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सुरों पर राज करने वाले: पंडित जसराज…

सुरों पर राज करने वाले: पंडित जसराज…

एक शास्त्रीय आध्यात्मिक स्वर जो उगते सूर्य की लालिमा दिए श्रोताओं के हृदय आकाश में छा जाता हैं, जो प्राणवायु की तरह अंत:करण में स्वच्छंद होकर प्रवाहित होने लगता हैं और मनरुपी मयूर बनकर श्री चरणों में नृत्य करने लगता है….. मधुराधिपति मधुरम मधुरम।

ऐसा स्वर जिसकी गायकी में,मूर्छनाओं में, खयालों में, ठुमरियो में, भजनों में, साक्षात् माँ वीणापाणी जी का आशीर्वाद प्रवाहित होता है।

ऐसा स्वर जो संघर्षों की दशकों की यात्रा में निखर कर स्वर मार्तंड बन गया और भारतीय शास्त्रीय संगीत के संसार में 28 जनवरी 1930 को पं.मोतीराम के घर (हिसार हरियाणा में) जसराज के नाम से उदित हुआ ।

स्वर का ज्ञान माँ की कोख में ही पिता की छाया बनकर जन्म से पूर्व ही रक्त वाहिकाओं में दौड़ रहा था हृदय भी जैसे ताल और लय में धड़कता था और अपने पिता की थाती को संजोने “मेवाती घराने” की संगीत श्रृंखला को आगे बढ़ाने ,आपने अपनी संगीत यात्रा ताल से स्वर की ओर 14 वर्ष की अवस्था में प्रारंभ की ।

यह यात्रा संकल्पित यात्रा थी।1945 में लाहौर में पंडित कुमार गंधर्व के संगीत कार्यक्रम में तबला वादन करने के पश्चात दूसरे दिन जब उनके भाई मणिराम से पंडित अमरनाथ जी भेंट करने आए तो उन्होंने पंडित गंधर्व जी की गायकी में कमियाँ बताते हुए अपने विचार रखें ।

तब तबला वादक जसराज जी ने उनकी बातों का खंडन किया इससे रुष्ट होकर पंडित अमरनाथ जी ने कहा- “तुम मरा हुआ चमड़ा पीटते हो तुम्हें राग दरबारी का क्या ज्ञान”? बस फिर क्या था जसराज जी ने संगीत में विशारद होने तक अपनी केस ना काटने का संकल्प ले डाला।

एक तो उस समय सारंगी और तबला वादन को संगीत समाज में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त नहीं था उस पर यह कटु शब्द यहाँ से जसराज की स्वर यात्रा प्रारंभ हो गई ।मात्र 4 वर्ष की आयु में पिता विख्यात संगीतज्ञ पंडित मोतीराम जी की मृत्यु के पश्चात बड़े भाई महामहोपाध्याय पंडित मनीराम ने ही जसराज जी का लालन-पालन किया...

और उनके संकल्प को साकार करने हेतु बड़े भाई ने मेवाती घराने के दिग्गज संगीतज्ञ पंडित महाराणा जयवंत सिंह वाघेला और आगरा के स्वामी वल्लभदास जी के कुशल मार्गदर्शन में संगीत शिक्षा पूर्ण कराई।अब पंडित जसराज जी की संगीत रश्मियाँ भारत ही नहीं विश्व के कई महाद्वीपों तक फैल गई।

आपके कंठ में उत्कृष्ट स्वर विस्तार करने की क्षमता थी ।आप साढ़े तीन सप्तक तक स्वरों को उनकी गहराई और पवित्रता के साथ गाते थे। गायन के प्रति समर्पण पंडित जसराज को नित नए प्रयोग करने के लिए प्रेरित करता ।

एक ऐसा ही प्रयोग जिसके कारण संगीत संसार में आप जुगलबंदी के उपन्यासकार के रूप में स्थापित हुए वह था जसरंगी जुगलबंदी, इसमें स्त्री और पुरुष दोनों ही अलग-अलग रागों में एक साथ गाते। अबीरीतोड़ी और पाटदीपकी मैं किया गया प्रयोग अद्भुत ,अप्रतिम, अद्वितीय प्रयोग रहा।

एक ओर बेगम अख्तर की गाई गजल- दीवाना बनाना है तो….. ने बचपन से ही आपको संगीत गायन के प्रति आकर्षित किया तो वहीं दूसरी ओर विशिष्ट संगीतज्ञ आपके पिता स्वर्गीय श्री मोतीराम जी की स्वर साधना का वरदान आपको मिला हुआ था। आपने विशुद्ध शास्त्रीय संगीत ,अर्ध शास्त्रीय संगीत दोनों में गायकी बनाए रखी।

राग बसंत, भैरव, अहीर भैरव , तोड़ी ऐसी कितनें ही रागों में आपने संगीत की विशुद्ध गायकी जैसे खयाल, ठुमरी, दादरा, धमार की साधना करते हुए बाबा श्याम मनोहर गोस्वामी के सानिध्य में अर्ध शास्त्रीय संगीत के साथ हवेली संगीत पर अनुसंधान कर कई नवीन बंदिशों को तैयार किया ।आपकी मंदिरों में अर्ध शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुतियाँ अवर्णनीय है।

अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ IAU ने 11 नवंबर 2006 को मंगल और बृहस्पति के बीच खोजे गए हीन ग्रह 2006 VP32 (संख्या 300 128) को “पंडित जसराज” नाम देकर उनकी संगीत साधना को सम्मानित किया।

80 वर्ष की आयु में आपके संगीतमय आभामंडल से अंटार्कटिका के दक्षिणी ध्रुव पर आपकी संगीत प्रस्तुति के पश्चात् आप पहले भारतीय हुए जिन्होंने सातों महाद्वीपों में आपनी प्रस्तुति देकर संगीत की सुरसरिता प्रवाहित की।

पंडित जसराज के जीवन पर “जसराज से रसराज” नामक एक पुस्तक लिखी गई जिसकी कलमकार है सुनीता बुद्धिराजा ।

भारत सरकार ने भी संगीत के सभी उत्कृष्ट सम्मानों से आपको अलंकृत किया पद्म भूषण, पद्म विभूषण , पद्मश्री , संगीत नाटक अकादमी, मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार, लता मंगेशकर पुरस्कार ऐसे अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित संगीत मार्तंड पंडित जसराज की संगीत साधना संघर्ष से उत्कर्ष की ओर बढ़ी और 17 अगस्त 2020 को पुष्य नक्षत्र के दिन संगीत के आकाश में सदा के लिए स्थिर हो गई।