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आर्य बनाम दस्यु – वीरेन्द्र सिंह परिहार

आर्य शब्द भारत में बहु प्रचलित है। ज्यादातर लोग इसे जाति के संदर्भ में देखते हैं। यही वजह है इसका संदर्भ आर्य बनाम अनार्य या आर्य बनाम द्रविण के संदर्भाें में लिया गया है। 7वीं शदी के शब्द रत्नावली ग्रंथ में आर्य शब्द के मायने जो बताये गये हैं- (1) श्रेष्ठ कुल में जन्म, (2) श्रेष्ठ आचरण (3) नम्र, सज्जन, आउटस्टैण्डिंग, पूज्य, आदरणी।
19वीं शदी के शब्द कल्पद्रम में राधाकांत बहादुर देव ने आर्य शब्द के जो अर्थ बताए- उनमें लोगो में मान्यता, उदार चरित, न्याय के रास्ते पर चलने वाला, लोगो द्वारा स्वीकार्य, योग्य व्यवहार, कर्तव्य के प्रति प्रतिवद्धता, सही प्रकृति (पवित्र/धार्मिक) मालिक, संरक्षक, गुरू, मित्र या सुह्नद नागरिक। यह देखा जा सकता है कि आर्य शब्द के सभी लक्षण जेनरिक न होकर गुणवाचक हैं। लेकिन आगे चलकर अंग्रेजों के राज में विलियम जोंस एवं मैक्समूलर ने जैसे बहुत सी मान्यताओं को ध्वस्त किया, वैसे आर्य शब्द को भी ध्वस्त करने का प्रयास किया। इन्होंने आर्य शब्द का अर्थ किया- गोरा, लम्बा, पुष्ट या शक्तिशाली, गहरी आँखे और तीखी नाक, युद्ध में कुशल और आक्रामक स्वभाव वाले को आर्य परिभाषित किया। यह 19वीं सदी में पश्चिमी विद्धानों की अवधारणा थी जिसके संबंध में दृष्टि साफ रखने की आवश्यकता है। समस्या यह कि इस विदेशी दुष्प्रचार का समुचित उत्तर नहीं दिया गया। फिर भी स्वामी विवेकानन्द ने 1895 में अपने शिष्य को लिखा- ‘‘सूक्तो के अनुवाद में भाश्यकारों को विशेष ध्यान देने की आवश्यता है। वह हमारे शास्त्रों के बारे में एक शब्द भी नहीं समझते। अपने संतो एवं पण्डितों के अनुसार व्याख्या न कर यूरोपीय विद्वानों के अनुसार व्याख्या करते हैं।’’

वैदिक साहित्य में आर्य और साथ में दस्यु शब्द के मायने क्या हैं ? यह देखना भी जरूरी है। शायद लोगो को जानकर यह आश्चर्य हो कि दस्यु शब्द कोई वंशानुगत नहीं बल्कि कृत्यों पर आधारित है। वैदिक साहित्य में दस्यु के मायने- बहादुर, लुटेरा, चोर, खलनायक, शैतान/शत्रु, दास, सेवक और यहाँ तक कि संदेश वाहक बतौर भी बताया गया है। दस्युओं को यज्ञ में विध्न डालने वाला और आर्याें के शत्रु बतौर भी वर्णित किया गया है।
स्वीमी दयानंद सरस्वती ने दस्यु शब्द का अर्थ दूसरो के लिये परेशानी पैदा करने वाला, एक मूर्ख और बुरा आदमी है। एक जगह दस्यु का अर्थ अपने कर्तव्यों का न करने वाला और व्यर्थ घूमने वाला बताया गया है। इसी तरह से आर्य का मतलब जहाँ गुणज्ञ व्यक्ति से है, वही अनार्य का तात्पर्य पापी या दुष्ट से है। यह गौर करने की बात है कि आर्याें के पास व्यापक साहित्य उपलब्ध है, जिसमें ब्राम्हण साहित्य, वेद, उपनिषद, वेदां, 18 पुराण, रामायण, महाभारत और कई स्मृतियाँ के साथ, कविताएँ, कथाएँ और नाटक भी उपलब्ध हैं। निश्चित रूप से यदि आर्य बाहर से आये होते और स्थानीय लोगो को हराया होता तो इतने वृहद साहित्य में कहीं-न-कहीं उल्लेख अवश्य मिलता।
सच्चाई यह है कि 1857 की क्रान्ति के असफल होने के बाद अंग्रेजो द्वारा भारत को बौद्धिक और मानसिक गुलामी से जकड़ने के पयत्न आरम्भ हो गये थे। वनवासियों (अनुसूचित जनजाति) का स्वतंत्रता संग्राम में विशेष योगदान था, उसलिये उनको शेष हिन्दू समाज से अलग-थलग करने की कोशिस की गई। ऐसा पुरजोर प्रचारित किया गया कि यह समुदाय भारत का मूल निवासी है और आर्याें ने बाहर से आकर इस देश पर कब्जा कर इन्हें जंगलों में धकेल दिया। इसी तरह आर्य-द्रविण संघर्ष की थ्योंरी गढ़ी गई जो- ‘फूट डालो और राज करो’ का एक नया स्वरूप था।
विलियम जोंस एक ब्रिटिस जो 18वीं सदी में भारत में आया। उसने संस्कृत सीखी, क्योंकि उसका मानना था, क्योंकि तभी भारतीय संस्कृति को जाना जा सकता है और प्रभावी ढंग से न्याय दिया जा सकता है। उसने संस्कृत और कुछ युरोपीय भाषाओं में कई समानताएँ निकाली। इस तरह से उसने निष्कर्ष निकाला कि आर्य जो भाषा बोलते हैं वह भारत में रहने वालों की नहीं बल्कि बाहर से आने वालों की भाषा है। इस तरह से उसने यह निष्कर्ष निकाला कि आर्य स्टेपी रीजन सेन्ट्रल एशिया से आया। इसी को आर्यन माइग्रेशन थ्योरी- ए.एम.टी. का नाम दिया गया।
इस दिशा में काम करने वालो में एक अन्य नाम मोर्टीमेंट व्हीलर का है। जिसने बीसवी सदी के मध्य ‘आर्य आक्रमण’ का नाम लिया। जबकि हड़प्पा, मोहन जोदड़ो और लोथल (सिंधुघाटी की सभ्यता) में 1920 से 1930 के मध्य खुदाई से यह पता चला कि प्राचीन काल से यहाँ एक अति विकसित सभ्यता मौजूद थी। व्हीलर की मान्यता अनुसार ईरान का एक कबीला जो आर्य कहलाता था, वह आक्रमण कर सिंधु घाटी के इन शहरों में काबिज हो गया। उन्होंने कुछ द्रविणों का कत्ल कर दिया और शेष को उस क्षेत्र से भगा दिया। इस तरह से यह शरणार्थी बतौर पूर्व और दक्षिणी क्षेत्रों में जाकर बस गये। व्हीलर जैसे लोगो के लिये इन्द्र का पर्यायवाची पुरंदर का अर्थ शहरो को नष्ट करने वाला इसी संदर्भ में है। आर्य आक्रमण का समय भी व्हीलर 1800 बीसी से 1500 बीसी बतलाता है। बाद में पश्चिम के विद्वानों ने व्हीलर की इसी लाइन को पकड़ लिया और इसके लिये कई किताबें, शोध और लेख प्रकाशित किये गये। कुछ लोगो ने इसी के तहत समाज में अलगाववाद पैदा करने और विभाजित करने के लिये कई सिद्धांत प्रतिपर्दित किये। जैसे आर्य-द्रविण संघर्ष, विदेशी आक्रमणकारी और देशी संघर्ष राम वि. रावण एवं दुर्गा वि. महिषासुर संघर्ष एवं सवर्ण विरूद्ध दलित इत्यादि।
विडम्बना यह कि ऐसी विभाजक एवं गुमराह करने वाली बाते देश की स्वतंतत्रा के बाद भी सभी स्कूलों, काॅलेजों एवं विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती रही। इस लाईन को मजबूत करने के लिये एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग वर्ग पर अत्याचार की कहानियाँ भी बढ़-चढ़कर गढ़ी जाती रहीं। देश में यही सब बाते पृथकतावादी आंदोलन का आधार बने। यह बात और है कि बाद में कई स्कालरों द्वारा उक्त थ्योरीज का खण्डन वैज्ञानिक प्रमाणों और वैचारिक आधार पर किया गया।
हमारे प्रवीन ग्रंथो में रामायण एवं महाभारत में भी आर्य शब्द को गुणवाचक बताया गया है। रामायण में सिर्फ राम को ही आर्य से संबोधित नहीं किया जाता, सुदूर दक्षिण वन में रहने वाले भी आर्य शब्द प्रयोग करते हैं, जैसे वाली के राम द्वारा मारे जाने पर तारा द्वारा उसे आर्यपुत्र का सम्बोधन किया जाता है। (4-24-29)
सुग्रीव, हनुमान, जामवंत और अंगद को भी आर्य शब्द से सम्बोधित किया जाता है। इतना ही नहीं नारियों को आर्या शब्दा के सम्बोधन प्रचलित था। जैसे आर्या तारा (4-25-30) तो दूसरी तरफ सुदूर लंगा नगरी में जिसे रावण को अनार संस्कृति की प्रतीक रूप में प्रचारित किया गया। उस रावण की सभी पत्नियाँ आर्यपुत्र कहकर सम्बोधित कर रही हैं। इस तरह से यह देखा जा सकता है कि दक्षिण की द्रविण कही जाने वाली भूमि में भी आर्य ही नहीं, आर्या सम्बोधन भी सामान्य है। रावण राक्षस होते हुये भी उसकी सभी पत्नियाँ उसे आर्यपुत्र कहकर सम्बोधित करती हैं, क्योंकि उनकी दृष्टि में रावण महान है। रावण के मारे जाने पर उसकी सभी पत्नियाँ उसे आर्यपुत्र कहकर रूदन करती हैं।
‘‘आर्यपुत्रोंति वादिन्यो हा नाथेतिन सर्वदाः वाल्मीक रामायण (6-110-4) इतना ही नहीं रावण भी अपनी पत्नी मंदोदरी को आर्या कहकर सम्बोधित कर रहा है। ऐसी स्थिति में बड़ा सवाल यह कि उत्तर-पश्चिम से ये आर्य शब्द दूर-दराज लंका कैसे पहुँचा। इससे समझा जा सकता है कि रावण को देशज बताकर कई विश्वविद्यालयों द्वारा जो आन्दोलन चलाये गये वह कितने आधारहीन थे ? इसी तरह से महाभारत में भी आर्य शब्द का बहुत प्रयोग हुआ है।
भगवत गीता में 2-2 में कृष्ण, अर्जुन से कहते हैं। आर्य (श्रेष्ठ व्यक्ति) इस रास्ते का यानी कायरता का अनुसरण नहीं करते है। यह कायरता का मार्ग न तो स्वर्ग की ओर ले जाता न प्रसिद्धि की ओर। यहाँ भी देखा जा सकता है कि आर्य गुणवाचक शब्द है। किसी जाति या वर्ग को लेकर नहीं। इस तरह से हम देख सकते हैं कि विदेशियों ने भारतीय शब्दकोश को किस तरह से विकृत किया।
लेखक:‌‌‌- वीरेन्द्र सिंह परिहार