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“अटल रत्न” एक युग प्रवर्तक

भारतीय जनचेतना के शिखर पुरुष, राजनैतिक शुचिता एवं जन-गण की प्रखर आवाज राष्ट्रधर्म के संवाहक, भारत रत्न, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई हमारे बीच आज भले ही भौतिक रुप में नहीं है। किन्तु उनकी बनाई परिपाटी भारतीय इतिहास में सर्वदा चिर- प्रासंगिक रहेगी।

अटल जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व इतना विराट है कि जिसके बारे में कितना भी कहें वह कम ही है, क्योंकि जो व्यक्ति जनश्रुतियों में समा गया हो। उसका जीवन एक दर्शन बन जाता है। वर्तमान पारिदृश्य में लगता है कि काश! अटल जी जैसा व्यक्तित्व हमारी विचार एवं दिशा विहीन होती राजनीति को नया रास्ता बतलाता किन्तु यह अब कहाँ सम्भव है? युग पुरुष सदियों में जन्म लेते हैं। जिनके आभामंडल में क्रांति और चेतना का स्वर फूटता है तथा नवमार्ग का सृजन करता है। एक ऐसा चमत्कारी पुरुष जो कवि एवं अध्यापक पिता कृष्णबिहारी वाजपेयी एवं माता कृष्णादेवी की संतान के तौर पर 25 दिसम्बर सन् 1925 को जन्मा किन्तु उनका यह जन्म सम्पूर्ण भारतवर्ष के आधुनिक योद्धा के तौर पर चरितार्थ हुआ।

वे भले ही पहली बार लोकसभा चुनाव में हार गए किन्तु उप्र कि बलरामपुर की लोकसभा सीट से सन् 1957 के विजयी होकर सांसद बनें। 1972 में  ग्वालियर से चुनाव लड़ा और विजयश्री का वरण किया। अनेकों राजनैतिक उतार-चढ़ावों के बावजूद भी  वे राजनैतिक कर्त्तव्यपथ में चलते रहे। स्व इन्दिरा जी के शासनकाल में लगाए गए आपातकाल की कठिन यातना को से दो-दो हाथ किया।

बाद मोरारजी भाई देसाई की जनता पार्टी  सरकार में अटल जी ने विदेशी मंत्री के तौर पर  सन् 1977 से 1979 तक भारतीय विदेशनीति का अटल अध्याय लिखा। वे भारतीय इतिहास के ऐसे प्रज्ञा पुरुष हैं। जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र  संघ के अधिवेशन में भारत की गौरवशाली परम्परा एवं एकसूत्र वाक्य- “वसुधैव कुटुम्बकम” की विवेचना के साथ सर्वप्रथम हिन्दी में भाषण देकर देश के मस्तक को विश्व पटल पर गौरवान्वित करने का अद्वितीय कार्य किया।

वे सन् 1996 प्रधानमंत्री बनें किन्तु यह सरकार मात्र 1 वोट के कारण गिर गई थी। बतौर प्रधानमंत्री अगर वे चाहते तो सरकार बचाने के लिए 1 सांसद का तिकड़म कर सकते थे। किन्तु उन्हें अपनी सरकार एवं प्रधानमंत्री पद से ज्यादा चिन्ता देश के लोकतंत्र की थी। इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर एक मिसाल कायम की। उन्होंने इस पर सदन में अपना वक्तव्य देते हुए कहा था कि- “सरकारें आएंगी- जाएंगी, पार्टियां बनेंगी- बिगड़ेंगी पर यह देश रहना चाहिए। इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए” जो भारतीय राजनैतिक शुचिता की कालजयी उक्ति बन गई। पुनः 19 अप्रैल सन् 1998  को उनके नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार बनी उन्होंने “गठबंधन धर्म” की नई परिपाटी का सृजन कर सफलतापूर्वक पाँच वर्ष तक सरकार चलाकर देश की प्रगति एवं उन्नति के कीर्तिमान रचे।

सभी के प्रति नरम एवं नीतियों को लेकर स्पष्टवादी तटस्थ अटल को देखिए जिसने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वैश्विक प्रतिबंधों की चिन्ता किए बिना देश के महान वैज्ञानिकों के अदम्य साहस एवं कर्तव्यनिष्ठा पर विश्वास करते हुए 11 और 13 मई सन् 1998 की रात्रि में  पोखरण में पाँच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट करने का कार्य कर भारत को परमाणु शक्ति में आत्मनिर्भरता प्राप्त की। अटल जी चाहे प्रधानमन्त्री के पद पर रहे हों या विपक्षी दलों के नेता के रूप में उन्होंने जीवनपर्यंत राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा। उनके विराट व्यक्तित्व की महानता ही है कि- उन्होंने नीतियों को लेकर स्पष्ट तौर पर आलोचनाएँ की किन्तु कभी भी व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों की राजनीति नहीं की।

भारत सरकार ने 2015 में उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” से विभूषित किया इसके पहले पद्मविभूषण सहित देश-विदेश से उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के लिए उन्हें सम्मानित करते हुए पुरूस्कृत किया जाता रहा। अटल जी राजनैतिक समर्थकों और विरोधियों के ह्रदयतल में अपनी बेमिसाल कार्यशैली, वाक्पटुता, मृदुस्वभाव एवं प्रभावी राष्ट्रचिन्तन की अवधारणा की वैशिष्ट्यता के फलस्वरूप हमारी चेतना में विद्यमान हैं।

अटल जी स्वयं में एक युग प्रवर्तक हैं और अपनी बनाई परिपाटी के महायोध्दा जिन्होंने राष्ट्र को एकसूत्रता के बन्धन में अपने प्रखर व्यक्तित्व, संयमित जीवन शैली, सभी के प्रति सहजता एवं सामंजस्य के बदौलत अटल बनें। 16 अगस्त 2018 की तारीख ने हमसे “अटल रत्न” को भले ही छीन लिया। किन्तु भारतीय राजनीति के अजातशत्रु और आधार स्तंभ के रूप में दैदीप्यमान होते हुए अपने विचारों- कृतित्व के प्रेरणा स्त्रोत के रूप में जन-जन के मध्य विद्यमान रहेंगे।

हेमेन्द्र क्षीरसागर
पत्रकार, लेखक व स्तंभकार
9424765570