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आत्मनिर्भर एवं स्वामलम्बी भारत

आत्मनिर्भर एवं स्वामलम्बी भारत

प्रस्तावना-भारत के प्राचीन ग्रंथों और वेदों में जो  नगरीय व्यवस्था बताई गई , उसमें एक है नगर , गांव में सारे व्यवसाय करने वाले लोग मिलजुल कर आपसी लेनदेन के द्वारा व्यापार करते थे।हर वस्तु का निर्माण स्वयं करते थे। आज भी हम उस समय की कला और हस्तशिल्प को बेजोड़ मानते हैं; जबकि उस समय कोई मशीन एवं तकनीक नहीं थी , फिर भी उस समय के असाधारण कार्य आज भी जीवंत विद्यमान हैं।

भारत की अर्थव्यवस्था -भारत की परंपरा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक लगातार हस्तांतरित होती रही। पर आधुनिकीकरण,तकनीक और ग्लोबलाइज़ेशन ने अपने कार्य को निम्न समझने पर हमें  मजबूर कर दिया। पूर्वजों के व्यवसाय में हमें शर्म आनी लगी , बजाय इसके हम मजदूरी करने स्वीकारते हैं।

वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने पूरे विश्व को एक परिवार, एक गाँव बना दिया है जहां देशों का आदान -प्रदान एक दूसरे के साथ होने लगा। सम्पन्न देशों ने ज्यादा लाभ कमाने के लिए अन्य देशों के प्राकृतिक साधनों का उपयोग और वहां की युवा शक्ति का उपयोग भरपूर किया है। जिससे शहरी चकाचौन्ध में युवा पीढ़ी आकर्षित हो फंस कर रह गई है।

वर्तमान परिवेश में भारत की अर्थव्यवस्था-

“स्वदेशी”-स्वयं के देश में निर्मित हमें गर्व होता है,यह बताने में कि हम इम्पोर्टेड वस्तुओं का उपयोग करते हैं।इससे हम अपने स्तर को अन्य से भिन्न भी मान लेते हैं। परंतु हम  ये नहीं जानते कि जितना ज्यादा हम विदेशी वस्तुओं का उपयोग करते हैं, हमारी देश की अर्थव्यवस्था को उतना ही नुकसान पहुंचता है।

हम अपने देश के उद्योगों को उन्नत करने के बजाए किसी बहु-राष्ट्रीय कंपनी के उच्च ओहदे पर रहना अपनी शान समझने लगे हैं। जिस कारण हमारे देश के लघु और कुटीर उद्योगों को नुकसान तो पहुंचता है और  वर्तमान पीढ़ी प्रकृति से दूर होकर डिब्बाबंद भोजन , श्रृंगार , रासायनिक दवाओं पर निर्भर होती जा रही है।

कई बच्चे फलों-फूलों के पौधे नहीं जानते , पोष्टिक आहार प्राप्त नहीं करते और दैनिक जीवन में हाथों से काम करने के बजाए मशीनों पर निर्भर रहना पसंद कटे हैं। जो सभी के स्वस्थ के लिए हानि कारक है।

वर्तमान समय ने सच्चाई का सामना कराया है। उजड़े हुए गावों को फिरसे बसाने का प्रयास करना होगा तथा गावों में भी लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने होगें ,जिसमें शाशन की योजना के साथ हम सब को भी प्रयास करना होगा।

लघु उद्योगों , खेती, हस्तशिल्प में आधुनिक तकनीक का उपयोग कर हम रोजगार की सफलता निश्चित कर सकते हैं। वहीं युवा अपनी शिक्षा तकनीक का उपयोग कर गाविन में उद्योग स्थापित कर सकते हैं। वहां के साधन वहाँ की श्रम शक्ति का उपयोग निर्माण में किया जाए और  बाजार में स्वदेशी निर्मित उत्पादन  विक्रय हेतु सुविधा उपलव्ध हो तभी स्वदेशी आत्मनिर्भरता की कल्पना साकार हो सकती है।

समाधान कैसे हो?-अब हमें सीखना है, अपने देश में नोरे उत्पादनों को उनके निर्माण और वितरण में अपनी सहभागिता देने  की। अपने देश में उपलव्ध साधनों का उपयोग कर उत्पादन , देश के बाजार में स्वनिर्मित वस्तुओं का अधिकाधिक प्रयोग , हमें  और देश  को आत्मनिर्भर बनने में सहायक होगा।

आइये हम संकल्प लें और “स्वदेशी स्वालंबन अभियान”से जुड़कर स्वदेशी वस्तुओं का अपने जीवन में उपयोग करने का संकल्प लें और उसे यथार्थ में उपयोग करें।

अमिताषा नायक                                                                                (युवा लेखिका)