डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन – डाॅ. किशन कछवाहा

डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन विश्वविख्यात दर्शन शास्त्री थे। वे देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के लिये भी चुने गये थे। उन्होंने अपनी विलक्षण योग्यता से इस सर्वोच्च पद की गरिमा को कई गुना बढ़ाया। उनका देश-विदेश में बड़ा सम्मान था। उन्हें व्याख्यान मालाओं में अपने विचार व्यक्त करने विदेशों में आमंत्रित किया जाता था।
भारतीय दर्शन में उनके विचार गम्भीरता से सुने और सराहे जाते रहे हैं। उनका जन्म 5 सितम्बर 1888 को मद्रास के पास सर्वपल्ली गाँव में हुआ था। इस गाँव में जन्म लेने के कारण उनके नाम के साथ ‘‘सर्वपल्ली’ शब्द भी जुड़ गया। उन्होंने बी.ए., एम.ए.’ की शिक्षा के लिए छात्रों को पढ़ाया भी। वे नाम मात्र का शुल्क लेते थे जिससे सिर्फ उनकी पढ़ाई-लिखाई का खर्च निकल सके।
उन्होंने एम.ए. (दर्शन शास्त्र) का अध्ययन करते समय ही वेदान्त दर्शन पर एक शोध ग्रंथ लिखा। मात्र 20 वर्ष की आयु में वे मद्रास प्रेसीडेन्सी काॅलेज में सहायक प्राध्यापक पद पर नियुक्त हो गये। ‘‘द हिन्दू व्यू ऑप लाईफ’’ नामक पुस्तक ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का व्यक्ति बना दिया। उन्हें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में आमंत्रित किया गया। वहाँ अपनी भारतीय वेशभूषा धोती, अचकन और पगड़ी आदि पहने पहुंचे और वहाँ उन्होंने अनेक व्याख्यान-मालाओं में भारतीय दर्शन पर व्याख्यान देने का अवसर मिला। वे सशक्त प्रस्तुतियाँ थी। उनकी वहाँ भारी सराहना हुयी।
सन् 1918 तक इंग्लैण्ड और अमेरिका के विश्वविद्यालयों में उच्च पदों पर रहे। फिर लगभग 22 वर्ष आँध्र विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। सन् 1949 से 1952 तक वे रूस में भारत के राजदूत रहे। वहाँ उनकी बिदाई के समय अत्यन्त कठोर हृदय माना जाने वाला स्टालिन भी अपने आँखों से बहते आँसुओं को रोक नहीं सका। इसके बाद वे दस वर्षों तक भारत के उपराष्ट्रपति पद पर एवं 1962 से 1967 तक भारत के सर्वोच्च राष्ट्रपद पर अधिष्ठित रहे।
17 अप्रैल 1975 को उन्होंने अपनी इस मानव काया का परित्याग कर दिया। आज उनकी स्मृति में उनके जन्म दिवस को ‘‘शिक्षक दिवस’’ के रूप में बड़े सम्मान के साथ आयोजित किया जाता है। वे हमें शिक्षक राष्ट्रपति के रूप में सदा स्मरण में आते रहेंगे।