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क्यों विशेष है:- आजादी का अमृत महोत्सव – डाॅ. किशन कछवाहा

भारतीय राष्ट्रवाद का मूल आधार है, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद- इसे हिन्दुत्ववाद भी कहा जाता है । हिन्दू होना हमारी मौलिक पहचान है, जबकि हिन्दू होने और हिन्दुओं के वैशिष्ट्य के प्रति जागरूकता का नाम है । इतिहास साक्षी है, जब भी इस जागरूकता में कमी आयी है, तब-तब हिन्दुओं की संख्या कम हुयी है, और उन पर आततायियों के, विदेशियों के क्रूरतम प्रहार-आघात हुये हैं । आज भी वे ही शक्तियाँ हिन्दुओं पर प्रहार कर रही हैं, जिन्होंने देश के दुर्भाग्य पूर्ण बंटवारे में अपना निन्दनीय योगदान दिया था ।

स्वतंत्रता की लड़ाई में भी भेदभाव और प्रपंच रचा गया, जिसका दुष्परिणाम यह सामने आया कि आज नयी पीढ़ी को उस महासंग्राम की सच्चाई का भी पता चल नहीं सका । इस इतिहास की संरचना इस चतुराई के साथ करायी गयी, जिसमें कतिपय लोगों को ही महिमामंडित करने की संकुचित नीति का उपयोग हुआ ।

लगभग तीन लाख से अधिक बलिदानियों की गाथा की उपेक्षा की गयी। जिस क्रांतिकारी गतिविधियों के परिणामस्वरूप अंग्रेज भारत छोड़ने विवश हुये, उसे हेय दृष्टि से देखा गया, उस इतिहास को लगभग नकार सा दिया गया। इतिहास की पुस्तकों में उन अमर शहीदों की गाथाओं का जिक्र आ नहीं सका । क्रांतिकारियों के योगदान जिसके कारण अंग्रेजों के मन में भय और निराशा पैदा हुयी थी, उनको उनका स्थान- महत्व नहीं मिल सका ।

आजादी का अमृत महोत्सव पर निबंध - Azadi ka Amrit Mahotsav

आजादी के आन्दोलन में लाखों माताओं की गोद सूनी हुयी, लाखों बहनों से भाई की कलाई छिनी, ऐसे-ऐसे अनेकानेक बलिदानियों को इतिहास के पन्नों में जगह नहीं मिल पायी । आज जब हम अमृत महोत्सव मनाने जा रहे हैं, उन, उन बलिदानियों के परिवारों को खोजकर उनका अभिनन्दन किया जाना सार्थक होगा । उन परिवारों की और हमारी पीढ़ियाँ इस बात पर गर्व कर संकेगी कि उनके पूर्वजों ने देश के स्वाधीनता आन्दोलन में अपना पावन योगदान दिया था ।

भारत का हर नागरिक ने गुलामी को अस्वीकारा और संघर्ष किया, चाहे वह वनवासी हो, गिरिवासी, किसान, दलित हो या सन्यासी सभी ने अपने स्वाभिमान के जागरण का अभियान सतत् चलाया, तभी हमारी संस्कृति संरक्षित रह सकी, हजारों वर्षों की गुलामी-पराधीनता के बावजूद उस पर आँच नहीं आने दी गयी ।  पीढ़ियों  दर पीढ़ी संघर्ष की यह चेतना स्थानान्तरित होती रही ।

इतिहास लेखन को एक तरफा ढालने का कुप्रयास हुआ । स्वाभिमान जगाने की बजाय हतोत्साहित किये जाने वाले घटनाक्रम को सजाकर प्रस्तुत करने में अपनी संकीर्ण बुद्धि का जानबूझ कर अपने स्वार्थी एजेन्डा बनाये रखने के लिये सबूतों को भी नष्ट-भ्रष्ट किया गया ।

स्वाधीनता आंदोलन के मर्म को समझा ही नहीं गया, बल्कि झुंठ लाये जाने की कोशिशें हुयीं । यद्यपि स्वाधीनता आन्दोलन राजनीतिक सत्ता के हस्तातंरण के लिये नहीं था बल्कि वह भारत के स्वाभिमान की पुनः स्थापना के लिये था।

जालियांना वाला लोम हर्षक दुष्टतापूर्ण दृष्टान्त जिसमें अंग्रेजों ने नृशंसता की सारी हदें पार कर दी थी, उसे भी इतिहास में वह स्थान नहीं मिला, जो उसे मिलना चाहिये था। आने वाली पीढ़ियों वास्तविक इतिहास-घटनाक्रम को जान सके अतः उसका पुनर्लेखन अत्यावश्यक है ।

