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जाहिलों के बीच समझदारों की भूमिका क्या हो?

मोहम्मद सा. के नाम पर की गयी टिप्पणी का बहाना बनाकर इस्लामी देश अपनी एक जुटता बताकर भड़काने वाला माहौल तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। यह कोशिश ठीक उसी प्रक्रिया से मिलती-जुलती है, जो कृषि आन्दोलन के समय काम में लायी गयी थी।

इस इस्लामी एकता ने यह उजागर करने की कोशिश की है कि कोई इस्लाम के खिलाफ बोलने दूसरा साथ ही यह भी कि हिन्दूधर्म के बारे में कुछ भी अनाप-शनाप बोलने की पूरी छूट है।

पाकिस्तान और कतर जैसे इस्लामी देश भारत की बढ़ती ताकत से दुःखी है, लेकिन कतर कोक यह भी समझना चाहिये कि यदि भारत उसे गेहूँ चांवल, सब्जियाँ और मदन देना बन्द कर दें तो उसकी हालत पाकिस्तान से भी बदतर हो जायेगी।

पिछले आठ सालों से भारत विरोधी कतिपय देश वे तमाम ताकतें जो मोदी जी और उनकी सरकार के खिलाफ ताना-बाना बुनती रहीं हैं, वे मौके की तलाश में ही रहती है, ओर उन्हें उनके चाहे अनुसार मौका मिल भी गया। पर करेंगी क्या? सिवाय दुष्प्रचार के किया भी क्या सकता है?

मोदी जी जब चीन की हेकड़ी से नहीं डरे, अमेरिका के सामने हाथ नहीं ंफैलाये, पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों को मार डालने जैसा जोखिम पर कदम उठा लिया-वह टुटपुंजिया राष्ट्रों से क्या डरेगा। इन मुस्लिम राष्ट्रों के पास तेल के सिवाय है क्या? भारत यदि गेहूँ, चांवल, सब्जी, मटन आदि भी सप्लायी बंद कर दे तो उन्हें सबको उनकी नानी याद आ जायेगी।

यह नया भारत है, जो किसी के सामने न पहले झुका है, न अब झुकने की स्थिति में है। ‘‘हाथी चला बाजार- कुत्ते लगे हजार’’ जैसी कहावत चरितार्थ हो रही है। भारत के विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद ने जिस कड़ी शब्दावली के माध्यम से अमेरिकी और यूरोपीय देशों को जबाव दिया है, वह काबिले तारीफ है। अमंेरिका को मानवाधिकार व नस्लवादी हिंसा की याद दिलाते हुये अपने गिरेबान में झाँकने की नसीहत दे डाली है।

यूरोपीय देशों से आशा की है कि ‘वे अपना देखने और सोचने का नजरिया बदले। भारत के विदेश मंत्री द्वारा ऐसा ताखा जबाव दिया जाना हकीकत भरा है। यह भी उन्होंने कहा कि जो भारत के हित में होगा, वैसा ही कुछ किया जायेगा। भारत द्वारा ऐसे जबाव की किसी ने अपेक्षा नहीं की थी। चीन भी हमेशा दबाव बनाने की कोशिश करता रहा है, उसकी घुड़की का भी माकूल जबाव दिया जा चुका है।

इस्लामी देशों में इन दिनों एक होड़ लगी है कि वे कैसे इस्लामी देशों के नेता बने? सऊदी अरब में माहौल बदला हुआ है, वहाँ की महिलायें स्टेडियम में जाकर फुटवाल मैच देख सकती है। इस समय इस्लामी देशों का नेतृत्व सऊदी अरब के हाथ है, और वह उसे बचाये रखना चाहता है।

मुसलमान देशों को मजहब की चिन्ता नहीं है। यह आकलन गलत है। जो कुछ भारत में नूपुर शर्मा ने कहा है, उससे ज्यादा जाकिर नाईक ने जहर उगला है, ऐसे व्यक्ति को मलेशिया जैसा इस्लामी देश उसे शरण दिये हुये हैं। मुसलमानों के यदि इतने हितचिन्तक होते ये मुस्लिम देश तो चीन उइगर मुसलमानों पर जो अत्याचार कर रहा है, उस पर चुप्पी तोड़ने की कोई तो हिमाकत दिखाता?

