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अंग्रेजों से कहा था- न धर्म बदलेंगे न पेंशन लेंगे, तोप के सामने बांधकर उड़ा दो

गोंडवाना साम्राज्य में रानी दुर्गावती के बाद उनके वंशज राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ऐसे शासक के रूप में सामने आए जो आताताइयों से कभी डरे नहीं। रानी दुर्गावती ने जहां मुगलों से लड़कर अपने प्राण न्यौछावर किए वहीं राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ ने अंग्रेजोकी गुलामी को न स्वीकार कर देश की आजादी मेंअपना बलिदान दिया। देखा जाए तो 1857 की क्रांति में सबसे पहले किसी रजवाड़ा से अगर किसी ने बलिदान दिया है तो वह हैं राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह। देखा जाए तो जबलपुर देश का केंद्र बिंदु तो है ही आजादी की लड़ाई मेंभी शहर ने क्रांति की अलख जगाई जो पूरे देश में फैली। राजा और कुंवर के बलिदान के बाद अंग्रेजों के खिलाफ पूरे में देश मेंमोर्चा खोला गया।

18 वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में भारत की राजनीतिक परिस्थितियोंमेंव्यापक परिवर्तन आया और मराठाओं ने पेशवा केनेतृत्व में मुगलों से गोंडवाना साम्राज्य छीन लिया, साथ ही सुमेर शाह मराठों के प्रतिनिधि के रूप में मंडला में राज्य संभालने लगे। सन 1804 में सुमेर शाह की मृत्यु हो गई। 1818 में गोंडवाना साम्राज्य मराठाओं के हाथ से निकल गया, अंग्रेजों ने मंडला कोअपने अधीन कर लिया और मध्य प्रांत मेंमिला लिया। इसके उपरांत राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह पर पिंडारियों से मिलकर बरतानिया सरकार के विरुद्ध संघर्ष करने का आरोप लगाकर जबलपुर में गढ़ा पुरवा के पास केतीन गांव की जागीर देकर पेंशन दे दी गई। राजा शंकर शाह अंग्रेजों के इस दुर्व्यवहार के विरुद्ध थे और अंग्रेजों से स्वतंत्रता चाहते थे। आगे चलकर महारथी शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में तोप के मुंह से उड़कर संपूर्ण भारत में किसी भी रजवाड़े परिवार की ओर से प्रथम बलिदान दिया।

19वीं शताब्दी मध्यान्ह तक अंग्रेजों के अत्याचार और अनाचार चरम सीमा पार कर गए थे तथा डलहौजी की हड़प नीति के बाद भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी। जिसकी जानकारी राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को भी लग गई थी। जबलपुर स्थित गढ़ा पुरवा में मंडला, सिवनी, नरसिंहपुर, सागर, दमोह सहित मध्य प्रांत केलगभग सभी रजवाड़े परिवार, जमींदार, मालगुजार के साथ 52 गढ़ों से सेनानी भी मिलने आने लगे थे। इसी बीच सूबेदार बलदेव तिवारी ने अपनी 52वीं नेटिव इंन्फेन्ट्री के साथ बलवा किया, इसलिए राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह को कैंटोनमेंट से हटाकर रेसीडेंसी (रेजीडेंसी) में रखा गया। यहां डिप्टी कमिश्नर और दो अंग्रेज अधिकारी का न्याय आयोग बनाया गया। राजा शंकरशाह और रघुनाथशाह पर तीन दिन तक राजद्रोह का आपराधिक मामला चलाया गया और उनकी स्वरचित कविताएं, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य के सर्वनाश की कामना माँ कालिका से की थी, उस पर गंभीर आपत्ति उठाई गई। साथ ही लाल रंग की रेशमी थैली में जो महारथी तात्या टोपे, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सहित देसी रजवाड़ों जमीदारों और मालगुजारों से पत्र व्यवहार किए थे उनको पढ़ा गया, जिसमें मध्य प्रांत में अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ फेंकने की अपील की गई थी।

