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खतरनाक हैं एस.डी.पी.आई. के मंसूबे, बेंगलुरु हिंसा में आई इस मुस्लिम संगठन की भूमिका

 5 अगस्त को जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर के लिए भूमि पूजन हुआ तो मुस्लिम संगठन—सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एस.डी.पी.आई) ने नफरत फैलाने का प्रयास किया। सोशल मीडिया पर लगातार एस.डी.पी.आई, श्रीराम मंदिर का विरोध कर रहा है। यह संगठन पिछले एक दशक से मुसलमानों को उकसा रहा है। बेंगलुरु की हिंसा के पीछे भी इसी संगठन की भूमिका है। यह संगठन पीएफआई और सिमी की तरह ही बेहद खतरनाक है।

 केरल से सम्बन्ध रखने वाले इस संगठन का नेटवर्क पूरे देश में फैला हुआ है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। विगत 11 वर्षों से इस संगठन का मुखिया एम.के.फैजी इस्लामिक अभियान में लगा हुआ है। बेंगलुरु हिंसा में इस संगठन की भूमिका सामने आने के बाद कर्नाटक सरकार इस संगठन पर प्रतिबन्ध लगाने के साथ ही हिंसक घटना कराने वालों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी कर रही है। कर्नाटक के मंत्री के.एस. ईश्वरप्पा ने कहा, “एस.डी.पी.आई एक वाहियात संगठन है। इस पर प्रतिबन्ध लगाने पर विचार किया जा रहा है।”

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया गत एक दशक से मुस्लिमों को भड़का रही है। वैसे तो इस संगठन के पदाधिकारी पूरे भारत में फैले हुए हैं मगर यह संगठन दक्षिण भारत के मुसलमानों के बीच अपनी घुसपैठ बना चुका है। एस.डी.पी.आई का मुखिया एम. के. फैजी फेसबुक पेज और पर्सनल फेसबुक अकाउंट पर सक्रिय है। एम.के.फैजी केरल के जामिया नूरिया अरबिया से इस्लामिक शिक्षा में स्नातक है।

फैजी 80 के दशक में मस्जिद में इमाम और मजहबी शिक्षक के तौर पर केरल में काम कर चुका है। केरल के स्थानीय लोगों से इसकी जान-पहचान काफी पहले से है। संगठन की स्थापना 2009 में जब उसने की तब वह इस संगठन का महासचिव बना। वर्ष 2018 में उसने खुद को एस.डी.पी.आई. का अध्यक्ष घोषित कर दिया। खुद को इस्लामिक स्कालर, राजनीतिक विश्लेषक बताने वाला फैजी मुस्लिमों का नेता बनना चाहता है। दक्षिण भारत के दो राज्यों-कर्नाटक और केरल­- में इसके मुस्लिम समर्थक बढ़ रहे हैं।

एसडीपीआई का मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन में है, मगर अधिकतर पदाधिकारी अल्पसंख्यक हैं और दक्षिण भारतीय राज्यों के रहने वाले हैं। विगत 10 वर्षों में इस संगठन ने दक्षिण भारतीय राज्यों में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया।

एसडीपीआई के मुखिया एम.के.फैजी के जहरीले सन्देश:

  • भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना पूरा होने वाला है। हिंदुत्व आतंकवादी संगठनों द्वारा धार्मिक भावनाओं को भड़का कर ढांचे को ध्वस्त कराया गया।

  • गैर-कानूनी तरीके से ढांचे की जमीन पर मंदिर की आधारशिला प्रधानमंत्री ने रखी। बाबरी की जमीन पर मंदिर निर्माण शुरू करना और मस्जिद की जमीन को मंदिर को सौंपना इस बात का प्रमाण है कि देश में न्याय और नैतिक मूल्य की अवधारणा ध्वस्त हो चुकी है। वह जगह मस्जिद की है और वहां कुछ भी बन जाए, उसे ढहाकर भविष्य में मस्जिद ही बनाएंगे।

