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आज के किसान आंदोलन पर बाबा साहेब के विचार ये सोचने पर बाध्य करते हैं, कि ये तरीक़ा लोकतांत्रिक तो नहीं है…

भारत रत्न डॉक्टर बीआर अम्बेडकर द्वारा 1949 में समविधान सभा में दिए “अराजकता की व्याकरण” पर दिये संबोधन और वर्तमान कृषि आंदोलन पर विमर्श…

वास्तव में, आज के किसान आंदोलन पर बाबा साहेब के विचार ये सोचने पर बाध्य करते हैं, कि ये तरीक़ा लोकतांत्रिक तो नहीं है…

बाबा साहेब “अधिनायक वादी / dictatorship” तरीक़ों के धुर विरोधी थे, इसलिए मार्क्सवादी आलोकतंत्रिक विचार उनके सामने घुटने टेक देते थे. बाबा साहेब, भारत के ग्रामों में फैले बिचौलियों और समस्याओं से परिपूर्ण तंत्र से भली भाँति परिचित थे, इसलिए जब शुरुआत से ही त्रि-स्तरीय , ग्राम स्वराज आधारित प्रशासनिक व्यवस्था की माँग उठी, तो उन्होंने उसे तब तक के लिए स्थगित करने का फ़ैसला किया, जब तक समाज का पिछड़ा वर्ग आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक रूप से मज़बूत ना हो जाए.

पंजाब में देश के सबसे अधिक प्रतिशत में अनुसूचित जाती वर्ग के लोग हैं, जो अधिकांश भूमिहीन व छोटे किसान हैं, जो उन बड़े किसानों के खेतों पर एक तरह की बंधुआ मज़दूरी करते हैं. ये बड़े किसान जो आजकल कनाडा, औस्ट्रेलिया या ब्रिटेन में बस चुके हैं, बिचौलियों के माध्यम से अपनी फसलों को निर्यात करवा देते हैं और उनके खेतों पर मज़दूरी करने वाले मज़दूरों को दिहाड़ी भी नसीब नहीं होती. आज पंजाब और हरियाणा के पिछड़े व अनुसूचित जाती वर्ग के हज़ारों खेती विहीन मज़दूरों से प्रश्न है कि वो किसके साथ हैं, बाबा साहेब अम्बेडकर के या फिर बिचौलियों के…

1920 में बाबा रामचंद्र के नेतृत्व में भी अवध के किसानों ने विशाल संघर्ष किया था मगर उनके नेतृत्व को एक नेता “जो आगे जाकर प्रधानमंत्री बन गए “ ने हथिया लिया था, उस आंदोलन की माँगे क्या थी?

अपनी फसल बेचने की स्वतंत्रता और ज़मींदारों के बेमानी हिस्सों से राहत (तब ज़मींदार, उनके बेटों की शादी, पढ़ाई, कारों के लिए भी किसानों से कर वसूलते थे, यहाँ तक “मुर्दा कर” भी वसूला जाता था)  आज ज़मीदारों से मुक्ति तो मिल गई है मगर कल के ज़मींदार ही आज के बिचौलिये हैं. सीमांत किसानों को अपनी फसल अपनी मर्ज़ी से बेचने या निर्यात करने की आज़ादी कब मिलेगी?

अगर पिछले कृषि क़ानून, इतने ही बढ़िया थे, तो किसानों की अब तक दुर्दशा क्यूँ हैं? क्यूँ पंजाब , हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को छोड़कर, हर राज्य के किसान आत्महत्या क्यूँ कर रहे हैं?

आलोकतंत्रिक दबाव से हो सकता है, सरकारें झुक जाएँ, नए कृषि क़ानून हो सकता है दबा दिए जाएँ, मगर ये बाबा साहेब के दिखाए लोकतांत्रिक समतावादी आदर्शों का अपमान होगा…

वर्तमान किसान आंदोलन में, किसानों जैसे कोई लक्षण नज़र नहीं आते. ये ग़ैर आदर्शवादी, अराष्ट्रीय शक्तियों से वित्त पोषित व विशुद्ध राजनीतिक आंदोलन है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक देशव्यापी अराजकता क़ायम रखना है, क्योंकि वास्तविक किसान अपनी रबी की फसल को छोड़कर 50 दिन तक अपने खेतों से दूर नहीं रह सकता…

-लक्ष्मण राज सिंह मरकाम