्लैण्ड के इंडिया हाउस में गुरू गोविन्दसिंह जी का जन्मदिन मनाया गया था। उसमें उन्होंने एक गीत गया था- सकल जगत मधि छान, अमला प्रिय कर हिन्दुस्थान, तू पुणभूमि तू अमला अभिमान है।” वे उच्च कोटि के विद्वान, कवि एवं राष्ट्रभक्त थे।
युग प्रवर्तक वीर सावरकर सामाजिक समरसता हैं के पक्षधर थे। उनकी दृष्टि युग  द्रष्टा  की थी। वे अभूतपूर्व इतिहास शोधक पुरूष थे। उन्होंने भारतीय, इतिहास के गौरवपूर्ण तथ्यों को सही ढंग से विश्व के समक्ष प्रस्तुत करने का सर्वप्रथम और सफल न प्रयास किया “1857 का स्वातंत्रय समर’ नाम ऐतिहासिक ग्रंथ तो न ‘क्रान्तिकारियों की गीता’ के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा वे सिक्खों का स्फूर्तिदायक इतिहास, भारतीय इतिहास के छ: स्वर्णिम पृष्ठ आदि महान शोध ग्रंथ हिन्दू समाज की अमूल्य धरोहर है।

वरिष्ट लेखक :-डॉ. किशन कछवाहा