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गुरूनानक देव: नये युग के अग्रदूत

गुरूनानक देव का जीवन और कृतित्व ऐसी विरासत है, जो युग-युगों तक प्रासंगिक और सार्थक बनी रहेगी। धर्म और समाज के बारे में उनकी दूर दृष्टि आज से 550  सालों बाद भी सामयिक ही प्रतीत होती है। वे एक महामानव थे। उन्होंने अपना जीवन आदर्शों का पालन करते हुये जिया। निरंकार से जुड़ने की प्रक्रिया को सर्वसाधारण के लिये अत्यन्त सरल बना दिया। उन्होंने कट्टरता का सदैव विरोध किया। शोषण जुल्म और असमानता का विरोध करते हुये समाज के अंतिम व्यक्ति को राहत पहुँचायी। समाज में समरसता के लिये किये गये उनके प्रयासों ने उन्हें देवदूत बना दिया। वे हमेशा दीन, दुखियों के पक्ष में खड़े दिखाई देते थे।

उनका जन्म ननकाना साहिब की पावन धरती पर 19 नवम्बर को हुआ था। यहाँ हिन्दू- मुस्लिम, ज्ञानी, सज्जन सभी निवास करते थे। यहाँ उन्होंने बचपन से ही सभी समस्याओं को नजदीक से देखा था। भाई गुरूदास उनके बारे में उनकी विलक्षणता को कुछ इस प्रकार इन शब्दों में व्यक्त करते  हैं ‘‘सतिगुरूनानक प्रकटया, मिटी धुंध जग नानक होआ, ज्योंकर सूरज निकलिया, तारे छपे अंधेर पलोआ।’’ उन्होंने यहा जीवन के 18 साल बिताये थे। विश्व भर में उनके जन्म दिवस पर प्रकाश पर्व मनाया जाता है।

उनके पिता उन्हें व्यापार के लिये प्रेरित करते तो वे सब धनराशि साधुजनों की सेवा में खर्च कर देते। हर तरह के सांसारिक प्रयासों में लगाने की परिवारजनों ने अनेक कोशिशें की, लेकिन वे असफल ही रहे। वे असाधारण – दिव्य दृष्टि लेकर आगे बढ़ रहे थे। उनका स्पष्ट संकेत मिला ‘न को हिन्दू न मुसलमान।’ इसके विभिन्न अर्थ लगाये गये। आखिर इन्सान तो इंसान ही होता है। इसे इस व्यापक अर्थ में भी समझा जा सकता है कि हिन्दू-मुसलमान दोनों सम्प्रदाय के लोग अपने अपने धर्म को भूल चुके हैं।

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गुरू नानकदेव की चिन्तन धारा एक अलग यात्रा-पथ पर निकल चुकी थी। उन्होंने अनुभव कर लिया था कि ‘धर्म के नाम पर’ कट्टरता आदमी को ठीक राह पर नहीं ले जा सकती। उन्होंने योग को भी अलग ढंग से परिभाषित किया, ‘साध निवाजे बँधे चोरा। गुरबिन मंतर न जपिये होरा। उत्तम भलै तिनां के जखण। नानक कहे जोग के लक्षण।’’

उन्होंने जीवन में धन और पौरूप के अहंकार को भी एक बड़ी बाधा बतलाया। हरिद्वार में जाकर उन्होंने हिन्दू कर्मकाण्डों पर भी अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा था कि अगर यहाँ का पानी करतारपुर के खेतों में नहीं पहुँच सकता तो वह पितरों तक कैसे पहुँचाया जा सकता है।

गुरूनानक देव का दर्शन चित्त को स्थिर और सत्य की परख कराने वाला है। उनके दर्शन ने मातृभूमि पर आक्रमण करने वाले विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ खड़े होने का साहस प्रदान किया। आज से 550 साल पूर्व गुरूनानक देव का अवतरण भारत के आध्यात्मिक जगत के लिये एक असामान्य घटना थी। उस समय भेदभाव और पाखण्ड का बोल-बाला था और समाज विघटन की कगार पर पहुँच रहा था। ऐसी परिस्थिति में दुर्बल हो रहे समाज में परिवर्तन लाने के प्रयासों के अंतर्गत उन्होंने चार लम्बी यात्रायें की। बताया जाता है उन्होंने अपने जीवन काल में ओजस्वी वाणी से जनजन में चेतना फैलाते हुये लगभग 45 हजार किलोमीटर की यात्रायें की। इस दौरान उनका सनातन धर्मी सन्तों , बौद्ध, जैन, इस्लाम तथा सूफी सन्तों के साथ संवाद और विचार विमर्श भी हुआ। इसी दौरान बाबर के जुल्मों के खिलाफ भी अलख जगायी। उनका मानना था कि यदि ईश्वर का अस्तित्व है तो सारे विश्व में एक ही ईश्वर है, अनेक ईश्वर नहीं हो सकते। श्री गुरू नानक देव का चिन्तन अत्यन्त व्यापक, विभिन्न विषयों को समेटे हुये हैं। उन्होंने जल संरक्षण और स्वच्छ पर्यावरण के प्रति भी उस समय लोगों को चेतावनी दी थी। उनका जीवन, शिक्षा और लेखन मानवसभ्यता की अमूल्य विरासत है।

