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वामपंथ एक बीमारी इसका इलाज ढूंढ़ना होगा…

विश्व में आज मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी राजनीति या अप्रासंगिक हो चुकी है, जहां इस की उत्पति हुई थी उन यूरोपीय देशों में भी अब इसका नाम लेने वाला भी कठिनाई से मिलता है, लेकिन भारत में आज भी इसका न केवल प्रभाव है बल्कि धीरे धीरे ही सही फल-फूल भी रहा है। भारतीय राजनीति ही नहीं बल्कि शिक्षण संस्थानों में भी वामपंथ का प्रभाव आज भी है इस चिंताजनक स्थिति के कारण विविध हैं, जिनमें कुछ हमारा दुर्भाग्‍य भी है और कुछ राजनीतिक चूक भी, विभिन्न बिंदुओं को पुर्णतः समझे बिना इस बीमारी का उपचार होना कठिन है।

एक बात तो स्पष्ट है कि वामपंथ एक भूमंडलीय बीमारी है, मार्क्‍सवादी राजनीति के सभी दावों की पोल खुल जोने के बाद भी आज कुछ स्थानों पर वामपंथियों ही नहीं वरन उसकी घातक से घातक अनुशंसाओं को भी आदर से देखा जाता है, इसका मुख्य कारण यही है कि वामपंथियों को निर्धन, दुर्बल लोगों के सहायक के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है, चाहे व्यावहारिक परिणाम में वह दुर्बलों की और दुर्गति करने वाले ही क्यों न हो, किंतु जब कोई विचार वामपंथी शब्दजाल में आता है, तो अच्छे-अच्छे समझदार सहानुभूति में उसे स्वीकार करते हैं, इसी को भूगोल के ‘कोरियोलिस इफेक्ट’ के रूपक से रूसी लेखक अलेक्जेंडर इसेविच सोलजेनित्सिन ने सटीक रूप में बताया था।

दरअसल, महान रूसी लेखक सोलजेनित्सिन ने कहा था कि जैसे पूरी पृथ्वी पर कोरियोलिस इफेक्ट एक समान है, और नदियों का बहाव इस तरह होता है कि सदैव दाहिना किनारा कटता और टूटता है, जबकि बाढ़ का पानी बाएं किनारे पर फैलता है, उसी तरह धारती पर लोकतांत्रिक उदारवाद के सभी रूप दक्षिणपंथ पर चोट करते हैं और वामपंथ को गले लगाते हैं, उनकी सहानुभूति सदैव वामपंथ के साथ रहती है, उन के पांव केवल बाईं दिशा में चलने को प्रस्तुत रहते हैं, उनके व्यस्त सिर सदैव वामपंथी तर्कों को सुनने के लिए हिलते हैं- किंतु यदि वे दक्षिणपंथ की ओर से एक बात सुनने के लिए कोई कदम उठाएं तो लज्जा अनुभव करते हैं।

हमें यह समझना होगा कि सदैव ही वामपंथ को अन्य सभी विचारधाराओं की अपेक्षा अच्छा बताया गया है, चाहे इसके लिए जैसे भी प्रयास किए गए हों, यह सभी जानते हैं कि भारत की आज़ादी में वामपंथ का कितना योगदान है व चीन द्वारा भारत पर किए गए आक्रमण पर वामपंथी विचारधारा के लोग किस ओर थे, लेकिन फिर भी वामपंथ को सर्वश्रेष्ठ साबित किया गया।

भारत में वामपंथी प्रभाव बढ़ने के अनेकानेक कारण हैं, चूंकि आज़ादी से पूर्व हिंदुस्तान में अंग्रेजों का शासन था, जिस कारण देश की जनता को शिक्षा के नाम पर विदेशी शिक्षा ही प्राप्त हुई जिसने भारतीय दर्शन, चिंतन, परंपरा एवं संस्कृति को हीन तथा पश्चिमी चिंतन को सर्वश्रेष्ठ प्रचारित किया गया था। चूंकि मार्क्‍सवादी, वामपंथी विचारधाराएं भी पश्चिमी सभ्यता की उत्पति हैं, अत: उन्हें भी महत्व दिया गया, उन्नीसवी-बीसवीं सदी में हमारे देश के अनेक नेता और विद्वान पढ़ाई के लिए विदेश गए और वहां के प्रचलित फैशन तथा फ़ैशन के रूप में ही वामपंथ से प्रभावित हो कर भारत लौटे।

भारतीय जनमानस को विदेशी शिक्षा से प्रभावित करने के बाद देश के राष्ट्रीय व धार्मिक चिंतन को प्रभावित करने और क्रांतिकारियों को मार्क्‍सवाद की ओर झुकाने का प्रयास अंग्रेजी सत्ता द्वारा किया गया, इसी कड़ी में अंग्रेजों ने जेल में भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारी को मार्क्‍सवादी पुस्तक पुस्तिकाएं पढ़ने के लिए दे कर भारतीय राष्ट्रवाद को क्रांतिकारी परंपरा से दूर करने के हर संभव प्रयास किए गए, अनुभव तथा दूरदृष्टि रखने वाले अंग्रेज जानते थे कि हिंदुस्तान की ऐतिहासिक प्रेरणाएं उनकी औपनिवेशिक सत्ता के लिए घातक हैं, इसलिए उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद को विभाजित और रोगग्रस्त करने के लिए मार्क्‍सवादी कीटाणुओं को फैलाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी, यहाँ यह समझना महत्वपूर्ण है कि आज़ादी से पूर्व तक भारतीय कम्युनिस्टों का संचालन व निर्देशन ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी के माध्‍यम से होता था, जबकि आज़ादी के बाद किसी न किसी तरीके से वामपंथी गुटों को फंडिंग विदेशों से ही होती रही है।

