गत बीस वर्षों में मौसम संबंधी आपदाओं में लगभग 90 प्रतिशत से अधिक समस्यायें बाढ़, तूफान, बढ़ते तापमान से जुड़ी हुयी हैं। गत ग्यारह हजार तीन सौ वर्षां के अध्ययन एवं शोधों के माध्यम से पता चलता है कि उस समय की तुलना में पृथ्वी आज सबसे ज्यादा गर्माहट लिये हुये है।
संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UINS DR) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ‘‘ह्यूमेन कास्ट’’ ऑफ वेदर रिलेटेड डिजास्टर (1995-2015) में ही उल्लेख मिलता है कि पिछले दशक में सिर्फ एशिया में ही 2495 मौसम संबंधी आपदाओं से व्यक्तियों को बेघर वार कर दिया था। वहीं 3,32,000 लोग असमय ही काल के ग्रास बन गये थे। इसमें म्याँमार को तहस-नहस कर देने वाले साईक्लोन के कारण 1,38,000 लोगों की मृत्यु संख्या भी शामिल है।
UINS DR और बैल्जियम के एक सेन्टर फार रिसर्च द्वारा प्रकाशित संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार यह भी संभावना व्यक्त की गयी है कि अगर वातावरण में कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है तो बाँग्लादेश, कोस्टारिका और मारिशस जैसे देशों के लिये खतरा कुछ ज्यादा ही बढ़ सकता है। गत तीस वर्षों के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध -अनुसंधान और घटी घटनाओं के परिपेक्ष्य में लगभग 90 प्रतिशत से अधिक बाढ़, तूफान और चरम पर पहुँचे तापमान द्वारा दी गयी दस्तक को देखा भी जा चुका है।
वैज्ञानिक के प्रयासों शोध-अनुसंधान
गत 12 हजार वर्षों के वैज्ञानिक प्रयासों शोध-अनुसंधान तो यही संकेत देते जा रहे हैं कि पृथ्वी की गरमाहट उस काल की तुलना में कुछ ज्यादा ही बढ़ चुकी है, जो अत्यधिक चिन्ता का विषय है। सन् 1970 के कालखण्ड के बाद अब उत्तरी धु्रव के आर्कटिक सागर में सबसे कम बर्फ जमना, उसी का परिणाम है। उत्तरी दक्षिणी धु्रवों से अधिक बर्फीला क्षेत्र भारतीय सीमा से लगा हुआ तिब्बत है। यहाँ सबसे अधिक बर्फ का भंडार है, लेकिन यहाँ भी आगामी सन् 2050 तक ग्लेशियर नहीं बच पायेंगे-ऐसी आशंकायें मौसम वैज्ञानिकों द्वारा व्यक्त की चुकी हैं।
भूकम्प –
विश्व भर के वैज्ञानिकों में कतिपय तथ्यों को लेकर आम सहमति बनती दिख रही है:- जैसे
पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ लगभग चार अरब वर्ष पूर्व हुआ था।
उस समय के समुद्रों में इकट्ठा हुआ पानी आज एकत्रित पानी से बहुत कुछ भिन्न था।
प्रारम्भ में पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा न के बराबर थी, लेकिन क्रमशः उसकी मात्रा बढ़ती गयी और अन्ततः वह वर्तमान स्तर तक जा पहुँची है। ऑक्सीजन निर्माण का कार्य हरे पौधे करते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण के दौरान वातावरण से डायऑक्साईड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते जाते हैं।