उनका नाम केवल नाम नहीं, वरन् एक सिद्ध मंत्र जैसा प्रभावी बन पड़ा है ‘‘जो बोले सो निहाल जो बो ले वो भी निहाल।’’ आचार्य रजनीश भी उन्हें महान आत्मा मानते थे। उनके अनुसार ‘जपुजी’ उनकी पहली भेंट है, परमात्मा से लौटकर। ‘‘जब व्यक्ति मिटता है, उस समय आँख के सामने जो होता है, वही परमात्मा है। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं, वह निराकार है।’’

गुरूनानक जी महाराज भारतीय सभ्यता के नये युग के अग्रदूत थे। वे एक जागृत आत्मा थे। वे वह सब देख सकते थे, जो दूसरे नहीं देख सकते थे, न सोच सकते थे। उनके पदों से ही पता चलता है कि वे नारी की महत्ता पर कितना जोर देते थे। वे हमेशा जाति धर्म से ऊपर उठकर मानव सेवा और भक्तिभाव का प्रचार-प्रसार करते रहे। उनका यह परम विश्वास था कि एक मात्र ब्रह्म की प्राप्ति के लिये वनों में भटकने की आवश्कता नहीं है। ईश्वर तो सबके भीतर समाया हुआ है। सिर्फ उसे पहचानना है।

मध्यकालीन दशगुरू परम्परा गुरूनानक जी महाराज से प्रारम्भ होकर गुरू गोविन्द सिंह पर समाप्त होती है। मुगल वंश के संस्थापक बाबर व दशगुरू परम्परा के महान पथ-प्रदर्शक, संस्थापक गुरूनानक समकालीन थे।

उनके व्यक्तित्व की विशेषता यह कि उन्होंने यद्यपि बचपन से ही स्कूल जल्द ही छोड़ दिया था, इसके बावजूद उनका अधिकांश समय, भजन, मनन, स्वाध्याय और सत्संग-ध्यान में ही व्यतीत होता था। गुरूनानक देव की वाणी का संग्रह ‘‘गुरू ग्रंथ साहिब’’ है। यह परम पवित्र ग्रंथ है। इसमें फारसी, पंजाबी, सिंधी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली आदि के शब्दों का प्रयोग मिलता है। उन्हीं के प्रयासों का यह सुफल है कि आज भी भगत कबीर, सूरदास, जयदेव, रविदास, परमानन्द, धन्ना, तरलोचन भगत सेन, बाबा फरीद आदि की वाणी जनजन तक पहुँच सकी।

आबाद रहो Moral Story of Guru Nanak dev ji in hindi

आज समाज में चारों और स्वार्थ, लोलुपता भौतिकता तथा व्यक्तिगत ईष्र्या का अंधकार व्याप्त है। स्वार्थ की आँधी में बड़े-बड़े चरित्र के वृक्ष धराशायी होते जा रहे हंै। सामान्य व्यक्ति ऐसी विषमकारी परिस्थितियों में इस महान पथ प्रदर्शक की शिक्षाओं से कल्याण पथ की प्राप्ति कर सकता है। मानव जाति के लिये उनके द्वारा दिखाये गये मार्ग एकता, समानता, विनम्रता और सेवा का विश्वभर में व्यापक असर हुआ है।

गुरूनानक ने प्राचीन हिन्दू शास्त्रों के अनुसार ही भारत भूमि को ‘गौ’ स्वरूप बताया। गौ और भारत भूमि दोनों की जैसी दुर्दशा मुस्लिम आक्रांतओं ने की, उसे देखकर उन्होंने कहा था-‘‘धरती गऊ स्वरूप है, अहिसि करै पुकार है। हे कोई ऐसा साधि जनि, मैंनूं लय उबार।’’

लेखक:- डाॅ किशन  कछवाहा