वन्दे मातरम् का गायन तो सन् 1896 से हो रहा था, उसे भी सन् 1937 में बंद करा दिया गया, जो बाद में सन् 1941 से शुरू हो सका । जिन शहीदों ने वंदेमातरम् गाते हुये शहादत दी थी, उनकी भी उपेक्षा कर दी गयी। यह मुस्लिम लीग के तुष्टिकरण के लिये उठाया गया कदम था ।

एक नहीं ऐसे अनेक कृत्य हुये जिनके माध्यम से देश की सांस्कृतिक विरासत को ही नष्ट किया गया । आज अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, इसमें राष्ट्रवाद को मुखर करने का अवसर प्राप्त होगा ।

कांग्रेस की स्थापना एक विदेशी द्वारा की गयी थी, पंथ और जाति के नाम पर समाज को बाँटने का कुचक्र भी उन्हीं के द्वारा चलाया गया ।

अमृत महोत्सव के माध्यम से स्वत्व के जागरण का संदेश जन-जन तक जायेगा । हम अपने स्वाभिमान को जगाकर परम वैभवशाली राष्ट्र की परिकल्पना को साकार किया जा सकेगा-यही अमृत महोत्सव का उद्देश्य भी है । ‘वन्देमातरम्’ हम सभी के लिये राष्ट्र मंत्र है । वन्दे मातरम् के उद्घोष ने अतीत में भी धमनियों में रक्तसंचार बढ़ाया था । 

Amrit festival of independence celebrated in school

भारत गौरवशाली राष्ट्र है, इसका इतिहास गौरवशाली है और हम गौरवशाली स्वर्णिम वर्तमान के साथ भारत को अखण्ड भारत बनाने कृत-संकल्पित हैं । देश की संगठित शक्ति और सामथ्र्य के बल पर स्वाधीनता प्राप्त की है, आक्रान्ताओं का मुकाबला किया है और उसी शक्ति और प्रेरणा से फिर आगे बढ़ेंगे ।

हमें अपने अतीत पर गर्व है । इस अमृत महोत्सव के अवसर पर यह जानेंगे कि भारत ने जितना रक्तपात देखा है, उतना दुनिया के किसी देश ने नहीं देखा होगा । फिर भी भारत स्वाभिमान के साथ खड़ा है । विदेशी आक्रान्ताओं ने क्या-क्या नहीं किया, सितम और जुल्मों की तो सीमा ही लाँघ दी थी । महमूद गजनवी ने 17 बार हमले किये और लूटपाट की ।

वख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को जलाया, तीन महीने तक पुस्तकालय धधकता रहा । इन आक्रमणकारियों को भय था कि भारत अपने ज्ञान का उपयोग कर अपने ‘‘स्वा’’ का पुनः जागरण करेगा? और उस स्वाभिमान और ज्ञान से वह दुनिया को परास्त न कर दे? बस उसी ज्ञान का बोध करना है। इसी गौरवशाली अतीत से प्रेरणा लेकर अपने आत्मविश्वास को जगाते हुये, स्वयं भी आगे बढ़ेंगे और देश को भी आगे ले जायेंगे ।

‘‘स्वराज मिला, स्वतंत्रता नहीं’’

काशी में ‘स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर’ कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस अवसर पर प्रज्ञा प्रवाह के अखिल भारतीय संयोजक श्री जे. नंदकुमार ने कहा कि 1947 की मध्य रात्रि में स्वराज मिला, स्वतंत्रता नहीं मिली । भारत के सभी लोग अपने दायित्व का निर्वहन राष्ट्रहित में करें, स्वाधीनता अवश्य प्राप्त होगी । कार्यक्रम का आयोजन अमृत महोत्सव आयोजन समिति, काशी हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा किया गया था । उन्होंने कहा कि हर क्षेत्र में स्वतंत्रता के लिए कार्य हुआ । महामना जी ने विश्वविद्यालय रूपी तीर्थ बनाया है । यह भी शिक्षा के क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम है ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूर्वी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के कार्यवाह डाॅ. वीरेंद्र जायसवाल ने कहा कि प्राचीन समय में न्यायशास्त्र हमारा धर्म हुआ करता था । सिकंदर जो भारत में प्रवेश नहीं कर पाया, उसे कुछ लोग विश्व विजेता बताते हैं । वर्तमान में भी हम बातचीत, पहनावे, संस्कार में पराधीन हैं। इस अवसर पर ‘एक मंच-एक स्वर’ का आयोजन किया गया । इस दौरान डाॅ. ज्ञानेश चंद्र पांडेय एवं प्रो. बाला लखेंद्र के संयुक्त संयोजन में एक मंच पर एक स्वर में संगीत एवं मंच कला संकाय के 75 विद्यार्थियों द्वारा कुलगीत एवं वन्देमातरम् की प्रस्तुति दी गई ।

लेखक:- डाॅ. किशन कछवाहा
सम्पर्क सुत्र:- 9424744170