एक और महत्वपूर्ण बात समझने लायक है कि मोदीजी ने अपने आठ वर्षों के कार्यकाल में सनातन धर्मियों के लिये और राष्ट्र के हित के लिये जो कदम उठाये हैं, ऐसे कदम गत 75 सालों में भारत की किसी भी सरकार ने नहीं उठाये। यह मोदीजी की उपलब्धि है, जिसे कोई भी नकारने की कोशिश नहीं कर सकता।

तुष्टीकरण इस देश से विदा लेने वाला है। यह दर्द कोसने वालों को अच्छी तरह से इसका आभास हो गया है। वही इस विरोध के आक्रोश का नतीजा है।

इस्लामी देशों को यही सबक ठीक होगा कि वे पाकिस्तान जैसे देशों के हालात देखकर अपने कदम सम्हाल कर उठायें। भड़काने की कोई भी नापाक कोशिश काम में नहीं आने वाला, न भारत के भीतर और देश के बाहर।

खाड़ी देशों द्वारा कौमी सियासती एकता दिखाने के बाद अब अलकायदा जैसे आतंकी संगठन ने भी आत्माघाती हमलों की धमकी दे डाली है। इस मामले को तूल देकर भारत के खिलाफ साजिश का ही एक हिस्सा माना जाना चाहिये।

विश्व के समझदार लोग जानते हैं कि दुनिया भर आतंकी, जाहिल लोगों की एक बड़ी संख्या है जो उचित-अनुचित कार्यों को अंजाम देती रही है और किसी भी सीमा तक जा सकती है, वह तो देवी-देवता से लेकर पैगम्बर संबंधी विवदित मामलों को लेकर अवसर भी तलाश में रहती है असल परीक्षा की घड़ी होती है, समझदारों के लिये उन्हें ऐसे अवसरों पर क्या करना है?

भारत के 21 करोड़ मुस्लिम अपनी कट्टरता की मानसिकता को एक तरफ रखकर देश का विकास यात्रा में शामिल होकर अपनी राह सुगम क्यों नहीं बनाना चाहते। अभी भी उस कट्टरपंथी मानसिकता को छोड़ नहीं पा रहे कि वे मुस्लिम पहले हैं, भारतीय बाद में।

शेष समुदाय शिक्षित भी हो रहे हैं और सशक्तिकरण की दिशा में आगे भी बढ़े हैं। प्रगति की राह में आगे बढ़ने के लिये ‘मैं भारतीय पहले हूँ’ की भावना जगाना आवश्यक होती है।

आठ सौ सालों का आक्रान्ताओं का घृणा पैदा करने वाला इतिहास भारत को क्या सुखद परिणाम दे गया है। दो संस्कृतियों के संघर्ष में वे आक्रान्ता तो इतिहास के पन्नों में रह गये, भारतीय संस्कृति सनातन भूमि पर अपनी पैठ आज भी बनाये हुये हैं। इससे सबक लिये जाने की जरूरत है। घृणा और नफरत आगे बढ़ने में भारी व्यवधान करते हैं। इस मामले में मुस्लिम धर्मगुरूओं को तथ्यों की विवेचना करते हुये सर्व समावेशी भूमिका में आना होगा।

जो हिन्दू पाँच-दस साल पहले तक पूर्णतः उदार थे, वे भी इतिहास के पन्नों में मुगलों के द्वारा किये गये अत्याचारों की दास्तानों को खंगालने में जुटे हुये हैं। इस मामले में मुसलमानों को भी आत्म निरीक्षण करने की जरूरत है।

आतंकियों द्वारा धमकियाँ दी जाने लगी हैं, मुहम्मद सा. का अपमान हुआ है। यह विश्व के 57 देशों के मुस्लिमों ने अपनी एक जुटता बताकर सिद्ध कर दी है, वे दवाब बनाने की ताकत रखते हैं। इसके दूरगामी परिणाम क्या हो सकते हैं? इसे समझ लेना चाहिये। तमाम प्रकार की बाधाओं और व्यवधानों के बावजूद भारत अपनी चतुर्मुखी प्रगति की दिशा में आगे बढ़ चला हैं।

यद्यपि सन् 2014 के बाद से देश के भीतर और देश के बाहर अशान्ति प्रिय शक्तियों ने पुरजोर कोशिशों के साथ व्यवधान खड़े करने के प्रयास भी जारी रखे हैं, परन्तु सत्य की विजय सुनिश्चित है, और ऐसा विश्वास है कि भारत इन सब अवरोधों को दूर कर विजय पथ के अंतिम लक्ष्य को छू ही लेाग।

लेखक:- डॉ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सुत्र:- 9424744170