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मानवता के उद्धारक स्वामी दयानन्द सरस्वती…

महर्षि दयानन्द मानवता के उद्धारक एवं धर्म व संस्कृति के उन्नयन कर्ता-प्रेरक महान आत्मा थे। वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी न्याय मार्ग से भटके नहीं। ऐसे महान धैर्यशाली व्यक्तियों के लिये ही महाराज मृतृहरि ने ‘निन्दन्तु नीति निपुणा यदि वा स्तुवन्तु पदं न धीराः।।’

नीति को जानने वाले लोग चाहे निन्दा करे, धन आये या जाये, मृत्यु अभी आजाये या चिरकाल के बाद आये, परन्तु धैर्यवान लोगों के पद न्याय के मार्ग से कभी विचलित नहीं होते। स्वामी दयानन्द सरस्वती सत्य और सात्विकता की प्रतिमूर्ति थे। सेवा ही उनका एक मात्र उद्देश्य था।

स्वामी दयानंद संस्वति के इन विचारों को जानकर आपकी भी बदल जाएगी जिंदगी - swami dayanand saraswati

उनका गहन अध्ययन और उनकी स्मरण शक्ति अलौकिक थी। सरल शब्दों में अत्यन्त कठिन तर्क पूर्वक बात को अपनी मधुर शैली के माध्यम से श्रोता के गले उतार देने की अदभुत क्षमता की सभी लोग सराहना करते थे। यही कारण है कि वैदिक धर्म के गौरव को पुनस्र्थापित करने में वे सफल ही नहीं हुये, वरन् अन्धविश्वासों को दूर कर लोगों में व्याप्त भीरूता को हटाने में वे कामयाब हुये।

यह उनकी ही घोषणा थी कि हिन्दू कहे जाने वाले आर्य लोग ही भारत के मूल निवासी हैं। आर्यों की संस्कृत भाषा-साहित्य विश्व का पुरातन साहित्य है। उन्होंने ऐसी घोषणा कर भारतीयों के मनोबल को उठाया। उन्होंने जातिप्रथा, सतीप्रथा, विधवा विवाह आदि कुरीतियों पर प्रहार करते हुये कहा कि ऐसी अनेकानेक कुरीतियों ने ही भारतीय समाज को कमजोर और कलंकित किया है।

महर्षि दयानन्द ने राष्ट्रीय स्वाभिमान को जगाते हुये विशुद्ध भारतीयता के महत्व को प्रतिपादित किया। उनका ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ नाम ग्रंथ अत्यन्त प्रभावी सिद्ध हुआ। उनका मानना था कि देश की एकता के लिये ‘हिन्दी भाषा को सर्वोच्च’ स्थान प्राप्त हो। वे चाहते थे कि उनके द्वारा लिखे गये ग्रंथ हिन्दी में ही पढ़े जावें।

स्वामी जी वेदों को ईश्वरीय कृपा मानते थे। वे यह भी मानते थे कि वेद का अध्ययन, पठन-पाठन सभी के लिये सुलभ हो। स्वामी दयानन्द भगवान श्रीकृष्ण को एक अलौकिक महापुरूष मानते थे। ‘सत्यार्थ- प्रकाश’ में वे लिखते हैं कि -देखो! श्रीकृष्ण जी का इतिहास महाभारत में अत्युत्तम है। उनका गुण, कर्म, स्वभाव और चरित्र धर्मात्माओं के समान हैं,

जिसमें कोई अधर्म का आचरण नहीं है। श्रीकृष्ण जी ने जन्म से मरणोपरान्त  कुछ भी अधर्म नहीं किया है। महर्षि दयानन्द ने राष्ट्रीय  स्वाभिमान को जगाया, विशुद्ध भारतीयता को अपनाने पर जोर दिया। अंधविश्वास और रूढ़िवाद  का स्थान-स्थान पर विरोध किया। उनका अध्ययन बड़ा व्यापक था।

‘भ्रान्ति-निवारण’ नाम पुस्तक में एक उल्लेख मिलता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्होंने तीन हजार गं्रथों का अध्ययन किया है। पंडित महेन्द्रपाल  (पूर्व नाम मौलवी महमूद अली) उनसे इतने  प्रभावित हुये कि उन्होंने बागपत की बड़ी मस्जिद जिसमें वे बड़े इमाम थे, आर्य समाज में आ गये। स्वामी जी द्वारा रचित ग्रंथ ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ से वे अत्यधिक प्रभावित थे।

वे सत्य का अनुसंधान करने और आडम्बरों से ऊपर उठने से देकर लोगों को प्रभावित करने के काम में जुट गये थे। प्रख्यात देशभक्त लाला हरदयाल, स्वयं ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ ग्रंथ के बारे में कहते हैं कि ‘‘इस महान ग्रंथ ने उनकी सारी विचारधारा में आमूल चूल परिवर्तन कर दिया। स्वजाति के सुप्तस्वाभिमान को जगाने वाला यह अद्वितीय ग्रंथ हैं।’’

आर्य समाज संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जीवन परिचय | Swami Dayanand Saraswati Biography in Hindi- Khulasaa.in

एक प्रश्न के उत्तर में स्वामी जी ने कहा था कि एक धर्म, एक भाषा और एक लक्ष्य बनाये बिना भारत का पूर्णहित और जातीय उन्नति होना मुश्किल है। वेदों के सम्बंध में उन्होंने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि – ‘‘मैं वेदों में कोई बात युक्ति-विरूद्ध या दोष को नहीं देखता और यही मेरा मत है।’’

वरिष्ठ लेख़क:-डाॅ. किशन कछवाहा
संपर्क सूत्र :- 9424744170