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कर्म योगी श्री कृष्ण 

कर्म योगी, दार्शनिक, तत्वदर्शी, चिंतक, प्रबंधन गुरु, श्रेष्ठ संचारक ,उत्कृष्ट प्रेमी, चौंसठ कलाओं के ज्ञाता, बहुरंगी एवं बहुआयामी व्यक्तित्व वाले श्री कृष्ण का चरित्र न केवल भारतीय संस्कृति अपितु संपूर्ण विश्व में विख्यात है, पूजनीय है।

 “परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम, 
 धर्म संस्थापनार्थय संभवामि युगे युगे।”

कृष्ण का पृथ्वी पर अवतार इस धरा पर फैले अंधकार और नकारात्मक ताकतों के संहार हेतु था।

भाद्रपद माह के आठवें दिन प्रतिवर्ष उनका जन्मोत्सव श्री कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है । राजस्थान में श्रीनाथजी, उड़ीसा में जगन्नाथ, दक्षिण में व्यंकटेश, गुजरात में द्वारकाधीश, महाराष्ट्र में विट्ठल और उत्तर प्रदेश में गोपाला नाम से मशहूर श्री कृष्ण के 108 नाम है । हाथों में बांसुरी, सिर पर मोर पंख, गले में फूलों की माला, मेघ  श्यामल रंग, पितांबर धारी कृष्ण की आकर्षक  छवि मन को मोह लेती है इसीलिए उन्हें मनमोहना भी कहा जाता है ।

भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रूप में, द्वापर युग में जन्मे श्री कृष्ण वासुदेव-देवकी की आठवीं संतान थे । वे मार्शल आर्ट के जन्मदाता कहे जाते हैं। इस  विद्या के माध्यम से उन्होंने चाणूर व मुश्टिक जैसे मल्लो का वध किया। वह भी महज 16 वर्ष की आयु में । श्री कृष्ण सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर व  द्वंद युद्ध में दक्ष थे। उनके धनुष का नाम सारंग ,खडग का नाम नंदक और शंख का नाम पाञ्चजन्य था।

ओशो श्री कृष्ण के व्यक्तित्व के विषय में कहते हैं  “कृष्ण की चर्चा मेरे लिए इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि आप उनका अनुकरण करते जाए इसलिए महत्वपूर्ण है कि ऐसा व्यक्ति इतना मल्टीडाइमेंशनल व्यक्ति पृथ्वी पर नहीं हुआ। इस बहुआयामी व्यक्तित्व के अगर सारे खजाने आपके सामने खुल जाए तो आपको अपने खजाने खोलने का ख्याल आ सकता है बस इससे ज्यादा नहीं ।”

अर्जुन को माध्यम बनाकर श्री कृष्ण ने समस्त मानव जाति के कल्याण हेतु जो उपदेश दिया उसे हम’ गीता ‘के रूप में जानते हैं । उनके मुखारविंद से निकली गीता आज विश्व प्रसिद्ध रचना है। महाभारत युद्ध में, कुरुक्षेत्र के मैदान में जब अर्जुन अपने समक्ष उपस्थित बंधु -बांधवो को देखकर युद्ध नहीं  करने का निर्णय लेता है, तब भगवान कृष्ण ने वेदों, शास्त्रों व उपनिषदों का सार गीता के माध्यम से अर्जुन को दिया और ज्ञान के सभी मार्ग मनुष्य के लिए खोल दिए ।

गीता में कहा गया हर एक शब्द क्रांतिकारी है और विश्व की तमाम समस्याओं का समाधान गीता में है । कृष्ण जन्म से लेकर संपूर्ण जीवन संघर्ष करते रहे ,पर कभी समस्याओं से ,परिस्थितियों से विचलित नहीं हुए और मानव मात्र को निष्काम कर्म का पाठ पढ़ा गए ।

गीता में वे कहते हैं-

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन,
मा कर्मकल्हेतुभुर्मा ते संगोडस्त्वकर्मणी”।

अर्थात कर्म करना हमारे वश में है उसके परिणाम पर हमारा बस नहीं। हमें हमेशा जीवन में कर्म करते रहना है वह भी परिणाम की चिंता किए बगैर । जीवन में जो कुछ भी बाधा आ जाएं, उसे पार कर आगे बढ़ना है । कृष्ण का यह संदेश वर्तमान समय में भी उपयोगी है । वे कहते हैं- “योग कर्मसु कौशलम्” अर्थात  कर्म में कुशलता का भाव योग है । हम जीवन में जो कुछ भी कर रहे हैं उसमें पूर्णतः मन लगाएं, उसे पूरी कुशलता के साथ करें यही योग है ।

उनका संपूर्ण जीवन सक्रियता से भरा है । उन्होनें जो कुछ भी कहा उसका अतीत, वर्तमान व भविष्य के लिए महत्व है । उनका कर्म योग का दर्शन हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है जो हमें जीवन जीने की कला सिखाता है । उनकी बातें मानव मात्र के लिए आज भी उतनी ही उपयोगी है जितनी अर्जुन के लिए थी ।

कृष्ण क्रांतिकारी विचारों के धनी रहे । उन्होंने अपना रास्ता खुद बनाया । वह कभी बंधी -बंधाई लीक पर नहीं चले । जब जैसे वक्त की जरूरत पड़ी उन्होंने अपनी भूमिका को बदला और उसे बखूबी निभाया । यदि पांडवों के पास कृष्ण और उनकी रणनीति ना होती तो शायद  वे महाभारत का युद्ध नहीं जीत पाते । उनका सबसे महत्वपूर्ण संदेश है चिंता ना करो । लाभ-हानि, जय-पराजय, यश -अपयश को छोड़ हर हाल में तटस्थ  रहो । ना किसी बात की चिंता करो, ना किसी से भयभीत रहो। भविष्य की बजाय वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने का मंत्र उन्होंने मानव को दिया ।

उनकी लीला प्रेम -अध्यात्म का धर्म शास्त्र है। जयदेव अपने’ गीत गोविंद ‘में कृष्ण को सर्वोच्च प्रभु मानते हैं । कृष्ण एक भोगी भी है और योगी भी । एक मनुष्य के जीवन के जितने भी संदर्भ है या हो सकते हैं ,कृष्ण के जीवन में वे सभी उपस्थित है इसीलिए उन्हें पूर्ण अवतार कहा जाता है ।

कृष्ण ने जीवन में जो कुछ भी होता है उसे आत्मसात किया है , स्वीकारा है । वे प्रेमी है, योद्धा है ,चोर है । कौन कह सकता है कि माखन चुराने  वाला कृष्ण गीता का उपदेश दे सकता है । रण छोड़ने वाला रणछोड़ कृष्ण महान योद्धा कहा जाता है । गोपियों के साथ रास रचाने वाला, बांसुरी बजाने वाला महान योगी कहलाता है । यह जो कृष्ण के जीवन में विरोधाभास है यही उनकी खासियत है । उन्होंने जीवन के सभी रंगों को जिया है ,आत्मसात किया है और उनकी हर भूमिका शिक्षा देती हुई है ।

आज जन्माष्टमी के पावन पर्व पर ऐसे अदभुत ,तेजोमय अतुलनीय व्यक्तित्व जिसने मानव मात्र को नया जीवन दर्शन दिया, जीने की कला सिखाई हम अपने जीवन में उतारे ,आत्मसात करे और निष्काम कर्म की महत्ता को स्वीकारें ।

कृष्ण जन्माष्टमी की मंगलकामनाएं।

प्रो. मनीषा शर्मा
लेखक, शिक्षाविद
मो.न. 9827060364