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गांधी परिवार के भरोसे रही तो कांग्रेस का डूबना निश्चित

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद एक तरफ भाजपा में हर्षोल्लास का माहौल है तो आम आदमी पार्टी भी सातवें आसमान पर है क्योंकि दिल्ली के बाद पंजाब के रूप में एक पूर्ण राज्य की सत्ता उसे जिस अंदाज में हासिल हुई उसने राजनीति के जानकारों के दिमाग की खिड़कियाँ खोल दी हैं | हालाँकि दिल्ली फतह करने के पहले से ही अरविन्द केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखने के इरादे जता दिए थे |
2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से उनके नरेंद्र मोदी के मुकाबले उतरने के साथ ही अमेठी में कुमार विश्वास को राहुल गांधी से भिड़ने भेजा गया | हालाँकि सफलता मिली पंजाब में जहाँ उसके चार सदस्य जीते जिनमें एक भगवंत मान भी थे जो वहां के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं |
2017 के विधानसभा चुनाव में पंजाब में पार्टी को ख़ास सफलता तो नहीं मिली परन्तु उसके कारण अकाली दल सत्ता से बाहर हो गया | उसके बाद से ही श्री केजरीवाल एक चतुर रणनीतिकार के रूप में अपनी कार्ययोजना पर काम करते रहे जिसके परिणाम सामने हैं | इसीलिये पंजाब में जीतने के फौरन बाद पार्टी ने गुजरात के आगामी चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया |

