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लक्ष्य से भटकता किसान आंदोलन…

कहते हैं झूठ के पैर नहीं होते वही शरारत भरा दुष्प्रचार बाहों उछाल भरने लगता है। पंजाब में रिलायंस जिओ के 16 सौ से अधिक मोबाइल फोन टावर ऐसे ही शरारत भरे दुष्प्रचार के चलते निशाना बनाकर तोड़-फोड़ किए गए इस दुष्प्रचार में कहा जा रहा था कि नए कृषि कानूनों से असली फायदा अडाानी अंबानी को होने वाला है। अडाानी अंबानी के खिलाफ योजनाबद्ध तरीके से हर आम सभा और ट्वीट के जरिए आग बनने का काम कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा किया गया।

यह तथ्य भी सामने आ गया कि यह केवल और दुष्प्रचार ही है । अंबानी की कंपनियां किसानों से सीधे अनाज खरीदते हैं न ही अडानी की कंपनियां । यह भी दुष्प्रचार का ही एक हिस्सा था की नए कानूनों के लागू हो जाने के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य के मामले को विराम दें दिया जाएगा अर्थात यह व्यवस्था ही समाप्त हो जाएगी । इतना ही नहीं किसानों की जमीन अभी छिन जाएगी।

 

इसी प्रकार की बेसिर-पैर की बातों को लेकर देश का विपक्ष किसानों को बरगलाकर दिल्ली की कड़कती ठंड में आंदोलन जारी रखवाकर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने की जुगत बनाए हुए हैं । जो किसान नहीं है खेती की ए. बी. सी. डी. भी नहीं जानते वे किसानों के हित चिंतक बने हुए हैं यह तो आश्चर्य जनक विषय है कि किसान नेता ही किसानों को गुमराह करने में अगुवाई कर रहे हैं

यह एक ऐसा विचित्र किसान आंदोलन है जिसके कारण तमाम दिल्लीवासी एवं विभिन्न कार्यों से दिल्ली जाने वाली जनता परेशानी झेलने को बाध्य है एक और जनता परेशान है दूसरी ओर राष्ट्रीय संपदा को नुकसान पहुंचाया जा रहा है किसान हित के नाम पर नाकेबंदी कर दिल्ली को बंधक बना रखा है ।

इस किसान आंदोलन को लेकर कनाडा में भी प्रदर्शन हुए इनमें उन सिखों की बड़ी संख्या है जो सिखों के लिए ‘स्वतंत्र खालिस्तान’ की मांग करते रहते हैं । कनाडा के प्रधानमंत्री टूड़ान के यह वोट बैंक हैँ समर्थक हैं । भारत की दृष्टि से ऐसे तत्व जो अलगाववादी स्वतंत्र खालिस्तान की मांग करते हैं वह देश के दुश्मन हैं कनाडा के प्रधानमंत्री टूडान भारत में चल रहे किसान आंदोलन पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी जिसे भारत के विदेश सचिव ने आंतरिक मामलों में स्पष्ट हस्तक्षेप मानते हुए अपना विरोध दर्ज कराया था।

एमएसपी और तीनों कानूनों की वापसी ही किसान आंदोलन के प्रमुख मुद्दा बन गए हैं भारत सरकार आश्वासन देती रही और किसान संगठन उस को खारिज करते रहे ऐसे 40 से अधिक दिन बीत चुके हैं । किसान गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालकर दिल्ली में प्रवेश करने पर आमादा है । अब आंदोलन किस दिशा में जाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता ।

आंदोलन स्थल पर शरजील इमाम उमर खालिद समेत कई ऐसे चेहरों के चित्र लगाए गए थे जिनके खिलाफ देशद्रोह या अपराध की अन्य धाराओं के अंतर्गत मामले अदालतों में चल रहे हैं और वे जेल में बंदी हैं आंध्र प्रदेश के बरबर राव वामपंथी चिंतक और कवि रहे हैं सिंधु और टिकरी बॉर्डर पर इन चोरों की रिहाई के नारे अक्सर गूंजते रहते हैं रिहाई का फैसला तो अदालत को करना है।

