हमारे देश का संविधान हमारे देश के लोकतंत्र की आत्मा है। यह भारतीय संस्कृति से जुड़ा दर्शन है जिसके मूल में हमारी वह परंपरा है जिनमें जाति, लिंग, धर्म के आधार पर मनुष्यो में कोई भेद नहीं किया गया है।
भारतीय संविधान की आत्मा इसकी प्रस्तावना है जो संविधान का मूल्यवान अंग है। यह प्रस्तावना संविधान के मूल दर्शन को बताती हैं। हमारे देश के संविधान को भले ही 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था परंतु 26 नवंबर 1949 को ही देश की संविधान सभा ने वर्तमान संविधान को विधिवत रूप से अपनाया था इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवम्बर 2015 को अधिसूचना जारी कर इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की।
संविधान का मूल विचार हमारी वह महान परंपरा है जिसमें कहा गया है “लोका: समस्ता सुखिनो भवंतु” यानी लोक कल्याण में ही सब का सुख निहित है। सम्पूर्ण विश्व को “वसुधैव कुटुंबकम” के सूत्र में अपना परिवार मानना व साथ लेकर चलना ये भारत की सांस्कृतिक परम्परा का मूल है । इसी महान ,उदान्त परंपरा व विचार का लिखित रूप भारत का संविधान है। यह देश के आदर्शों, उद्देश्यो व मूल्यों का प्रतिबिंब है।
देश के माननीय प्रधानमंत्री आज भारतीय संविधान के आदर्शों को, मूल्यों को आत्मसात कर राष्ट्र निर्माण के कार्य मे दिन रात संलग्न है। हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब संसद में प्रथम बार प्रवेश किया उस समय संसद की चौखट पर अपना सिर रखा। इससे पता चलता है कि उनकी संविधान व उसके मूल्यों में कितनी आस्था है।
हमारा संविधान भारतीय इतिहास की विकास यात्रा है। संविधान के 22 भाग है एवं प्रत्येक भाग शुरू होता है 8 गुणा 13 इंच के चित्र से। इन 22 चित्रों को बनाने में कुल चार साल का समय लगा था। संविधान 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में तैयार हुआ था लेकिन 6 महीने इसको लिखने में लगे। इसकी मूल कॉपी प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अपने हाथों से लिखी थी। यह कैलीग्राफी के द्वारा इटैलिक अक्षरों में लिखी गई है। प्रत्येक पन्ने को शांति निकेतन के चित्रकार नंदलाल बोस के चित्रों द्वारा सजाया गया है। इन चित्रों में भारत की संस्कृति, सभ्यता, मूल्य और इतिहास की झलक मिलती हैं। इनमें मोहनजोदड़ो वैदिक काल, रामायणकाल, महाभारत काल, बुद्ध के उपदेश, महावीर का जीवन, मौर्य गुप्त मुगल काल के अतिरिक्त गांधी सुभाष, हिमालय से लेकर सागर के चित्र है।
संविधान के कवर को अजंता के भित्ति चित्र शैली (दीवारों पर बने चित्रों) से सजाया गया है। शुरुआत अशोक के चिन्ह से की गई है। प्रस्तावना को सुनहरे बॉर्डर से सजाया गया है। बॉर्डर में घोड़ा, शेर व हाथी के चित्र है। चित्रों में देश की भौगोलिक विविधता को भी दर्शाया गया है। इन्हें चित्रों के कारण भारतीय संविधान को ‘रिपब्लिक ऑफ आर्ट’भी कहा जाता है। पहले भाग की शुरुआत सिंधु घाटी सभ्यता के चर्चित प्रतीक जेबु बैल के चित्र से होती है। बैल को सबसे शक्तिशाली वंश और मोहनजोदड़ो और हड़प्पा का प्रतीक माना गया है। दूसरे भाग की शुरुआत वैदिक काल के गुरुकुल के चित्र से हुई है। इस भाग का नाम‘नागरिकता’है। संविधान का भाग तीन जिसमें ‘मौलिक अधिकार’ की बात की गई है इसकी शुरुआत पुष्पक विमान में अयोध्या लौटते राम, लक्ष्मण और सीता के चित्र से होती हैं। इस भाग में राम का चित्र होने के पीछे मुख्य कारण राम का व्यक्तित्व है।राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, आदर्श व्यक्तित्व के स्वामी थे जिन्होंने राम राज्य की स्थापना की।
भारतीय लोक मानस के मन में राम के प्रति अपार श्रद्धा है, मान है। राम जिन्होंने जाति, वर्ग से ऊपर उठकर समरस समाज की स्थापना की। निषादराज से मित्रता की, भीलनी शबरी के झूठे बेर स्वीकारें। एक राजा के रूप में प्रजा को यथोचित अधिकार, मान-सम्मान दिया। पूरा जीवन न्याय की रक्षा व धर्म की स्थापना के लिए लगा दिया। संविधान में चौथे भाग की शुरुआत कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश देने वाले कृष्ण के चित्र से होती है इस भाग का नाम ‘राज्य के नीति निर्देशक तत्व’ है।
राम और कृष्ण हमारे लिये महज पौराणिक पात्र भर नही है ये हमारी संस्कृति की जड़े है,भारतीय दर्शन के शाश्वत मूल्य हैं, लोक मानस के ह्रदय में संचार करती आस्था है, विश्वास है।
इसी के साथ सीता की खोज में उड़कर जाते हनुमान, सिंहासन बत्तीसी पर बैठे उज्जैन के राजा विक्रमादित्य, काल की छाती पर पैर रख नृत्य करते नटराज, गंगा नदी का धरती पर अवतरण, शांति का उपदेश देते बुद्ध, वैदिक यज्ञ कराते ऋषियों की यज्ञशाला से लेकर भारतीय संस्कृति के अनेक चित्र संविधान में लिए गए हैं।
संविधान में सम्मिलित ये चित्र किसी धर्म के प्रतीक नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति, सभ्यता व धरोहर के प्राचीन चिन्ह है। यह सनातन संस्कृति ही हमारी जड़ है। संविधान निर्माताओं ने यह सोचकर ही इस प्रकार का निर्णय लें इन्हें संविधान में स्थान दिया। इन चित्रों को संविधान में स्थान देने और सम्मिलित करते समय संविधान निर्माताओं का दृष्टिकोण भारतीय इतिहास, संस्कृति और जीवन मूल्यों से लोगो को परिचित कराना था। इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर भारतीय संस्कृति के परिचायक इन चित्रों को संविधान में स्थान दिया गया। निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि भारतीय संविधान का मूल उसकी आत्मा भारतीय ही है और उसमें भारत के इतिहास संस्कृति, सभ्यता और जीवन मूल्यों के दिग्दर्शन होते हैं।
!!जय हिंद, जय भारत!!
(आलेख में व्यक्त विचार लेखिका के अपने है।)
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