Trending Now

अफगानिस्तान तबाही का मंजर

महाभारत काल की गांधार नरेश की पुत्री गांधारी का विवाह महाराज धृतराष्ट्र के साथ हुआ था। उस पौराणिक काल की चर्चा न भी करें। तो सन् 1970 के दशक में अफगानिस्तान में हिन्दू-सिखों की आबादी लगभग नौ लाख थी। वहाँ के व्यापार में इन दोनों समुदायों का वर्चस्व था। कई दशकों पुरानी कहानी ‘काबुलीवाला’ आज भी भारतीय परिवारों के बीच जब तब दुहरायी जाती है, स्मरण किया जाता है। तात्पर्य यह कि अफगानिस्तान और भारत के रिश्ते काफी करीबी थे।

आज हालात अत्यन्त नाजुक बन गये हैं। आज नहीं बल्कि बीस साल पहले जब तालिवानों द्वारा महात्मा बुद्ध की मूर्ति को नष्ट-भृष्ट किया गया था। गुरूद्वाराओं तक में सुरक्षा व्यवस्था नहीं है। आत्मघाती हमलों द्वारा हिन्दू-सिखों पर भारी तादाद में मुसीबतें खड़ी की जा रही हैं।

आज की स्थिति तो और भी भयानक बन चुकी है। इन तालिबानी हमलों की निरन्तरता के कारण प्रश्न यह उपस्थित हो गया है कि अफगानिस्तान और अफगानों की सुरक्षा कैसे हो जाबोल से लेकर कुंदूज इलाकों कांधार से जलालाबाद तक तालिबान, इस्लामिक स्टेट, इस्लामी मूवमेन्ट  उज्वेकिस्तान सहित अलकायदा के खंडहरों में अब तक छिपे और बिखरे  हुये अनेक चरमपंथी समूह सक्रिय होकर अपना दबदबा कायम करने के लिये मारकाट कर रहे हैं तथा सम्पत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। अब उनकी ताकत और हौसलों में वृद्धि होने की निरन्तर सम्भावना प्रबल ही होती जा रही है।

32 killed in bus blast: अफगानिस्तान में बम की चपेट में आई बस, 32 लोगों की  मौत - 32 people killed in afghanistan in bomb blast in afghanistan |  Navbharat Times

नाटो देश जो गत बीस वर्षों से यहां की सुरक्षा पर ध्यान दे रही थे, वे भी अब असमंजस की स्थिति में हैं। अमरीकी सेनायें अफगानिस्तान में लगभग जा चुकी  हैं जो कुछ शेष है, वे भी अगस्त तक चली जायेंगी।

अब सबसे दुःखद और मानवीयता को शर्मसार करने वाली है, वह स्थिति यह है कि अफगान बच्चे हिन्दूकुश की तलहटी में बिखरे हुये कचरे के ढ़ेर की तरह अपना कठिनाई से जीवन यापन कर रहे हैं।

नाटो देशों का यह कहना महज सहजता भरा लेकिन अनअपेक्षित है कि अफगानिस्तान को अपना भविष्य स्वयं सम्हालना है। यह अजीब और परेशान करने वाली कठिन स्थिति है, जब खूंखार तालिबान जैसी कुख्यात ताकतें सक्रियता से अपनी क्रूरता की सभी हदें पार करते हुये आगे बढ़ती जा रहीं हैं। इनके अत्याचारों से अफगान निवासियों को कौन निजात दिलायेगा?

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य अत्यन्त चिन्ताजनक बना हुआ है।

दोहा में अमेरिका ने तालिबान से समझौता किया। इस कदम से उसे अनायास ही अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हो गयी। दूसरी तरफ अफगानिस्तान में जो बिखरे हुये आततायी समूह थे, जैसे अलकायदा, इस्लामिक स्टेट सहित अन्य समूहों को एक जुट होने का अवसर मिल गया। इस तरह वहाँ तालिबान की ताकत में इजाफा हुआ है। इस एक जुटता के परिणाम स्वरूप ये सब अशरफगनी की सरकार या अफगान की स्थानीय फौज का सामना आसानी से कर सकते हैं। ऐसे ही हाल बने रहे तो इस बात की पूरी-पूरी सम्भावना है कि अफगानिस्तान पुनः बीस साल पुरानी अपनी वीभत्स स्थिति में पहुंच जायेगा।

प्रश्न तो उठेगा ही कि अमेरिका के 9/11 के बाद शुरू किये गये ‘वार इन ड्यूरिंग फ्रीडम्’ की मूल-भावना का क्या हश्र होगा?

