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कोर ऑफ सिग्नल के सैनिकों ने शुरू किया था अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह

कोर ऑफ सिग्नल के विद्रोह से अंग्रेज समझ गए थे कि अब छोड़ना होगा भारत

भारतीय स्वतंत्रता अंदोलन में भारतीय सेना का बड़ा सहयोग रहा है। इसमें कोई दोमत नहीं कि सेना के दम पर ही अंग्रेज देश पर शासन करने में सफल रहे। सेना कई हिस्सें बंटी होती है। एक भाग वो जो। युद्ध में दुश्मन को अपनी बहादुरी से परास्त करती है और दूसरा हिस्सा वह जो पूरा संचार माध्यम संभालता है, यानी किकोर ऑफ सिम्मल्स। सूचनाओं के अचान- प्रदान का यह तंत्र ही यदि ब्रिदोह कर दे तो समूची व्यवस्था ही डगमगा जाएगी।

कुछ ऐसा ही हुआ था वर्ष 1946 में। जब जक्लपुर में स्थित कोर ऑफ सिप्पल के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और अंग्रेज इस विद्रोह को दवा नहीं पाए थे। यही से भारतीय स्वतत्रता के लिए पहले कदम भारत छोड़ो आंदोलन की पहल हुई। कोर ऑफ सिमल का यह विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अभिन्न घटना थी।

विद्रोह की शुरुआत मुंबई में 18 फरवरी,1946 में रॉयल इंडियन नेवी के विद्रोह से हुई। नेवी के इस विदोह को अंग्रेजों ने दबा दिया। इसके बाद वायु सेना ने भी विद्रोह किया इसे भी दबा दिया गया।

Today Army Day Due to the insurgency of the signal the British understood that now India will have to leave

आजाद हिंदी फौज 60 हजार सैनिक अंग्रेजों के लिए खतरा बनते जा रहे थे। तब अंग्रेजों ने अजाद हिंदी फौज के नायकों के साथ अशोभनीय व्यवहार किया। इस बुरे बर्ताव के कारण ही जबलपुर में स्थित कोर ऑफ सिग्नल के 1700 से सैनिकों ने 22 से लेकर 28 फरवरी 1946 को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। सैनिक अपनी वैरकों से निकल आए। सैनिक अपने बल का झंडा लेकर तिलक भूमि की तलैया में एकत्रित हो गए।

जहां उन्होंने अपना नायक शंकरशाह, रघुनाथशाह को माना। तिलक भूमि की तलैया में पहुंचे सैनिकों ने कहा वहां विद्रोह का कारण बताते हुए कहा कि नौसेना, वायुसेना व आजाद हिंद फौज के नायकों के साथ जो बर्ताव हुआ इससे हमें संताप हुआ और हम बाहर निकल आए।

अंग्रेज इस विद्रोह को बवाने में असफल रहे। अंग्रेजों ने समझ लिया था कि जब सूचना तंत्र विद्रोह कर सकता है तो अब और भी विद्रोहों की शुरुआत होगी। इससे अंग्रेजों के मन इस बात का भय बैठ गया था कि अब उन्हें भारत छोझा ही होगा। तब सरदार पटेल ने हस्तक्षेप करके सैनिकों को बैरकों में लौट जाने की सलाह दी। इसके बाद सैनिकों के लिए एक विधि सहायता समिति बनाई गई।

क्यों मनाते हैं सेना दिवस- देश में हर वर्ष 15 जनवरी को सेना विक्स मनाया जाता है। लेफ्टिनेंट जनरल केएम करिअप्पा के भारतीय थल सेना के शीर्ष कमांडर का पदभार ग्रहण करने के उपलक्ष्य में सेना दिवस मनाते हैं।

लेफ्टिनेंट जनरल केएम करिअप्पा ने 15 जनवरी 1940 को ब्रिटिश राज्य के समय के भारतीय सेना के अंतिम अंग्रेज शीर्ष कमांडर जनरल रॉय फ्रांसिस बुचर से यह पदभार ग्रहण किया था। यह दिन सैन्य परेडों, सैन्य प्रदर्शनियों व अन्य आधिकारिक कार्यक्रमों के साथ नई दिल्ली व सभी सेना मुख्यालयों में मनाया जाता है। इस दिन सभी बहादुर सेनानियों को सलामी भी दी जाती है जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च न्यौछावर कर दिया।

लेखक:- डॉ. आनंद सिंह राणा