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भाजपा भी उसके इरादे को भांप चुकी है और इसी के चलते प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी गत दिवस अहमदाबाद जा पहुंचे | उनके प्रवास का मकसद एक सरकारी कार्यक्रम में शिरकत करना था किन्तु उसके पहले उन्होंने एक लम्बा रोड शो कर डाला जिसमें उमड़े जनसैलाब ने उनके गृहराज्य में भाजपा की मजबूत पकड़ की पुष्टि की | आम आदमी पार्टी ने भी जल्द ही तिरंगा यात्रा के माध्यम से गुजरात में अपना जनाधार बढ़ाने की घोषणा कर दी है | लेकिन गुजरात में जिस कांग्रेस ने पिछले चुनाव में भाजपा के छक्के छुड़ा दिए थे उसकी तरफ से आगामी मुकाबले के लिये तैयारी करने का हल्का सा भी संकेत नहीं है |
उ.प्र में उसका जिस तरह सफाया हुआ उसके बाद से वह सन्निपात की स्थिति में है | हालाँकि पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में वह प्रमुख विपक्षी दल की हैसियत में है लेकिन उ.प्र में जो दुर्गति हुई उसके कारण पार्टी के भविष्य पर ही सवाल उठने लगे हैं | इसका एक कारण ये है कि उ.प्र की कमान लम्बे समय से प्रियंका वाड्रा के जिम्मे रही जिन्होंने इस बार 40 फीसदी सीटें महिलाओं को देकर एक नवाचार किया था लेकिन उसका जरा सा भी प्रभाव नहीं दिखा | कांग्रेस का मत 3 प्रतिशत से भी कम हो जाना उसकी दयनीय स्थिति का प्रमाण है |
रायबरेली और अमेठी के पुश्तैनी गढ़ भी पूरी तरह ध्वस्त हो चुके हैं | यदि सपा और बसपा ने हमेशा की तरह अपना प्रत्याशी नहीं उतारने का निर्णय बदल लिया तब सोनिया गांधी का रायबरेली से अगला चुनाव जीतना असंभव होगा | वैसे खबर ये है कि प्रियंका अपनी माँ की सीट से सांसद बनने का मंसूबा पाले बैठी हैं किन्तु ताजा नतीजे उनके लिये खतरे का संकेत हैं | राहुल गांधी भी अब अमेठी से दोबारा उतरने का साहस शायद ही बटोर सकेंगे |
उ.प्र के अलावा बिहार और प. बंगाल में भी कांग्रेस पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुकी है | तमिलनाडु और महाराष्ट्र में भी उसके लिए कुछ ख़ास गुंजाईश नहीं दिख रही | सबसे बड़ी बात ये है कि जिस गांधी परिवार को पार्टी का भाग्य विधाता माना जाता रहा वही अब उसके पतन का कारण बन रहा है जिसके कारण न सिर्फ वरिष्ठ नेता जहां नाराज हैं वहीं युवा नेता भी अपने भविष्य के प्रति चिंतित हो उठे हैं | हर पार्टी समय – समय पर ऐसे हालातों से गुजरती रही है लेकिन संघर्ष के बलबूते उसने कालान्तर में वापिसी की |
स्व. इंदिरा गांधी इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं | लेकिन ऐसा लगता है राहुल और प्रियंका राजनीति को मन बहलाने के साधन के तौर पर लेते हैं और यही वजह है कि बीते सात साल से कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है और मुख्यधारा वाले राज्यों में उसका जनाधार पूरी तरह खत्म होने के कगार पर है | पंजाब में जो दुर्गति हुई उसके लिए आम आदमी पार्टी से ज्यादा राहुल और प्रियंका जिम्मेदार हैं जिन्होंने नवजोत सिंह सिद्धू जैसे व्यक्ति के मोहपाश में फंसकर कैप्टन अमरिंदर सिंह को सत्ता से हटाने जैसी मूर्खता कर डाली |
उ.प्र में प्रियंका ने पूरी कमान सम्भाल रखी थी किन्तु पूरे चुनाव में लगा ही नहीं कि कांग्रेस कहीं मुकाबले में भी थी | बसपा के बारे में तो ये कहा जा सकता है कि उसने अखिलेश यादव को सत्ता में आने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया किन्तु कांग्रेस तो न खुद खुद खेल पाई और न किसी का खेल बिगाड़ने की क्षमता ही उसने प्रदर्शित की | इसीलिए वह हारने के बाद ढंग से अपनी प्रतिक्रिया तक जाहिर नहीं कर सकी |
राहुल और प्रियंका ने ट्विटर पर ही अपने कार्यकर्ताओं को सन्देश दे दिया जिसमें गलतियों से सबक लेने और संघर्ष करते रहने जैसी घिसी-पिटी बातें रहीं | लेकिन इस बात का कोई उत्तर उनके पास नहीं है कि कांग्रेस आखिर कितनी गलतियों के बाद सीखेगी | गत दिवस जी- 23 नामक उन नेताओं ने दिल्ली में बैठक की जो बीते काफी समय से संगठन चुनाव की मांग करते आ रहे हैं | हालाँकि इनमें से अधिकतर का जनाधार नहीं है और वे सब राज्यसभा के जरिये ही राजनीति करते रहे | ये भी कहा जाता है कि कांग्रेस के सिमटते जाने से इनकी राज्यसभा सदस्यता खतरे में आ गयी है जिससे ये छटपटा रहे हैं |
2019 के लोकसभा चुनाव की पराजय की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए राहुल ने अध्यक्ष का पद तो छोड़ दिया लेकिन पार्टी पर कब्जा बनाये रखने का मोह नहीं छोड़ सके और इसीलिये किसी ऊर्जावान नए चेहरे को आगे लाने के बजाय सोनियां जी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर पार्टी को तदर्थवाद के खूँटे पर टांग दिया गया | असंतुष्टों में अधिकतर नेता वे ही हैं जो कल तक गांधी परिवार के दरबारी हुआ करते थे लेकिन अब उनकी समझ में भी आ चुका है कि उसके भरोसे रहने से पार्टी का भट्टा बैठ जाएगा | गत दिवस शशि थरूर ने भी कहा कि बदलाव होना चाहिए |
एक राष्ट्रीय पार्टी बीते तकरीबन ढाई साल से अपने संगठनात्मक ढांचे को पूरी तरह से खड़ा करने में असफल रहे तो वह चुनौतियों का सामना किस प्रकार कर सकेगी ये गम्भीर प्रश्न है | हमारे देश में चुनाव चूंकि कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया है इसलिए हर राजनीतिक दल उसके प्रति अपनी तैयारियां रखता है | लेकिन कांग्रेस तो आग लगने के बाद कुआ खोदने से भी ज्यादा उदासीनता दिखा रही है |
पंजाब में यदि वह बतौर विपक्ष पर्याप्त संख्याबल के साथ विधानसभा में बैठती तब शायद उसकी संभावनाएं जिन्दा रहतीं किन्तु जिस तरह दिल्ली में उसे पूरी तरह धराशायी करते हुए आम आदमी पार्टी ने सत्ता हासिल की ठीक वही पंजाब में दिखा |
कांग्रेस ही वह पार्टी है जिसकी राजनीतिक पूंजी छोटे-छोटे दल तक लूटते जा रहे हैं और उसका मालिक बना बैठा गांधी परिवार निष्फिक्र बना बैठा है | ये स्थिति कुछ समय और चली तो 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के संभावित गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति किसी छोटे दल से ज्यादा नहीं रह जायेगी | एक राष्ट्रीय दल के लिए ये बेहद शर्मनाक है | वैसे जी– 23 में शामिल नेता भी पार्टी की दुर्गति के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं क्योंकि इसके पहले तक वे सभी गांधी परिवार के घोर समर्थक थे किन्तु जो मुद्दे वे उठा रहे हैं वे पूरी तरह जायज हैं | लेकिन जब तक राहुल गांधी हम नहीं सुधरेंगे की जिद पकड़े बैठे रहेंगे तब तक कांग्रेस की स्थिति दिन ब दिन और बिगड़ती जायेगी |

लेखक:- रवींद्र वाजपेयी