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आजादी के महानायक : सुभाष बाबू

आजादी के महानायक : सुभाष बाबू…

जन-जन के हृदय सम्राट आजादी के महानायक सुभाष चंद्र बोस ने राष्ट्र प्रेम और देशभक्ति से प्रेरित होकर त्याग और बलिदान का अनुपम परिचय दिया था। उनका संपूर्ण जीवन प्रेरणा का अदस्त्र स्तोत्र बन चुका है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान महाराजा प्रताप शिवाजी महाराज जैसा ही था।

यद्यपि अनेकानेक मां भारती के पुत्रों के हृदय में यह पीड़ा बनी हुई है कि नेताजी के भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अति महत्वपूर्ण योगदान को लगभग भुला दिया गया है। सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि जिस प्रेरणा आदर्श और स्वप्न को लेकर उन्होंने त्याग और संघर्ष का मार्ग अपनाया उसके बारे में कोई अध्ययन मनन देश में गत सरकारों द्वारा नहीं चलाया गया।

महात्मा गांधी की इच्छा के विरुद्ध कांग्रेस अध्यक्ष पद पर दो-दो बार विजयी, होना गांधी जी से मतभेद, कांग्रेसी निष्कासन, फारवर्ड ब्लाक की स्थापना, अंग्रेजों के कड़े पहरे के बावजूद विदेश गमन हिटलर से भेंट पनडुब्बी की यात्रा के माध्यम से जर्मनी से हजारों किलोमीटर दूर जापान पहुंचने का खतरा रासबिहारी बोस और जनरल मोहन सिंह के सहयोग से गठित आजाद हिंद फौज का सेनापति ग्रहण करके अंडमान द्वीप मणिपुर में मोरंग और नागालैंड में कोहिमा तक आजादी का परचम फहराने जैसे अनेकानेक रोमांचकारी और स्फूर्ति दायक वरसों तक ही उनकी स्मृति सिमट कर रह गई है।

सन 1939 में ही उन्होने कांग्रेस के अंदर ही फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की थी, अचानक सन 1940 ईस्वी में वे पुनः अपने घर पर गिरफ्तार हो गए। 26 जनवरी 1941 को सुभाष बाबू अपना भेज बदल कर अंग्रेज सरकार की कैद से जर्मनी के लिए प्रस्थित हो गए थे। बर्लिन में उन्होंने स्वतंत्र भारत केंद्र और भारतीय सैन्य दल जैसी संस्थाओं की स्थापना की सन 1942 में आजाद हिंद फौज की स्थापना एक महत्वपूर्ण कार्य था।

उन्होंने देशवासियों में देश आजाद कराने के लिए जोश खरोश और साहस भरे नारे दिए जिन नारों को सुनकर प्रत्येक व्यक्ति देश प्रेम से सराबोर हो जाता था जैसे जय हिंद दिल्ली चलो तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा आदि।

वे भारत को आजाद कराने के लिए बैंकांक सिंगापुर वर्मा जापान जर्मनी इटली थाईलैंड तथा फिलीपींस आदि देशों को भी प्रेरित करते रहें उन्होंने 21 अक्टूबर 1940 को भारत की अस्थाई आजाद हिंद सरकार की घोषणा कर दी।

जापान मंचूरिया थाईलैंड इटली वाह फिलीपींस आदि 9 राष्ट्रों ने इस सरकार को मान्यता दी थी, इसी तरह के आजाद हिंद सरकार के यानी भारत के प्रथम प्रधानमंत्री कहलाए।

आजाद हिंद फौज ने 24 अक्टूबर 1943 को अमेरिका व इंग्लैंड के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी अंतरराष्ट्रीय संबंधों और कूटनीति की अच्छी समझ रखने वाले नेताओं ने, साम्राज्यवाद विरोधी दूरी पर ऐसा वैश्विक गठबंधन और सैन्य शक्ति खड़ी कर दी , जो आने वाली शताब्दियों में भी दंतकथा की तरह सुनी कही जाती रहेगी।

वैसे भी यह आश्चर्यजनक तो है ही की विदेशों में रहते हुए 50,000 सशस्त्र सैनिकों की आजाद हिंद फौज का गठन 20 करोड़ों का निजी खजाना अपने अस्पताल अपनी अदालत स्कूल अखबार आदि रखना फौज में महिलाओं की एक सैनिक टुकड़ी भी थी एक जांबाज दल भी था जो दुश्मन के ठिकानों की तो ले लेता रहता था।