सन् 1977 में प्रशान्त महासागर में कार्यरत एक तैरती प्रयोगशाला के माध्यम से वैज्ञानिकों ने महसूस किया कि महासागर के बहुत गहरे तल में दरारें हैं। इन दरारों में से निकलने वाले पानी का तापमान 4000 डिग्री सेल्सियस होता है। इस दरारों को उष्ण जलीय दरारें (हाईड्रोथर्मलवेन्ट्स) कहते हैं। अनुमान है कि पृथ्वी का तल कई प्लेटों से मिलकर निर्मित हुआ है। ये प्लेटें खिसकती हैं और एक दूसरे से टकराती रहती हैं। जब दो प्लेटें टकराती हैं, तब पृथ्वी की सतह हिलती है अर्थात् भूकम्प जैसा अनुभव होता है।
इस विषय पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि ये भारतीय भूगर्भीय प्लेट पूर्वोत्तर की ओर लगभग पाँच सेन्टीमीटर प्रतिवर्ष के क्रम से खिसक रहीं है। गत 30 वर्षों में भूकम्पीय सर्वेक्षणों के विश्लेषण अध्ययन बतलाते हैं कि भूकम्प की घटनाओं की संख्या में न तो कोई कमी होना महसूस किया जा रहा, न ही वृद्धि का होना। हिमालय क्षेत्र में भी भूमि के नीचे प्लेटें टकरा रही हैं, तो उसकी मुख्य वजह खनिज सम्पदा से लेकर अन्यान्य अंधाधुंध दोहन ही तो मुख्य कारण माना जाता है।
भूगर्भ वेत्ताओं का मानना है कि हमारे देश भारत में और आसपास के क्षेत्रों में भूकम्प का प्रमुख कारण बहुप्रचलित (भू- विवर्तनीय) टेक्नोनिक सिद्धान्त है, जिसके अनुसार लाखों वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप का विशाल भूखंड एशियायी भूखंड से आ भिड़ा था। उस भूगर्भीय घटना के परिणाम स्वरूप ही हिमालय का जन्म होना माना जाता है और उपमहाद्वीपीय चट्टानों में लचक आ गयी। इस लचक और चट्टानों पर बढ़ते दबाव के कारण हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं के निचले तल पर अचानक खिसकन की आशंका जतीयी जाती रही है।
भूकम्प प्रकृति की उन घटनाओं में से एक हैं, जिसे कभी रोका नहीं जा सकता। भूगर्भवेत्ताओं का मानना है कि-
(1) जब पृथ्वी सूर्य एवं चन्द्रमा अपने परिक्रमा-पथ की अपनी स्वाभाविक स्थितियों में 0-186 डिग्री का कोण निर्मित करते हैं, तब पृथ्वी पर दबाव बढ़ने लगता है, जिसके परिणाम स्वरूप (2) पृथ्वी अपनी स्वाभाविक गति में परिवर्तन करने का बाध्य हो जाती है, इस कारण टेक्टानिक परतों का सरकना संभव होता है। शोध में विश्व भर से आये वैज्ञानिकों के गत 100 वर्षों के अध्ययन में भूकम्प विषय का विश्लेषण किया गया था।
मैक्सिको के प्रशान्त महासागरीय तट पर गत सात सितम्बर’2017 की रात्रि में लगभग 11ः49 पर 8.1 तीवृता वाले भूकम्प ने दस्तक दी थी। मैक्सिको में गत 100 वर्षाें में आने वाला यह सबसे बड़ा भूकम्प था। इसके साथ ही इस तट पर एक बड़ी सुनामी का भी खतरा बढ़ा। मौसम विज्ञान विशेषज्ञ 3.3 मीटर ऊँची सुनामी देख चुके हैं। यहीं ‘‘पैसिफिक सुनामी वार्निंग सेन्टर’’ का कहना है कि इनकी ऊँचाई 12 फीट भी हो सकती है। पूरे मध्य अमरीका में सुनामी का खौफ बढ़ता जा रहा है।
कैरेबियाई क्षेत्र में तबाही मचाने के बाद अमरीका के तटवर्ती राज्य फ्लोरिडा में ‘‘इरामा-तूफान’’ ने भी भयंकर विनाशकारी असर दिखाया था। इन क्षेत्रों में 209 कि.मी. की रफ्तार से हवायें चल रहीं थीं।