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केप्टिन जेम्स कुक की द्वीपों की खोज के सम्मान में है

विश्व मूलनिवासी दिवस – 09 अगस्त

12 अक्तूबर 1492 को कोलंबस के द्वारा शुरू की गई कोलोनियों के बसाने के युग की शुरुआत के बाद , नई दुनिया की खोज का अंतिम पड़ाव जब , आस्ट्रेलिया , पेसिफ़िक द्वीपों की खोज के बाद एशिया महाद्वीप व अमेरिका महाद्वीप की जल संधि “ बेरिंग स्ट्रेट“ पर , पर जेम्स कुक ने अपने कदम रखे , माना जाता है ।

बेरिंग संधि पर पहुँच कर “केपटिन जेम्स कुक“ , जिसने औस्ट्रेलिया और न्यू जीलेंड के हज़ारों मूलनिवासियों को मार कर ब्रिटिश कोलोनियाँ बसाई , ने बताया कि दुनिया में अब और कोई नई ज़मीन नहीं बची है , जिस पर नई कोलोनी बनाई जाए ।

12 ऑक्टोबर 1492 को कोलंबस द्वारा , नई दुनिया , अमेरिका द्वीप समूह पर पहुँचकर नरसंहार करने से लेकर …

डी कुक जो खोला। कुक जेम्स - जीवनी, जीवन से तथ्य, तस्वीरें, पृष्ठभूमि की  जानकारी

09 अगस्त 1778 तक जेम्स कुक के बेरिंग संधि तक पहुँच कर दुनिया भर में करोड़ों मूलनिवासियों के नर संहार के बाद …

आज भी पूरी दुनिया में कोलंबस और जेम्स कुक से जुड़े दो दिनों 12 ऑक्टोबर 1492 (आगमन ) व 09 अगस्त 1778 अंतिम छोर खोजने के दिनों पर , पूरी दुनिया में इनके अत्याचारों की याद में कोलंबस व कुक की मूर्तियाँ तोड़ी जाती है, विरोध प्रदर्शन होते हैं ।

मगर भारत में रानी विक्टोरिया को ही अपनी रानी मानने वाले कुछ वर्ग , 09 अगस्त को ही अपनी मुक्ति के मार्ग के रूप में मानना शुरू कर दिए हैं , हर एक आयातित वस्तु या विचार को घुट्टी की तरह पीने वाले भेड़ चाल में चलने वाले , लोगों को यह बताना आवश्यक है की , कुछ दिन उपरांत ही 15 अगस्त है , जिस दिन के लिए लाखों बलिदानियों के साथ , भगवान बिरसा मुंडा, सिधो कानो , शंकर शाह , रघुनाथ शाह , वीर नारायण जैसे असंख्य वीरों ने अपने प्राण दिए , उस दिन के लिए भी तैयारियों कर लें …

जो संयुक्त राष्ट्र संघ , अफगनिस्तान में लाखों मूलनिवासियों पर मंडरा रहे नरसंहारक ख़तरे पर चुप्पी साधे हैं , जो संयुक्त राष्ट्र संघ भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश को “ सुरक्षा परिषद “ का सदस्य बनाने के लायक़ नहीं समझता हो , जो संयुक्त राष्ट्र संघ “ भारत के समविधान “ में वर्णित समानता , न्याय , समान अवसर के सिद्धांतों की बजाय , टुकड़े टुकड़े करने वाले , आत्मनिर्णय के अधिकारों से भारत के कई राज्यों को तोड़ने का छद्म षड्यंत्र रचने वालों के हाँथ की कठपुतली है , उसके बनाए “ मूलनिवासियों के घोषणा पत्र “ को मैं “ रद्दी काग़ज़ “ से अधिक और कुछ नहीं समझता ।

09 अगस्त 1982 की पहली बैठक से भी पहले WGIP की बैठकें ILO के बेनर तले हो चुकी हैं , यह दिन कोई महत्व का दिन नहीं है , सिवाय इसके कि इस दिन जेम्स कुक के नरसंहार पर पर्दा डालने के लिए , इसे “ विश्व मूलनिवासी दिवस “ बना कर , एक नया “ झुनझुना “ पकड़ाया गया UN द्वारा । जिसे इस झुनझुने को 09 अगस्त को बजाना है बजाए ….

हमारे लिए 15 अगस्त , 26 जनवरी व 15 नवम्बर ही राष्ट्रीय पर्व हैं ….

लेखक:- लक्ष्मण राज सिंह मरकाम