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वुहान वायरस, बायोलाजिकल युद्ध , जमाख़ोर और इनसे लड़ता संगठित भारतीय समाज:

हम इस सदी की सबसे बड़ी मानव निर्मित विपत्ति के मध्य में खड़े हैं , अगर सामरिक दृष्टिकोण से कहें तो यह एक “ बायो लॉजिकल युद्ध “ है , इस विभीषिका ने हर एक के किसी ना किसी घनिष्ठ को ग्रास में ले लिया है ,

सशस्त्र सेनाओं ने इसे अब तक केवल अनुशासन के कारण क़ाबू में रखा , क्यूँकि वे भी मानसिक रूप से किसी भी बायोलोजिकल युद्ध के लिए तैयार रहते हैं , और सैनिकों अफ़सरों का ये जज़्बा , की मास्क नहीं उतारना है क्यूँकि “CO साहब ने ऐसा कहा है“ ने अनगिनत सैनिकों को इस बीमारी से बचा के रखा है ।

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इस अत्यंत निराशापूर्ण समय में भी कई समाज सेवी निस्वार्थता के भाव से सतत सेवारत हैं । मेरे जानकारी में कई समाज सेवी डाक्टर जो अस्पतालों के मालिक हैं , उन्होंने ज़िला प्रशासन को अपने अस्पताल दे दिए हैं , वे चाहते तो इस समय पैसे कमा सकते थे ,

मगर निराशावादी विपत्ति सकारात्मक प्रयासों का प्रचार नहीं करती , इसलिए उनके प्रयास पर कोई सहानुभूति नहीं देगा। मगर अनेक जमाख़ोर , ऐसी ही विभीषिका की बाट जोहते मानव रूपी गिद्ध , इस विपत्ति को अभी एक अवसर मानकर अपनी ख़ाली तिजोरियाँ भर रहे हैं , या सत्ता के आगामी अवसर के लिए नींव तलाश रहे हैं ।

उनके कृत्य बिना संज्ञान के नहीं रह पाएँगे , कबीर ने कहा है “दुर्बल को ना सताइए , जा की मोटी हाय“ । जमाख़ोरी केवल सामानों की नहीं हो रही , सुविधाओं की भी हो रही है , नक़ली मरीज़ ग़ैर सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों पर क़ाबिज़ हो रहे हैं , ऊँची बोली लगाते ही बिस्तर ख़ाली हो जा रहा है ,

इस तरह बिचौलियों का गिरोह भी सक्रिय है , जो नक़ली दवाओं को बाज़ारों में कालाबाज़ारी के माध्यम से बेच रहे हैं , दिल्ली क्राइम ब्रांच ने उत्तराखंड के गिरोह को पकड़ा है , जो “रेमडेसिविर“ के नक़ली पानी भरे इंजेक्शन कालाबाज़ारी करके मरीज़ों के रिश्तेदारों को बेच रहा था ,

निश्चित ही इसके कारण भी कई लोगों को गम्भीर परिणाम भुगतने पड़े होंगे , मगर इस विपत्ति में जो भी विकल्प मिल रहा है , लोग उसके पीछे जाने मजबूर हैं , भले ही उसकी वैधता आशंकित क्यूँ ना हो । पारिभाषिक रूप से तो नहीं मगर प्रतिलक्षित रूप से यह एक प्रकार का “बीयोलोजिकल युद्ध“ है , जिसका पुराना इतिहास है ,

1347 में मंगोल लुटेरों ने प्लेग वाले शवों को कफ़ा (ब्लेक सी पोर्ट) की दीवारों पर रख दिया था , जिसने यूरोप की एक तिहाई आबादी ख़त्म कर दी थी । 1710 में रुस ने भी इसी तरह स्वीडिश सेनाओं से लड़ते समय तेलीन , एस्टोनिया में प्लेग वाले शव रख दिए थे । अमेरिका में ब्रिटेन ने भी वहाँ के रेड इंडियन के साथ भी चेचक वाले कम्बलों का प्रयोग 1763 में किया था ।

प्रथम विश्व युद्ध हो तब जर्मन सेनाओं ने या जापान ने इस बायोलॉजिकल युद्ध का उपयोग किया है , 1925 के जेनीवा प्रोटोकोल ने बायोलोजिकल व रासायनिक हथियारों पर रोक लगाई है , मगर तानाशाह सरकारें निरंतर इन हथियारों ने गुप्त निर्माण में संलग्न हैं । 1975 से BWC बायोलोजिकल वेपन कन्वेशन प्रभाव में है ,

