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यह युग रामराज्य का है

नि:संदेह यह अवसर उल्लास, आह्लाद, गौरव एवं आत्मसंतोष का है, सत्यजीत करुणा का है। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण में अवरोध विगत पांच शताब्दियों से सनातन हिंदू समाज की आस्थावान सहिष्णुता की कठोर परीक्षातुल्य था। आज उस परीक्षा के शुभ परिणाम का उत्सव मनाने का अवसर है। श्रीरामलला विराजमान की भव्य प्राण-प्रतिष्ठा से भारत की सांस्कृतिक अंतरात्मा की समरस अभिव्यक्ति का प्रतिमान सिद्ध होगा।

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण हेतु भूमिपूजन के बहुप्रतीक्षित अवसर पर सहज ही दादागुरु ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पुण्य स्मरण हो रहा है। मैं अत्यंत भावुक हूं कि हुतात्माद्वय भौतिक शरीर से इस अलौकिक सुख देने वाले अवसर के साक्षी नहीं बन पा रहे, किंतु आत्मिक दृष्टि से आज उन्हें असीम संतोष और हर्षातिरेक की अनुभूति अवश्य हो रही होगी।

ब्रितानी परतंत्रता काल में श्रीराम मंदिर के मुद्दे को स्वर देने का कार्य महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज ने किया था। वर्ष 1934 से 1949 के दौरान उन्होंने राम मंदिर निर्माण हेतु सतत संघर्ष किया। 28 सितंबर, 1969 को उनके ब्रह्मलीन होने के उपरांत अपने गुरुदेव के संकल्प को महंत अवेद्यनाथ जी महाराज ने अपना बना लिया, जिसके बाद श्रीराम मंदिर निर्माण आंदोलन के निर्णायक संघर्ष की नवयात्रा का सूत्रपात हुआ।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मार्गदर्शन, पूज्य संतों का नेतृत्व एवं विश्व हिंदू परिषद की अगुवाई में आजादी के बाद चले सबसे बड़े सांस्कृतिक आंदोलन ने न केवल प्रत्येक भारतीय के मन में संस्कृति एवं सभ्यता के प्रति आस्था का भाव जागृत किया, अपितु भारत की राजनीति की धारा को भी परिवर्तित किया। 21 जुलाई, 1984 को जब अयोध्या के वाल्मीकि भवन में श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन हुआ था, तो सर्वसम्मति से पूज्य गुरुदेव गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ जी महाराज को अध्यक्ष चुना गया।

तब से आजीवन श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति के महंत अवेद्यनाथ जी महाराज अध्यक्ष रहे। पूज्य संतों की तपस्या के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय वैचारिक चेतना में विकृत, पक्षपाती एवं छद्म धर्मनिरपेक्षता तथा सांप्रदायिक तुष्टीकरण की विभाजक राजनीति का काला चेहरा बेनकाब हो गया।

वर्ष 1989 में जब मंदिर निर्माण हेतु प्रतीकात्मक भूमिपूजन हुआ, तो भूमि की खुदाई के लिए पहला फावड़ा स्वयं पूज्य गुरुदेव महंत अवेद्यनाथ जी महाराज एवं पूज्य संत परमहंस रामचन्द्रदास जी महाराज ने चलाया था। इन पूज्य संतों की पहल, श्रद्धेय अशोक सिंघल जी के कारण पहली शिला रखने का अवसर कामेश्वर चौपाल जी को मिला। आज कामेश्वर जी श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के सदस्य होने का सौभाग्य धारण कर रहे हैं।

जन्मभूमि की मुक्ति के लिए बड़ा और कड़ा संघर्ष हुआ है। न्याय और सत्य के संयुक्त विजय का यह उल्लास अतीत की कटु स्मृतियों को विस्मृत कर, नए कथानक रचने, और समाज में समरसता की सुधा सरिता के प्रवाह की नवप्रेरणा दे रहा है।

सनातन संस्कृति के प्राण प्रभु श्रीराम की जन्मस्थली हमारे शास्त्रों में मोक्षदायिनी कही गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश सरकार इस पावन नगरी को पुन: इसी गौरव से आभूषित करने हेतु संकल्पबद्ध है। अयोध्या वैश्विक मानचित्र पर महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में अंकित हो और इस धर्मधरा में रामराज्य की संकल्पना मूर्त भाव से अवतरित हो, इस हेतु हम नियोजित नीति के साथ निरंतर कार्य कर रहे हैं।

वर्षों तक राजनीतिक उपेक्षा के भंवर जाल में उलझी रही अवधपुरी, आध्यात्मिक और आधुनिक संस्कृति का नया प्रमिमान बनकर उभरेगी। यहां रोजगार के नए अवसर सृजित हो रहे हैं। विगत तीन वर्षों में विश्व ने अयोध्या की भव्य दीपावली देखी है, अब यहां धर्म और विकास के समन्वय से हर्ष की सरिता और समृद्धि की बयार बहेगी।

निश्चित रूप से, पांच अगस्त को अयोध्या में आयोजित भूमिपूजन/शिलान्यास कार्यक्रम में सहभागिता हेतु प्रभु श्रीराम के असंख्य अनन्य भक्तगण परम इच्छुक होंगे, किंतु वर्तमान वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा। इसे प्रभु इच्छा मानकर सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। भूमिपूजन/शिलान्यास न केवल मंदिर का है, वरन एक नए युग का भी है। यह नया युग प्रभु श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण का है। यह युग मानव कल्याण का है।

प्रभु श्रीराम का जीवन हमें संयम की शिक्षा देता है। इस उत्साह के बीच भी हमें संयम रखते हुए वर्तमान परिस्थितियों के दृष्टिगत शारीरिक दूरी बनाए रखनी है, क्योंकि यह भी हमारे लिए परीक्षा का क्षण है। अत: मेरी अपील है कि विश्व के किसी भी भाग में मौजूद समस्त श्रद्धालु जन चार एवं पांच अगस्त, 2020 को अपने-अपने निवास स्थान पर दीपक जलाएं, पूज्य संत एवं धर्माचार्यगण देवमंदिरों में अखंड रामायण का पाठ करें एवं दीप जलाएं। पूर्ण श्रद्धाभाव से प्रभु श्रीराम का स्तवन करें। प्रभु श्रीराम का आशीष हम सभी पर बना रहेगा।

श्रीराम जय राम जय जय राम!

योगी आदित्यनाथ

(लेखक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं)