“भाई दूज (यम द्वितीया) का माहात्म्य और भगवान् चित्रगुप्त का अवतरण”

भगवान श्रीराम ने दशहरा में रावण और भगवान श्रीकृष्ण ने दीपावली के दूसरे दिन इंद्र का अंत किया। दीपावली के तीसरे दिन भाई दूज (यम द्वितीया) और भगवान चित्रगुप्त का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। यमराज ने अपनी बहन यमराज से अपनी रक्षा के लिए आशीर्वाद के साथ यह भी मांगा कि “आज के दिन” जो भी हो’ ‘ भाई अपनी बहनों के यहां यात्रा कर भोजन प्रसाद ग्रहण राजा और रक्षा का वचन देंगे, यमराज हमेशा उन भाई बहनों की रक्षा करेंगे और उनके घर नर्क नहीं लेंगे। बनी तो स्वर्ग प्राप्त होगी। यमराज ने स्वीकार और वचन दिया। भाई-बहन के अमर प्रेम की यह महान तिथि ही यम द्वितीया (भाई दूज) के नाम से जानी जाती है। तब से ये प्राथमिक अमर हो गया।
द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने हेलासुर के वध के बाद यमराज को उसी परंपरा का पालन करते हुए अपनी हुई बहिन सुभद्रा के बुलावे के साथ आज भाई दूज के दिन अनुष्ठान किया।
वहीं यम द्वितीया तिथि में भगवान चित्रगुप्त का अवतरण हुआ था। धर्मराज ने ब्रम्हा जी से योग्य व्यक्ति की मांग के लिए सभी कर्मों का लेखा-जोखा निकाला, तब ब्रम्हा ने अपनी काया के स्वरूप के प्रतिफल में कायस्थ चित्रगुप्त को अवतरित किया। भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए हैं और यमराज के सहयोगी हैं। ब्रह्मा की उत्पत्ति ब्रह्माण्ड की रचना एवं सृष्टि के निर्माण का उद्देश्य हुआ। सृष्टि की रचना के क्रम में देव-असुर, गंधर्व-अप्सरा, स्त्री-पुरुष पशु-पक्षी और वृक्ष-शास्त्र का जन्म हुआ। इसी क्रम में भगवान यमराज का भी प्राकट्य हुआ। जिसमें धर्मराज की डिग्री प्राप्त हुई क्योंकि धर्म प्रचारक के रूप में उनके कार्य को साजा का नोटिस प्राप्त हुआ था। भगवान धर्मराज ने जब एक उपयुक्त सहयोगी की मांग की तो ब्रह्मा जी से एक लंबे समय तक भगवान चित्रगुप्त का अवतरण हुआ। भगवान चित्रगुप्त का प्राकट्य ब्रह्मा जी की काया से हुआ था अत: ये कायस्थ कहलाये।
भगवान चित्रगुप्त जी के हाथों में कर्म की पुस्तक, गायत्री, औषधि और करावल है। ये उत्कृष्ट लेखक और वैज्ञानिक लेखिकाएँ अपने व्यवसाय के अनुसार न्यायशास्त्र को पढ़ती हैं। इसलिए भगवान चित्रगुप्त सनातन धर्म में न्याय ब्रम्ह के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
यम द्वितीया के दिन भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति स्थापित करके या उनके चित्र श्रद्धावंत धारण करके पुष्प, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर के साथ देवता, मिष्ठान और नैवेद्य सहित धार्मिक पूजा करनी चाहिए। इस पुण्य तिथि को यमराज और चित्रगुप्त के सेवक और उनके आशीर्वाद कर्मों के लिए पूर्णिमा से नर्क का फल नहीं मिलता है। यहां उल्लेखनीय है कि यामी का विवाह देवताओं के मूर्तिकार चित्रगुप्त के साथ हुआ था। जिस कारण चित्रगुप्त और यमराज में बहनोई का रिश्ता है।
आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से यह भी प्रमाणित किया गया है कि हमारे मन में जो भी विचार आए हैं वे सभी सर्जनों के रूप में आए हैं। भगवान चित्रगुप्त इन सभी दर्शनों के सिद्धांतों को भगवान चित्रगुप्त जी के रूप में देखते हैं, अंत समय में ये सभी चित्रगुप्त जी को दर्शन के आधार पर रखा जाता है, और दर्शन के आधार पर भगवान चित्रगुप्त जी को स्थापित किया जाता है। विज्ञान ने पुनर्जन्म के रूप में यह स्वीकार किया है कि मृत्यु के बाद भी जीव का मस्तिष्क कुछ समय तक कार्य करता है और इस दौरान जीवन में प्रत्येक घटना के चित्र मस्तिष्क में बने रहते हैं। इस सन्दर्भ में यह भी सत्य है कि मृत्यु के पूर्व में भी भगवान चित्रगुप्त जीवन की दृश्यावली दिखाई जाती है और मृत्यु का संकेत दिया जाता है। यह हजारों वर्ष पूर्व से हमारे शास्त्रों में प्रचलित है। भगवान चित्रगुप्त जी ही सृष्टि के प्रथम न्यायब्रह्म हैं।
लेखक –
डॉ. आनंद सिंह राणा