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पाश्चात्य और वामपंथी इतिहासकारों का झूठ सामने आया- डाॅ. किशन कछवाहा

पश्चिमी आक्रान्ता और वामपंथी लेखक और इतिहासकार भारतीयों को विशेषकर समृद्ध हिन्दू सनातन संस्कृति को हर स्तर पर नीचा दिखाने की कोशिश करते रहे। इतना ही नहीं, इसके लिये उन्होंने अनेक प्रकार के प्रपंच फैलाये। उन्हीं में से एक यह भी था कि जिसके लिये झूठी थ्योरी की रचना भी की गयी। वह झूठा षड़यंत्र यह था जिसे जोर- शोर के साथ प्रचारित भी किया गया कि आर्य बाहर से आये थे। वे इस मंतव्य को मजबूती देना चाहते थे कि आर्य का बाहर से आगमन हुआ और द्रविड़ यहाँ के मूल निवासी थे।

उन्होंने इस्लामी आक्रान्ताओं का जो बार-बार भारत पर हमला करके यहाँ की अकूट सम्पत्ति को लूटकर ले गये और भीषण रक्तपात भी किया। उनका बचाव करने के लिये हजारों लेख और पुस्तकों की भी रचना की। आज उनके दावों की सच्चाई की पोल खुल चुकी है। उनकी बातों-तथ्यों को विज्ञान भी सही नहीं मानता।

इन इतिहासकारों – वामपंथी लेखकों ने इतना जहर उगला कि एक समय ऐसा भी आ गया जब हिन्दू भी अपना आत्म विश्वास खो चुके थे। इनकी मनगढ़न्त कहानियों कथाओं में हिन्दुओं के स्वयं के प्रति हेय भाव भरने के प्रयासों के अंतर्गत ईरान से आर्यों के आगमन और यहाँ के नगरों वि विध्वंश करने की कहानियाँ लिखी गयी थीं। अब उन इतिहासकारों- लेखकों की पूरी तरह के पोल खुल चुकी है।

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अभी हाल में आई आई टी खड़गपुर ने अपना सन् 2022 का केलेण्डर प्रकाशित किया है, जिसमें उनकी आर्य-द्रविड़ थ्योरी के सारे सबूतों को संकलित कर उनकी कही गयी सारी बातों का खुला खण्डन किया गया है। इस कैलेण्डर में बिन्दुवार उन तमाम सफेद झूठी बातों का खंडन करते हुये तथ्यों का प्रस्तुत किया गया है।

इस खड़गपुर आई आई टी के अध्ययन में इस तथ्य की ओर विशेष रूप से संकेत दिये गये हैं कि कैसे कैसे अंग्रेजी और वामपंथी इतिहासकारों ने भारतीय प्राचीन सभ्यता के पूर्वी और पश्चिमी छोर को नजर अंदाज किया। उन्होंने 2000 ईसापूर्व के पहले वैदिक सभ्यता को नीचा दिखाने के उद्देश्य से यूरेशिया के मैदानों से आर्यों के आने की बात कही। इसका परिणाम यह हुआ कि सिंधुघाटी सभ्यता के पुरातत्व अध्ययन में व्यवधान उपस्थित हुआ।

उन्होंने यह भी झूठ प्रसारित किया था कि आर्यों ने बाहर से आकर द्रविड़ों को मारा और कब्जा कर लिया था। इस कैलेण्डर में मैवसमूलर, आर्थर दे गोेविनायक और हौस्टन स्टीवर्ट, चैबर लेन जैसे अंग्रेजी स्कालरों के नामों का भी विशेष उल्लेख किया गया है, जिन्होंने आर्य-द्रविड़ संबंधी झूठे एवे तथ्य हीन कथानक को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया था। इसमें महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ‘आर्य’ शब्द को यूरोप ने जिस ढंग से प्रचारित-परिभाषित किया, उसके परिणाम स्वरूप वहीं कत्ले आम का कारण बना और हिटलर ने इसी परिभाषा के आधार पर भीषण रक्तपात किया।

ऋग्वेद का सूक्त 1.164.46 विविधता में एकता के सिद्धान्त को आगे बढ़ाता है, यम के रूप में मृत्यु के सिद्धान्त का भी प्रतिपादन करता है। जबकि पश्चिम के देशों को पितृसत्तात्मक रूप से देखा जाता रहा है। यदि बाहर से कोई आर्य आता और बस गया होता तो उसकी सोच भी वैसी ही रहती।

इसी विषयान्तर्गत स्वामी विवेकानन्द का भी उल्लेख है। उन्होंने कहा था कि विदेशी विद्वान ये कहते हैं कि बाहरी भूमि से आर्य यहाँ आये और यहाँ के मूल निवासियों की जमीनें छीन लीं, उन्हें अपने अधीन करके भारत में बस गये – ये बेतुका है, मूर्खता भरी बातें हैं। उन्होंने दुःख जताया था कि हमारे छात्रों में इतना बड़ा झूठ फैलाया जा रहा है और भारतीय विद्वान इसके खंडन की परवाह नहीं कर रहे। उन्होंने पूछा था कि कि वेद के किस सूक्त में ऐसा लिखा है कि आर्य बाहर से आये? और आकर यहाँ के नगरों को तबाह किया? उन्होंने कहा था कि रामायण ठीक से पढ़ने वाला इस तरह का झूठ नहीं फैला सकता। उन्होंने आरोप लगाया था कि यूरोपीय ताकतें भारत में बने रहने के लिए ऐसा कर रहीं है।

कैलेण्डर में इस झूठ का भी पर्दाफास किया गया है कि कैसे पाश्चात्य विद्वान यह साबित करने का प्रयास कर रहे थे कि संस्कृति और ज्ञान-विज्ञान का प्रचार-प्रसार पश्चिम से पूर्व की ओर हुआ। पाश्चात्य अध्ययन ने भगवान शिव को गैर-आर्य देवता बताने की कोशिश की थी, जबकि वेदों में उनका अनेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है।

लेखक:- डाॅ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सुत्र:- 9424744170