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आदिशक्ति का 52 वां गुप्त शक्तिपीठ बड़ी खेरमाई

अपकारी शक्तियों के उन्मूलन हेतु, दीर्घ काल से सनातन संस्कृति के मूल में आदिशक्ति की आराधना के लिए बाना छेदने की प्रथा गोंडवाना क्षेत्र से शिरोधार्य की गई है, परंतु राजकीय उत्सव के रुप गोंडवाना साम्राज्य के महाप्रतापी राजा संग्राम शाह ने अपने राज्याभिषेक के साथ सन् 1480 में मालवा के सुल्तान गयासुद्दीन खलजी को परास्त कर, स्वयं बाना छेदकर माँ बूढ़ी खेरदाई (बूढ़ी खेरमाई – धूमावती देवी-दादी माँ) के लिए प्रथम चल समारोह आयोजित किया था, तब से यह परंपरा अनवरत् रुप से चली आ रही है।

बड़ी खेरमाई (बड़ी खेरदाई -बड़ी माँ) आदिशक्ति का 52 वाँ गुप्त शक्तिपीठ) का कायाकल्प कराया और जवारे भी रखे गए। बूढ़ी खेरदाई (दादी माँ) और बड़ी खेरमाई (बड़ी माँ) के आशीर्वाद से राजा संग्राम शाह कभी परास्त नहीं हुआ और उसे बहू के रुप वीरांगना रानी दुर्गावती प्राप्त हुई थीं। यहां से गोंडवाना का स्वर्ण युग प्रारंभ हुआ था। सन् 1652 में गोंडवाना के राजा हृदय शाह ने बड़ी खेरमाई माता के लिए बाना पहना और चल समारोह को भव्यता प्रदान की।

गोंडवाना साम्राज्य का चरमोत्कर्ष 15 वीं शताब्दी के अंत में गोंड वंश के महान् प्रतापी राजा संग्रामशाह के शासन काल में प्रारंभ हुआ।संग्रामशाह का वास्तविक नाम अमानदास था, जिसकी पुष्टि दमोह के पास ठर्रका ग्राम में प्राप्त एक शिलालेख से होती है।

रामनगर प्रशस्ति में लिखा है कि “प्रतापी अर्जुन सिंह का पुत्र संग्रामशाह था। जिस भाँति विशाल कपास का ढेर एक छोटी सी चिंगारी से नष्ट हो जाता है, उसी भाँति उसके शत्रु तेजहीन हो गये थे। मध्य काल का सूर्य भी उसके प्रताप के सामने धूमिल सा दिखाई देता था, मानो सारी धरती को जीत लेने का निश्चय किया हो। तदनुसार उसने 52 गढ़ों को जीत लिया था। गोंड़ों में तो कहावत ही प्रचलित हो गई थी कि “आमन बुध बावन में”। ये गढ़ जबलपुर, सागर, दमोह, सिवनी, मंडला, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, नागपुर, होशंगाबाद, भोपाल, और बिलासपुर तक फैले हुए थे।समकालीन इतिहासकारों की माने तो 70 हजार गांव थे जिनकी संख्या रानी दुर्गावती के समय 80हजार तक हो गई थी। किलों की संख्या 57, परगनों की संख्या 57 हो गई थी।

गोंडवाना या गढ़ा-कटंगा विस्तृत और संपन्न राज्य हो गया था, इसके पूर्व में झारखंड, उत्तर में भथा या रीवा का राज्य, दक्षिण में दक्षिणी पठार और पश्चिम में रायसेन प्रदेश था। इसकी लंबाई पूर्व से पश्चिम 300मील तथा चौड़ाई उत्तर से दक्षिण 160 मील थी। इन सीमाओं को रानी दुर्गावती ने और बढ़ा लिया था।

गोंडवाना साम्राज्य का क्षेत्रफल लगभग इंग्लैंड के क्षेत्रफल जितना हो गया था। उक्त शोध आलेख पत्रिका समाचार पत्र के यशस्वी संपादक श्री राजेंद्र गहरवार और श्रेष्ठ एवं वरिष्ठ पत्रकार महोदय श्रीयुत राहुल मिश्रा के भगीरथ प्रयास पूर्ण हुआ है। मेरा क्या है? वही गिलहरी जितना योगदान है।

लेखक – डॉ आनंद सिंह राणा

संपर्क सूत्र – 79871 02901