गोवा की मुक्ति में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका
गोवा अपने सुंदर समुद्री किनारों और स्थापत्य कला के लिए सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध हैं। यह भारत का सबसे छोटा राज्य हैं। इस पर लगभग 450 सालो तक पुर्तगालियों ने शासन किया। उन्नीस दिसम्बर को गोवा मुक्ति दिवस मनाया जाता है। इसी दिन इसे पुर्तगालियों के शासन से आज़ादी मिली थी। गोवा को मुक्त कराने हेतु भारतीय सेना द्वारा चलाये गए ऑपरेशन विजय की सफलता के उपलक्ष्य में हर वर्ष 19 दिसम्बर को इस दिवस को जश्न के साथ मनाया जाता है।
पुर्तगालियों के कब्जे से आज़ाद होने के बाद सन 1962 में यह भारत का हिस्सा बना और 1987 में इसे भारतीय राज्य का दर्जा आधिकारिक रूप से दे दिया गया।
भारत को आज़ादी 1947 में मिल गई थी परंतु दादर नगर हवेली, गोवा आदि कई हिस्से आज़ादी के लिये संघर्ष कर रहे थे। भारत को आज़ादी मिलने और अंग्रेजों के जाने के बाद फ्रांस ने एक समझौते के तहत पंडुचेरी आदि छेत्र भारत को प्रदान कर दिये किन्तु पूर्व में आए पुर्तग़ालियो ने भारत के कई छेत्रों में अपना शासन पूर्ववत रखा।
डॉ. राममनोहर लोहिया ने इन हिस्सों की स्वतंत्रता हेतु सत्याग्रह प्रारंभ किया। पुर्तगालियों ने इसे कुचलने के लिए कमर कस ली। बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती की गई। गोवा, दादर नगर हवेली, दीव दमन में आज़ादी की राह अत्यधिक कठिन लग रही थी। ऐसे समय मे कुछ राष्ट्रवादी संगठन के कार्यकर्ताओं ने ‘ आज़ाद गोमांतक दल की स्थापना की।
मन में पीड़ा व दुःख लिए ये लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महाराष्ट्र प्रमुख बाबाराव भिड़े व विनायक राव आप्टे के संपर्क में आये और उन्हें अपनी योजना से परिचित करवाया। इसके बाद संघ के नेतृत्व में दादर नगर हवेली को मुक्त कराने हेतु एक गुप्त योजना बनी। इस योजना को मूर्त रूप देने के लिये धन की आवश्यकता थी जिसका बीड़ा सुधीर फड़के ने लिया और जिसे सभी के प्रयास द्वारा विविध माध्यमो द्वारा जुटाया लिया गया।
यह प्रबंध होने पर दो सौ युवको का जत्था 31 जुलाई 1954 को सिलवासा रवाना हुआ मार्ग में कई युवा इससे जुड़ते गये। दिल मे देशभक्ति का जोश और होठो पर मेरा रंग दे बसंती चोला का स्वर लिए यह टोली सिलवासा पहुंची और योजनानुसार पटाखे फोड़े गए जिसे पुर्तगाली सैनिकों ने बंदूक की आवाज समझा और शरणागत हो गए।