नवीन शोध के अनुसार राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने सारेआरोप स्वीकार कर लिए। तब न्याय आयोग ने संधि प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसकी शर्तें थीं कि राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ईसाई धर्म स्वीकार स्वीकार करें, उन्हें एक अच्छी पेंशन दी जाएगी और वह विद्रोहियों का पता बता दें, इन शर्तों के मानने के बाद दोनों पिता-पुत्र को माफ कर दिया जाएगा। परंतु राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने यह स्वीकार नहीं किया तब न्याय आयोग ने उन्हें फांसी की सजा सुनाने का निर्णय लिया लेकिन राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह ने न्याय आयोग से यह कहा कि हम ठग, पिंडारी, चोर, लुटेरे,डाकू हत्यारे नहीं है जो हमें फांसी दी जाए, हम गोंडवाना के राजा हैं, इसलिए हमें तोप के मुंह से बांधकर उड़ाया जाए। न्याय आयोग ने भी विचार किया की तोप के मुंह में बांध के उड़ाने से जनता में दहशत फैलेगी, इसलिए अच्छा है कि तोप के मुंह से बांधकर ही उड़ाया जाए। राजा शंकर शाह बुद्धिजीवी थे और वह चाहते थे कि जब सार्वजनिक रूप से उन्हें तोप के गोले से उड़ाया जाएगा तो जन आक्रोश फैलेगा और मध्य प्रांत में भयानक संग्राम होगा।

50 गज दूर गिरा था मांस और अस्थियाँ :
लेफ्टिनेंट क्लार्क ने तोप चलाने का आदेश दिया और भयंकर गर्जना के साथ चारों तरफ धुआं भर गया। राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह केहाथ – पांव तोप से बंधे रह गए परंतु शेष शरीर के मांस के लोथड़े और हड्डियां 50-50 गज दूर जाकर गिरीं, जिन्हें उनकी वीरांगना पत्नियों क्रमश: फूलकुंवर और मन कुंवर ने एकत्रित किया तथा कुंवर रघुनाथ शाह के पुत्र लक्ष्मण शाह ने अंतिम संस्कार किया। चार्ल्स बाल ने द हिस्ट्री आफ इंडियन म्यूटिनी में लिखा है कि “राजा शंकर शाह रघुनाथ शाह को जब तोप के मुंह से बांधा गया था तब भी उनकी आंखों में दया या याचना का भाव तक नहीं था”। एक चश्मदीद अंग्रेज अफसर के हवाले से द हिस्ट्री आफ इंडियन म्यूटिनी में कहा गया है कि “उनके पैर हाथ जो बांध दिए गए थे, तोप के मुंह के पास पड़े थे और सिर तथा शरीर का ऊपरी भाग सामने की ओर लगभग पचास गज की दूरी पर जा गिरे थे। उनके चेहरों को जरा भी क्षति नहीं पहुंची थी और वे बिल्कुल शांत थे।” बात यहीं खत्म नहीं हुई क्योंकि राजा शंकर शाह की सहधर्मचारिणी रानी फूलकुंवर ने मंडला में अंग्रेजों से लड़ते हुए अपना स्वयं आत्मोत्सर्ग किया।

सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम बलिदान गोंडवाना से हुआ- 18 सितंबर 1857 को सुबह 11 बजे 33वीं मद्रास नेटिव इन्फेंट्री सहित पांच हजार सैनिकों के घेरे में रेसिडेंसी के सामने राजा शंकर शाह कुंवर रघुनाथ शाह को तोप के मुंह पर बांधा गया। उनके चेहरों में किसी भी प्रकार के भय के लक्षण नहीं थे। लेफ्टिनेंट क्लार्क के तोप के गोले से उड़ाने के आदेश के पूर्व राजा शंकरशाह ने उस स्व रचित कविता का प्रथम छंद गाया जिसमें अंग्रेजों के सर्वनाश की प्रार्थना की थी और इसी कविता को अंग्रेजों ने अपराध का एक आधार बनाया था।दूसरा छंद कुंवर रघुनाथ शाह ने गाया। कविता का अनुवाद कमिश्नर इरेस्किन ने किया था। सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जबलपुर में हुआ, राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह का बलिदान संपूर्ण भारत वर्ष में किसी भी रजवाड़े परिवार से प्रथम बलिदान था, जिन्हें तोप के गोले उड़ाया गया था।


डॉ.आनंद सिंह राणा