इसका किसान आंदोलन से क्या लेना देना है यहां आंदोलन के भटकाव का सबूत है कुछ सवाल वामपंथी दखल के कारण जी उठे हैं अब सवाल यह भी है कि पंजाब हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश जीतो भारत नहीं है देश में 28 राज्य हैं और सात केंद्र शासित प्रदेश क्या इन सभी क्षेत्रों के किसान आंदोलन कर रहे हैं सभी किसान आंदोलन से सहमत नहीं है।

किसान नेताओं का अड़ियल रवैया अब जनता ने भी चर्चा का विषय बन गया है इस कारण सर्वोच्च न्यायालय का भी चिंतित होना स्वाभाविक है यह किसान इसके बावजूद खड़े हुए हैं जब केंद्र सरकार कृषि कानूनों में संशोधन को तैयार है सरकार कृषि कानूनों की खामियों पर विचार कर रही है करने को तैयार हैं लेकिन किसान आंदोलन किसान संगठन ही इससे पीछे हट रहे हैं।

तात्पर्य है कि इन आंदोलनरत किसानों के नेताओं का इरादा समस्या का समाधान नहीं वर्णन सरकार को नीचा दिखाना है उनके द्वारा अड़ियल रवैया ही परिचय ही नहीं दिया जा रहा है बल्कि धमकी भरी भाषा कभी प्रयोग किया जा रहा है सरकार पर दबाव बनाने की नीति के तहत रिहर्सल के नाम पर ट्रैक्टर परेड निकालकर लोगों को परेशान करने का कृत्य किया गया अब गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने की ही धमकी दी जा रही है।

राष्ट्रहित में गतिरोध अनिश्चित काल तक जारी रखा जाना ठीक नहीं और सहमति बनना जरूरी है यद्यपि सरकार का दावा है कि नए कृषि कानून भारतीय कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगे और किसानों को समृद्ध बनाएंगे सरकार का यह भी दावा है कि कुछ राज्यों से किसानों ने इनमें कृषि कानूनों को समर्थन किया है।

वही विपक्ष और कतिपय किसान नेताओं का यह दुष्प्रचार है कि नए कृषि कानून लागू हो जाने के बाद न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था तो खत्म हो ही जाएगी किसानों की जमीने भी छिन जाएगी तथाकथित किसान आंदोलन के बहाने की जा रही देश विरोधी गतिविधियों और की जा रही सियासत के चेहरे अब क्रमशः सामने आने शुरू हो गए किसानों के बीच आंदोलन के बहाने विपक्ष तो अपनी राजनीति को धार धार बनाने में लगा हुआ है।

वही कतिपय किसान संगठनों की राजनीतिक पृष्ठभूमि भी सामने आने लगी है मुख्यतः पंजाब और हरियाणा तक सीमित आंदोलन को लेकर सरकार पूरी संवेदनशीलता से आगे बढ़ रही है।

आंदोलन स्थल पर भाजपा को वोट ना देने की शपथ दिलाने 2024 तक आंदोलन जारी रखने किसी भी तरह हरियाणा में सरकार गिराने जय श्री बातें चलने लगी है ऐसी ही बातें बातें सी ए ए नागरिक संशोधन कानून के खिलाफ आंदोलन के समय की जा रही थी सरकार का नैतिक बल इस बात को लेकर बढ़ गया है कि किसान संगठन या तो मध्यस्तान की बात मान रहे हैं और ना ही कोर्ट के फैसले को लेकर सकारात्मक हैं कोर्ट के कमेटी बनाने के सवाल पर भी किसान संगठनों का रूप उल्टा ही है।

डॉ किशन कछवाहा, जबलपुर

(लेखक महाकोशल संदेश के संपादक हैं)