दूसरा यह सवाल भी उठना स्वाभाविक है कि काबुल के ध्वंश और तालिबान-अलकायदा के खिलाफ चले आपरेशन ‘डैथतोल’ के रूप में जो जनधन उठानी पड़ी है, अपनी जानें देनी पड़ी हैं उसके बदले अफगानों को क्या मिला?

नाटो संगठन द्वारा यह कहा जाना कि बीस वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया गया उनका मिशन अब पूरा हो चुका है। यह कथन अफगानी हकीकत से लगभग मुंह मोड़ना ही माना जायेगा।

इन क्रूर घटनाओं के चलते पाकिस्तान स्थित अफगान राजदूत की बेटी का अपहरण हो गया है। इस घटना से तालिबान – पाकिस्तान के तार जुड़े होने के कारण विश्वभर में पाकिस्तान की भत्र्सना हो रही है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इसे पाकिस्तान का निकृष्टतम कृत्य निरूपित किया है।

अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा है कि तालिबानी और आतंकी संगठन अलकायदा और जैश-ए-मोहम्मद में एक जुटता बन गयी है। राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि हमारा लक्ष्य अफगानिस्तान की रक्षा करना है। देश की आजादी, समानता और गत 20 सालों की उपलब्धि को बचाये रखना है।

दुश्मनों की मानसिकता खतरनाक है, हम उनके सपनों को हमेशा हमेशा के लिए दफन कर देंगे। उन्होंने कहा कि हमारे पास इच्छाशक्ति है देश में शांति स्थापित करने की। अफगानिस्तान सभी अफगानिस्तानियों का सामान्य घर है और यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी जिन्दगी की आाखिरी सांस तक इसकी रक्षा करें।

अमेरिका की सेना वापिसी के निर्णय ने एक प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है। राजनैतिक विश्लोषकों का मानना हैकि अमेरिका का राष्ट्रनिर्माण का लक्ष्य नहीं था, वह तो 11 सितम्बर सन् 2001 में अमेरिका में हुये आतंकी हमले का बदला लेने के लिये अफगानिस्तान में घुसा था। अफगानिस्तान में हाई-वे, अस्पताल, बांध और संसद बनाने का महत्वपूर्ण कार्य तो भारत द्वारा ही किये गये हैं। यह अमेरिका की अफगानिस्तान से वापिसी ठीक उसी प्रकार की है जैसे वियतनाम से की गयी थी। अमेरिका तो वहां की लड़ाई को अधूरा छोड़कर बाहर निकल आया था।

11 सितंबर 2001 : आज ही के दिन जब दुनिया ने आतंक और दहशत का भयावह रूप देखा -  11 september 2001 the day when the world saw a terrible form of terror

तालिबान के बढ़ते कहर के मद्देनजर पड़ोसी देशों ने भी सतर्कता बढ़ा दी है। पाकिस्तान भी डरा हुआ है, जो अभी तक तालिबान को मदद पहुंचा रहा था। पाकिस्तान के समाचार पत्र ’डोन’ ने भी इस खबर की पुष्टि की है।

दूसरी तरफ अफगान राष्ट्रपति ने एक वीडियो का हवाला देते हुये कहा है कि पाक-अफगान सीमारेखा पर पाकिस्तानी सेना के जवान डूरंड लाईन पार करके अफगान की धरती पर पहुंचे हैं। इतना ही नहीं तालिबानी नियंत्रण वाले क्षेत्रों में सहजता से घूम-फिर रहे हैं। इससे आगे पाक आर्मी के सिपाही तालिबानी लड़ाकों से भी बातचीत कर रहे हैं।

यह अत्यन्त चिन्ता का विषय है कि तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लेने की नीयत से दिल दहला देने वाली वारदातों को अंजाम दे रहा है। जैसी मारकाट मची हुयी है उससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि उसका अफगानिस्तान पर कब्जा हो गया तो वह और कितनी तबाही मचायेगा?

लेख़क:- डॉ. किशन कछवाहा