  • नागरिकता कानून को संशोधित करके मुसलमानों को अलग-थलग करने का प्रयास किया गया। महिलाओं एवं बच्चों ने भारत की सड़कों पर सीएए के खिलाफ मोर्चा संभाला था। कोरोना की वजह से हमारा प्रदर्शन इस तरह से खत्म नहीं होना चाहिए था। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में हुए प्रदर्शन में शामिल लोगों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है।
  • जम्मू एवं कश्मीर के विशेषाधिकार को खत्म किया गया। उसके बाद राज्य पर तालाबंदी थोपी गई। तालाबंदी को अब 1 साल बीत चुका है। सरकार द्वारा जम्मू एवं कश्मीर में सांप्रदायिक भेदभाव लागू किया जा रहा है। बंदूक की नोक पर कश्मीरियों का खात्मा किया जा रहा है।

  • भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की इस मुहिम के तहत केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने पाठ्यक्रम से संघवाद, नागरिकता और पंथनिरपेक्षता से जुड़े अध्याय को पूरी तरह हटाने का निर्णय लिया है। कोरोना वायरस के बहाने यह बदलाव किया गया है। ऐसा करके संघ अपना एजेंडा लागू कर रहा है।

हिन्दू महापुरुषों के नाम पर खाता खोल कर पीएफआई कर रहा था टेरर फंडिंग:

सिमी, एसडीपीआई और पीएफआई जैसे प्रतिबंधित और कटृटरपंथी संगठनों का केरल से गहरा सम्बन्ध है। गत फरवरी माह में उत्तर प्रदेश के कानपुर से पीएफआई के सैय्यद अब्दुल हई, मोहम्मद उमर, फैजान, सर्वर आलम एवं वासिफ- को गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। जब पांचों अभियुक्तों के मोबाइल की जांच की गई, तब इसका खुलासा हुआ कि पीएफआई की जड़ें उत्तर प्रदेश में काफी गहरी हो चुकी हैं। दंगा कराने के लिए हिन्दू महापुरुषों के नाम पर सोसायटी बनाकर बैंक खाता खोला गया था।

बाला जी, दयानंद सरस्वती आदि महापुरुषों के नाम से सोसायटी बनाई गई थी। इन्हीं सोसायटी के नाम पर बैंक खाता खोला गया था ताकि किसी को भी शक न हो। पीएफ़आई ने सीएए और एनआरसी की आड़ लेकर पूरे देश में दंगा कराने का षड्यंत्र रचा था। कानपुर में हिन्दू महापुरुषों के नाम पर बनाई गई सोसायटी के बैंक खातों में लाखों रुपये जमा कराए गए थे।

उस समय पुलिस ने बताया, “कानपुर के सैय्यद अब्दुल हई के नेतृत्व में वर्ष 2015 में पीएफआई का गोपनीय सम्मलेन हुआ था। संगठन लगातार अपनी बैठकें कर रहा था। हाल के वर्षों में पीएफआई के सदस्यों की संख्या काफी बढ़ गई थी। वर्ष 2019 के दिसम्बर में हुई हिंसा में 100 से ज्यादा पीएफआई के सदस्य सक्रिय थे।”

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक हितेश चन्द्र अवस्थी के अनुसार, “वर्ष 2001 में भारत सरकार द्वारा स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया( सिमी) संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया। उसके बाद दक्षिण भारत के केरल स्थित नेशनल डेवलपमेंट फ्रंट, तमिलनाडु में स्थित- मनीथा निधि पसराई और कर्नाटक में स्थित- फोरम फार डिग्निटी,  इन तीन संगठनों का सम्मलेन हुआ। उसके बाद 22 नवम्बर, 2006 को पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का गठन किया गया।

पीएफआई के राष्ट्रीय पदाधिकारी के निर्देश पर उत्तर प्रदेश एवं अन्य राज्यों में  संगठन के कटृटरपंथी अपने संगठनात्मक कार्यों एवं राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने की कोशिश में लगे हुए हैं। सीएए के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन की आड़ लेकर पीएफआई ने दंगा भड़काने की कोशिश की थी। ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की गई।”

इनपुट:भाषा