हिंदुस्तान का धर्म के आधार पर बंटवारा करने तथा पाकिस्तान बनवाने में यहाँ के कम्युनिस्टों की महत्वपूर्ण भूमिका को भी उसी पृष्ठभूमि में समझा जाना चाहिए, भारतीय राष्ट्रवाद को विखंडित करने में ब्रिटिश साम्राज्यवाद, इस्लामी साम्राज्यवाद तथा कम्युनिस्ट साम्राज्यवाद तीनों ने ही अलग-अलग लेकिन एक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए काम किया था, हालांकि इस महत्वपूर्ण तथ्य को देश की जनता से स्वतंत्र भारत में हमेशा छिपाया गया, इसी कारण हमारी युवा पीढ़ी इतिहास की उन बातों को नहीं जानती जो वास्तव में सच थी, और यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि स्वतंत्र भारत के पहले प्रधाानमंत्री ही कम्युनिस्ट समर्थक थे, महात्मा गांधाी ने अपने निजी प्रेम व मोह में जवाहरलाल नेहरू को अकारण, अपनी प्रतिष्ठा का प्रयोग कर अपना ‛उत्तराधिकारी’ घोषित कर दिया, जबकि नेहरू के विचार, नीति, चरित्र आदि सब गांधी से मेल नहीं खाते थे, नेहरू जी के विचार वामपंथ के विचारों से मेल खाते थे, इसका प्रमाण उनका संपूर्ण लेखन व भाषण हैं।

वरिष्ठ लेखक सीताराम गोयल की पुस्तक जेनिसिस एंड ग्रोथ ऑफ नेहरूइज्म के अनुसार नेहरूजी के नेतृत्व में बल-पूर्वक, सत्ता के दुरूपयोग, सेंशरशिप, प्रलोभन, प्रोत्साहन या हतोत्साहन एवं अलोकतांत्रिक तरीकों से देश में मार्क्‍सवाद- लेनिनवाद तथा सोवियत संघ के प्रति आलोचनात्मक विमर्श को रोका गया।

कुल मिलाकर देखें तो इस तरह छल, बल, प्रपंच व सत्ता के दुरूपयोग आदि सब प्रकार से इसकी पूरी व्यवस्था की गई कि वामपंथी गुटों के कुकर्मों को आम जनता न जान सके और वामपंथ के प्रति सहानुभूतिशील हो। इस पूरी प्रक्रिया में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण रहा सरदार पटेल का आकस्मिक निधन जिसके बाद नेहरू का हाथ रोकने वाला कोई भी नहीं था, अन्य राष्ट्रवादी या तो किनारे कर दिए गए या उन्होंने चुप्पी साधा ली, इस परिस्थिति में नेहरु ने केवल कम्युनिस्ट विचारधारा, बल्कि कम्युनिस्टों को भी वैचारिक-राजनीतिक रूप से ऊंचा स्थान दिलाया। चूंकि वह काल स्वतंत्र भारत की नीतियों-परंपराओं की स्थापना का भी था, इसलिए वामपंथी विचारों, भ्रमों, नारों आदि को आधिकारिक रूप से जो प्रथम स्वीकृति मिली, उसने कालांतर में स्थापित मूल्यों का स्थान भी पा लिया, और उसका दबदबा आज भी चला आ रहा है।

इस प्रक्रिया को सत्ता का साथ मिलने से यह सुविधा हुई कि गैर-वामपंथी, राष्ट्रवादी विचारों वाले लोग, संगठन और संस्थाओं ने उसके घातक परिणामों को नहीं समझा, इसलिए कोई कड़ा, संगठित विरोध नहीं किया, कुछ लोग तो उल्टे वामपंथियों द्वारा किए गए प्रचारों को सत्य मान बैठे, यही कारण था कि, वामपंथी विचारों, उसके घातक नारों व कार्यों को जनता द्वारा आदर किया जाने लगा।

बहरहाल, देखें तो इन्हीं संपूर्ण दुर्भाग्यों का परिणाम था कि जब सभी विकसित, सभ्य देशों में समय के साथ वामपंथ के सिद्धांत व व्यवाहर की पोल खुलने लगी, तब भी स्वतंत्र भारत में उसके प्रति शिक्षित लोगों में भ्रम बना रहा, इस बीच नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक के दौर में वामपंथी विचारधारा ने शैक्षिक, वैचारिक सहित अनेकों संस्थानों में गहरी घुसपैठ बनाई। आज स्थिति यह है कि देश में वामपंथ तब भी आगे बढ़ता जा रहा है जबकि उसके द्वारा ऐसे कई कार्य किए जा रहे हैं जो कि देश के लिए घातक बीमारी से कम नहीं है, यदि इस बीमारी का शीघ्र समाधान नहीं किया गया तो इसके विनाशक परिणाम हो सकते हैं।