जो UN के साथ मिलकर इन हथियारों के निर्माण व उपयोग के लिए निगरानी रखते हैं , मगर वुहान वायरस पर WHO व UN दोनों ने जिस प्रकार की चुप्पी साधी है , वो इस तरह के प्रोटोकोल व कन्वेंशन की प्रतिबद्धता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है । सीरिया में आज भी केमिकल हथियारों का प्रयोग हो रहा है ,

इन केमिकल व बायोलॉजिकल हथियारों के आतंकवादियों तक पहुँच को नकारा नहीं जा सकता , इसी तरह चीन भी , विश्व में अपनी गिरती साख , लुढ़कती अर्थव्यवस्था और विफल होते OROB (एक रोड एक बेल्ट) की निराशा को छुपाने वुहान वायरस का पटापेक्ष कर सकता है , अचंभित नहीं करता ।

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चीन इस वुहान वायरस का निर्माता है इस पर अब कोई विवाद नहीं है , कल ही विश्व के चुनिंदा वैज्ञानिकों ने WHO को इसके उत्पत्ति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की माँग की है , महत्वपूर्ण आँकड़ों को चीन ने छुपाया है , चीन से होंकोंग भागे कई पत्रकार और वैज्ञानिक भी इस बात की पुष्टि कर चुके हैं,

की इस वायरस का वुहान लेब में हो रहे चमगादड़ के प्रयोगों से सम्बंध है और यह भी की चीन के पास इसकी वैक्सीन पहले से मौजूद थी , मगर उसने वृद्ध जनसंख्या भार को कम करने इसे विलम्ब से बाज़ार में बाहर किया , एक और बात की PLA  (चीनी सेना) के एक भी बड़े अधिकारी के इस से प्रभावित होने की कोई रिपोर्ट नहीं आई है ।

इसे बायोलॉजिकल युद्ध मानने कई आधार अब धीरे धीरे स्पष्ट होते जा रहे हैं , भारत इस युद्ध पर क़ाबू भी पा लेगा मगर जो “कोलेट्रल हानि“ हो चुकी है , या होने वाली है उसकी कड़वी यादें लंबे समय तक रहने वाली हैं । प्रशासन या सरकार पर निष्क्रियता या अक्षमताओं का आरोप लगेगा , लगना भी चाहिए मगर साथ में ये भी ना भूलें की ये युद्ध अभी तक टला नहीं है ,

इस युद्ध को शारीरिक नहीं मानसिक रूप से भी जीतना ज़रूरी है , आँकड़े बताते हैं , की अगर फ़्रंट लाइन वर्कर व स्वास्थ्य सेवाओं में लगे स्वयमसेवी व शासकीय संसाधनों के साथ खड़े नहीं होंगे तो , उनके परिवारों को कौन सम्हालेगा , उन्होंने पहली वेव के साथ ही कई लोग खोए हैं , मगर फिर भी वो सतत सेवाओं में लगे हैं ।

केवल आगामी 14 दिन , इस वायरस की विभीषिका से अगर हम बच जाते हैं , तो भयानक स्तिथि को टाल सकते हैं , इस विपत्ति के बाद , भारत एक बड़े स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार की ओर कदम बढ़ाएगा , जैसा प्रसिद्ध भविष्यवाणी कर्ता नास्त्रे दमस ने कहा था , तीसरा विश्व युद्ध होगा , दो शक्तियों के बीच (अमेरिका व चीन) व भारत निर्णायक सिद्ध होगा ,

आज जिस तरह भारत ने वैक्सीन निर्माण में अग्रणी होकर , पूरे विश्व को अपनी प्रतिबद्धता और परिश्रम को प्रदर्शित किया है , वो व्यर्थ नहीं जाएगा. जो भी इस विपत्ति के महासमर में कालग्रसित हो गए , उन सभी के प्रति अनंत संवेदनाओं के साथ अंधेरा छँटेगा , सूरज निकलेगा , हम संगठित होकर इस विपत्ति पर विजय पाएँगे।

लक्ष्मण राज सिंह मरकाम
(लेखक के व्यक्तिगत विचार)