सन 1944 में वह दिन भी आया जब सुभाष बाबू के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज ने जय हिंद और दिल्ली चलो के नारों के साथ भारत के पूर्वी सीमांत पर विधिवत युद्ध आरंभ कर दिया। दूसरे महायुद्ध में चारों तरफ से गिरी अंग्रेज सरकार विक्रांत हो गई थी उसकी भारत में जड़े हिल गई थी आजाद हिंद फौज के वीर सिपाही इंफाल कोहिमा रामू टिड्डीम आदि क्षेत्रों पर विजय पताका कराते हुए आगे दिल्ली की ओर बढ़ने लगे, सुभाष बाबू का स्पष्ट मानना था कि अहिंसा के रास्ते से मांगने पर आजादी प्राप्त नहीं हो सकती।

वे गांधी के मार्ग से सहमत नहीं थे 9 जुलाई को सुभाष बाबू ने अपने ही रेडियो स्टेशन के माध्यम से श्रोताओं की उपस्थिति में एक समारोह में उपस्थित फौज के जवानों को संबोधित करते हुए कहा था कि यह सेना न केवल भारत को स्वतंत्रता प्रदान करेगी बल्कि स्वतंत्र भारत की सेना का भी निर्माण करेगी हमारी विजय उस दिन पूर्ण होगी जब हम ब्रिटिश साम्राज्य की को दिल्ली के लाल किले में दफना देंगे।

अंग्रेजों से छीने हुए अंडमान और निकोबार दीप समूह की नेताजी सुभाष चंद्र बोस वाली अंतरिम सरकार को सरकार को प्राप्त हो गई थी, इन द्वीपों पर नए नाम नेताजी ने शहीद द्वीप और स्वराजदीप रखे थे।

आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों से मणिपुर भी छीन लिया था, कोहिमा इंफाल और मोर आई आदि स्थानों पर आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए अमेरिका द्वारा परमाणु बम विस्फोट किए जाने से महायुद्ध की स्थितियां बदल गई जापान ने आत्मसमर्पण की घोषणा कर दी नेताजी का क्या हुआ आज तक रहस्य बना हुआ है।

नेताजी के विचार विश्वव्यापी थे समस्त मानव समाज को उदार बनाने के लिए प्रत्येक जाति को विकसित बनाना चाहते थे, उनका स्पष्ट मानना था कि जो जाति उन्नति करना नहीं चाहती विश्व रंगमंच पर विशिष्टता पाना नहीं चाहती उसे जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है।

23 जनवरी 1800 को कटक में जन्मे सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए जिस त्याग बलिदान बलिदानी देश प्रेम का जज्बा दिखाया, उन्होने अंग्रेजी सेवा में लगे ब्रिटिश भक्त सैनिकों में भी आजादी का अलख जगा दिया था।

इस चमत्कारिक कृत्य के परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने असहाय होकर अपने देश वापस चले जाना ही बेहतर समझा था। स्वयं ब्रिटिश प्रधानमंत्री इटली ने कहा था कि ब्रिटिश गवर्नमेंट के प्रति भारतीय थल सेना के लगाओ के मुख्य आधार को कमजोर कर दिया था यही मुख्य कारण था आजादी का।

जिस प्रकार वामपंथी इतिहासकारों ने जानबूझकर महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज के शौर्य वीरता पूर्ण बलिदानी संग्राम को कमतर करके प्रस्तुत किया है, ठीक उसी प्रकार आधुनिक स्वाधीनता संघर्ष में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अत्यधिक महत्वपूर्ण महती भूमिका की भी अनदेखी की गई है।

भारतीय इतिहास की वास्तविकता की सोच वाले विचारों को अपनी सतही सोच को चौखटें में बैठाने के कुप्रयासों के अंतर्गत इस महापुरुष और स्वतंत्रता संग्राम के चरित्र को ही बदलने की कुत्सित कोशिशें की गईं।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन का रहस्य जितना गहरा है उतनी ही गहरी इससे जुड़ी राजनीति है, कांग्रेस के मंच से बार बार बोला गया कि सुभाष का भाषण सुनने ना जाए। डॉ राजेंद्र प्रसाद के नाम से पर्चे बांटे गए इसमें लिखा था कोई कांग्रेसी सुभाष चंद्र बोस का भाषण सुनने के लिए कहीं नजर ना आए।

परंतु इतनी घोषणाओं के बाद भी सुभाष के सम्मेलन में उनसे 10 गुना अधिक संख्या थी, सुभाष ने अपने भाषण में कहा हमारा प्रमुख कार्य साम्राज्यवाद का अंत और भारत में राष्ट्रीय स्वाधीनता लाना है।

डॉ. किशन कछवाहा
(लेखक: महाकोशल संदेश के संपादक हैं)